प्रधान मंत्री मोदी का विकसित होता राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत
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अरुण जेटली
पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे को केन्द्र बिंदु में ला दिया है। भारत देशभक्तों का राष्ट्र है। वीरता और त्याग का हमारा इतिहास है। भारत ने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी लेकिन हमने हमेशा अपना सिर ऊंचा रखा। हमारे लिए 1962 की लड़ाई में पराजय को भूलना मुश्किल है। हम 1965, 1971 और कारगिल का युद्ध सम्मान तथा संतुष्टि के साथ याद रखते हैं। भारतीय यह मानते हैं कि देश को सुरक्षित रखा जाए। पूरा देश एक आवाज़ में उस आतंकवाद की निंदा करता है जिसमें हमारे सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों के अलावा हमारे दो प्रधान मंत्रियों की जान चली गई।
वोट बैंक से आतंकवाद और उग्रवाद की लड़ाई को जोड़ने के खतरे
परंपरागत रूप से भारत ने किसी भी तरह के आतंवाद की एक स्वर में निंदा की है। जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भटके हुए मुस्लिम युवाओं के एक गुट ने अपने मुद्दों को रखने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया तो ज्यादातर भारतीयों ने इस विचारधारा को अस्वीकार कर दिया। सौभाग्यवश देश में यह प्रवृति अभी भी कायम है। दुर्भाग्यवश भारत में ऐसे कुछ गुट सिर उठाने लगे। वे खतरनाक तो हैं लेकिन हमारी सुरक्षा बलों ने इनमें से अधिकांश पर काबू पा लिया है।
टाडा कानून उस समय बना था जब श्री राजीव गांधी सत्ता में थे। इस कानून का उपयोग भी हुआ और दुरुपयोग भी लेकिन फिर भी यह कानून बना रहा। 1993 के मुंबई हमलों के बाद आतंकवादियों के खिलाफ इसका काफी इस्तेमाल हुआ। इसके बाद इसके खिलाफ एक सांप्रदायिक अभियान शुरू किया गया। यह कहा गया कि यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस कानून को वापस ले लिया। भारत जो आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित था, वह किसी भी तरह के आतंकवाद निरोधक कानून से वंचित था। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने पोटा कानून बनाया। इसे बनाने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई गई थी। लेकिन कांग्रेस ने इस कानून को हटाने का वादा कर दिया। आंतकवाद निरोधक कानून और अल्पसंख्यक विरोधी कानून में फर्क महत्वपूर्ण है। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने इसे इस फर्क को मिटाने का प्रयास किया। उसके बाद से कांग्रेस लगातार आतंकवाद पर नरम रवैया अपनाती रही। उसने आतंकवाद के संतुष्टिकरण की नीति की शुरूआत की।
जब बाटला हाउस मुठभेड़ हुआ और आतंकवादी मारे गए तो कांग्रेस नेताओं ने इसे फर्जी घोषित कर दिया। उन्होंने आतंकवादियों को मासूम बताया। जब 1993 के मुंबई हमलों, 26/11 हमलों और संसद पर गोलीबारी के आरोपी को फांसी की सजा दी जा रही थी तो कई कांग्रेसियों ने उन्हें माफी दिलाने के लिए अपील की। ‘विघटनकारी' लोग जो अपने को उदार वामपंथी कहते हैं, आतंकवादियों को बचाने के लिए मुकदमा लड़ने लगे।
