राजनैतिक कार्य

Article : "Has the Congress Thrown its Hands up?” by Hon'ble Union Minister Shri Arun Jaitley


26-04-2019

       कांग्रेस ने अपने हाथ खड़े कर दिये हैं क्या?

                                                      -अरुण जेटली

चुनाव के तीन चरण समाप्त हो गये हैं और 303 लोक सभा सीटों के भाग्य का फैसला हो चुका है। गुजरात को छोड़कर जम्मू-कश्मीर उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों को छोड़कर पहले तीन चरण के चुनाव देश के पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्र तक सीमित थे। चुनावी संघर्ष अब हिन्दी भाषी क्षेत्रों में आ पहुंचा है। भारत के अन्य हिस्सों में जैसे पूर्वोत्तर भारत, बंगाल और ओडिशा में मुकाबला क्षेत्रीय दलों और बीजेपी के बीच था। पूर्वी भारत में बीजेपी ने कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक बीजेपी के पाले में जाता दिख रहा है। आन्ध्र और तेलंगाना में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है। वहां कांग्रेस और टीडीपी अब हाशिये पर जाते दिख रहे हैं। यह स्पष्ट है कि कांग्रेस न तो क्षेत्रीय दलों का मुकाबला करती दिख रही है और न ही बीजेपी का। इसलिए अब भविष्य में एक ही मुद्दा रह जाता है और वह है कि बीजेपी की जीत का अंतर कितना रहेगा। क्या 2014 की तरह पार्टी को वोट मिलेंगे या फिर ज्यादा।  ज़मीनी हकीकत तो यह है कि इस बार बहुमत 2014 से ज्यादा होगा। पद पर रह रहे प्रधान मंत्री के पक्ष में 65 से 70 प्रतिशत सहमति भारत में एक अभूतपूर्व बात है। यह बात साफ तौर पर झलक रही है।

2019 में कांग्रेस

अगर हम चुनाव की चाल को देखें और हाल की कुछ घटनाओं का विश्लेषण करें तो एक दिलचस्प स्थिति सामने आएगी। कुछ विशेषताएं जो दिख रही हैं वे कुछ इस तरह से हैं:

  • कांग्रेस दावा कर रही है कि अब वह 424 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यह संख्या और बढ़ सकती है। ज़ाहिर है कि महागठबंधन जन्म लेने के पहले ही मर गया।
  • राहुल गांधी ने अपने पहले वर्ष में राफेल और कारोबारियों का कर्ज माफ किये जाने की झूठी कहानी गढ़ दी। फर्जी मुद्दे हवा में उड़ गये हैं और मतदाताओं से जुड़ नहीं पा रहे हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट में झूठी कहानी पर माफी मांगना, किसी भी राजनीतिक दल के नेता की साख को घटा देता है। राहुल अपने ही गढ़े झूठ का शिकार हो गये हैं।
  • उनकी निराशा उस समय चरम पर पहुंच गई जब उन्होंने बिना यह समझे कि अरविंद केजरीवाल उनके साथ चालें चल रहे थे, राज्य इकाई की सलाह के बिना चार सीटें देने को तैयार हो गये। उन्होंने एक पराजित व्यक्ति जैसी निराशा दिखाई।
  • बालाकोट के बाद देश भर में जब राष्ट्रवादी माहौल बना तो राहुल ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय हित और राष्ट्रवादी मूड के खिलाफ खड़ा कर दिया। उन्होंने बालाकोट को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर प्रहार की बजाय कांग्रेस पार्टी पर प्रहार समझा।
  • कश्मीर की पार्टियां जब पृथकतावाद के प्रति नरम दृष्टिकोण अपनाती हैं तो कांग्रेस अपना स्टैंड लेने में या उसका विरोध करने में असमर्थ हो जाती है।
  • इस बात की इंतिहां तो तब हो गई जब कांग्रेस और एनसीपी ने प्रधान मंत्री मोदी पर हमला करने की जिम्मेदारी बिना यह समझे राज ठाकरे को दे दी कि इसका उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य उत्तरी राज्यों में क्या असर होगा।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र देश के राष्ट्रवादी मूड के पूरी तरह से विपरीत था।
  • राहुल को वायनाड की शरण में जाना पड़ा और प्रियंका को वाराणसी छोड़कर ही संतुष्ट होना पड़ा क्योंकि उनके लिए कोई वायनाड उपलब्ध नहीं था।

घातक प्रहार

नया भारत सकारात्मक भारत है। यह राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और तेलुगू देशम पार्टी की नकारात्मकता को स्वीकार नहीं करता। नया भारत अपने देश के बारे में सनक और आलोचना से हटकर आगे देखना चाहता है।

कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी समय से 48 वर्ष पीछे हैं। 2019 और 1971 के बीच 48 वर्षों का बड़ा फासला है। भारत का सामाजिक और आर्थिक चेहरा पूरी तरह से बदल गया है। कांग्रेस पार्टी 1971 के एजेंडा पर 2019 का चुनाव लड़ रही है। दीवार पर लिखी इबारत साफ है। वो लोग जिन्होंने आजीवन सुविधा भरी जिंदगी जी उन्हें जब सत्ता दूर दिखने लगती है तो वे हार मान लेते हैं।  

 

 

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