अलगाववाद, जिहादियों और माओवादियों के पैरोकार देश तोड़ने के लिए जब दिल्ली के जेएनयू में देश के टुकड़े-टुकड़े नारा लगाने लगे तो अलगाववाद और आतंकवाद के कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके अधिकार की रक्षा की बात करने लगे। आतंकवादियों का साथ न देने की कांग्रेस की परंपरा को छोड़ते हुए वह आगे बढ़ गए।
राहुल गांधी के इशारे पर माओवादियों और पृथकतावादियों के साथ कांग्रेस का नाम जुड़ जाने के बाद कांग्रेसियों और उनके समर्थक अरबन माओवादियों का समर्थन करने लगी। ये अर्बन माओवादी वही हैं जो भारत के प्रधान मंत्री की हत्या का षडयंत्र कर रहे थे। इसलिए यह बात हैरान नहीं करती कि छत्तीसगढ़ जो उग्रवाद का केन्द्र रहा है, की नई सरकार ने माओवादियों के खिलाफ पुलिस की शक्तियों के तथाकथित दुरुपयोग की समीक्षा करने की बात जैसे कई निर्णय लिए हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कांग्रेस पार्टी के वोटों के लालच और उसके महागठबंधन के घटक दलों के कारण कमज़ोर हो गई।
कश्मीर और आतंकवाद
जम्मू-कश्मीर आतंकवाद का सबसे बड़ा पीड़ित राज्य है। वहां के लोगों ने सबसे ज्यादा आतंकवाद को झेला है। पाकिस्तान ने कभी भी जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं माना और उसने कई लड़ाइयां लड़ी और पराजित हुआ। उसने सीमा पार से उग्रवाद को बढ़ावा दिया और आतंकवादियों को भारत में बढ़ावा दिया। कांग्रेस ने दस सालों में इस समस्या के समाधान के लिए कोई सिलसिलेवार रणनीति तैयार नहीं की।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह सब विरासत में मिला। उन्होंने पाकिस्तान से अच्छे संबंध रखने के लिए इस आशा में प्रयास किया कि उसका रवैया बदलेगा। लेकिन पाकिस्तान ने उसका जवाब पठानकोट, उड़ी और पुलावाम से दिया। उन्होंने घाटी के राजनीतिक दलों को कश्मीर में राष्ट्रीय गठबंधन में मिलाने के लिए प्रेरित किया लेकिन जमात ए इस्लामी से दबाव पर यह नहीं हो सका।
पुलावामा और बालाकोट
पुलावामा में आतंकवादियों के हमले में हमारे 41 जवान शहीद हुए जिससे देश की अंतरात्मा हिल गई। हमारे बहादुर जवानों ने पुलावाम हमले के जिम्मेदार कई आतंकवादियों को खत्म कर दिया। उड़ी हमले के बाद हमारी सरकार और खुफिया एजेंसियों को एलओसी के पार आतंकवादियों के ट्रेनिगं के बारे में गुप्त सूचनाएं मिलीं। सितंबर 2016 में सेना ने बिल्कुल सफाई से सर्जिकल स्ट्राइक किया। भारतीय पक्ष की ओर सो कोई हताहत नहीं हुआ और पाकिस्तान स्थित ट्रेनिंग कैंप नष्ट हो गए। 1971 युद्ध के बाद पहली बार हमने सीमा पार की।
हमारे सुरक्षा बलों और सरकार को खुफिया सूत्रों से पक्की सूचना मिली कि बालाकोट में जैश के आतंकवादियों की ट्रेनिंग चल रही है। 26 फरवरी को वायुसेना ने हवाई हमला किया और आतंकवादियों के कैंप नष्ट कर दिए जिससे आतंकवादियों के ठिकानों जिसमें आदमी, सामान और भवनों को भारी नुकसान पहुंचाया।
इन दोनों कार्रवाइयों से प्रधान मंत्री ने देश की सुरक्षा के लिए एक सिद्धांत विकसित किया। क्या हम आतंकवादियों से केवल अपनी खुफिया सूचनाओं की ताकत और कूटनीतिक प्रयासों से ही पाकिस्तान को अलग-थलग करेंगे? ऐसे मामलों में, क्या हम शत-प्रतिशत सफलता सुनिश्चित कर सकते हैं? इस विषय पर विपक्ष लगातार हमारे खिलाफ आक्रामक है। अगर आतंकवादी साल में एक बार भी सफल हो गए तो वे आरोप लगाने शुरू कर देंगे। हमारी खुफिया सूचनाएं और हमारी सुरक्षा 100% सुनिश्चित होनी चाहिए। यह एक बड़ी चुनौती है। इसके विकल्प के रूप में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक एक नीति के रूप में उभरी है जो आतंकवाद की जड़ पर चोट करती है। पाकिस्तान को यह बात समझ में आ गई कि अगर उसकी सरकार आतंकवादियों को बढ़ावा देता रही तो उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी होंगी। पूरी दुनिया ने हमारे रुख की सराहना की। पाकिस्तान कूटनीतिक रूप से अलग-थलग हो गया। उसके परंपरागत मित्रों ने भी उसका साथ नहीं दिया।
राजनीतिक युद्ध
छत्तीसगढ़ और केन्द्र की भाजपा-नीत सरकार ने वामपंथी नक्सलवाद पर लगातार जबरदस्त प्रहार किय़ा। जेएनयू से लेकर छत्तीसगढ़ तक, कांग्रेस ने उनसे मित्रता ही की है। इस बात के सबूत लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं कि कश्मीर घाटी में वामपंथी आतंकवादी कश्मीरी जेहादियों को बढ़ावा दे रहे हैं। अपने विचारों के मूल में कांग्रेस आतंकवाद को खत्म करने के सक्रिय प्रयासों का विरोध नहीं करती लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की आतंकवाद को जड़ से ख़त्म करने की छवि के सामने कांग्रेस का राजनीतिक पतन हो जाता है। पुलवामा में पाक प्रेरित आतंकवादी हमले की निंदा करने पर तो कांग्रेस केंद्र सरकार के साथ है लेकिन बालाकोट को लेकर वह परेशान हो जाती है। और इसलिए, कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक को बार-बार अनुपयोगी बताती है। हवाई हमलों पर, उनका आचरण और भी संदिग्ध है। पहले दो दिनों तक कांग्रेस दिखाने के लिए वायुसेना के प्रति सहानुभूति प्रकट करती रही लेकिन इसके बाद उन्होंने वायुसेना पर हमला करना शुरू कर दिया। कांग्रेस ने एयरस्ट्राइक की सफलता पर सवाल उठाए। उन्होंने बालाकोट में आतंकियों के मारे जाने के सबूत मांगने कर दिए। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि यह स्ट्राइक आतंकवाद के खिलाफ नहीं बल्कि आगामी लोक सभा चुनावों में भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए हुई थी। यह कांग्रेस द्वारा घरेलू राजनीति में एक आत्मघाती गोल था। कांग्रेस पाकिस्तान के हाथों भी खेल रही थी जहां राहुल गांधी सहित कई कांग्रेसी नेताओं के बयान पाकिस्तान में टेलीविजन चैनलों की सुर्खियाँ बन रही थी। पकिस्तान ने अपने झूठ को और हवा देने के लिए इन कांग्रेसी नेताओं के बयान का हवाला दिया।
यह एक अंतिम प्रश्न उठाता है। जब भारत घोर वामपंथी और जेहादी आतंकवादियों से लड़ रहा है, जब उसे सीमा पार आतंकवाद के गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है, तो भारत कैसा जवाब देता है? 2019 के आम चुनावों में मतदाताओं के सामने यह एक विकल्प है। क्या नई दिल्ली में वामपंथी उग्रवाद के एक अति-सहयोगी दल को सत्ता में रखा जा सकता है? क्या वोट बैंक की राजनीति के लिए आतंक के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करने वालों पर भरोसा किया जा सकता है? क्या इन चुनावों में पाकिस्तानी हाथों में खेलने वालों को गंभीर सबक नहीं सिखाया जाना चाहिए? निस्संदेह उपरोक्त प्रश्न का उत्तर बड़ी ‘हाँ’ है। यह देश प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के अंतर्गत सुरक्षित और सुदृढ़ है।
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