राजनैतिक कार्य

Article : "India’s Opposition is on a “Rent a Cause” Campaign" by Hon'ble Union Minister Shri Arun Jaitley


13-04-2019

      भारत का विपक्ष किराये पर लिये गये विषय अभियान पर है

                                                                  -अरुण जेटली

वोटिंग का पहला चरण समाप्त हो गया है। मोदी फैक्टर सर्वत्र दृष्टिगत हो रहा है। बीजेपी कार्यकर्ताओं को श्री अमित शाह की यह चुनौती कि वे उन राज्यों में भी जहां पार्टी का दबदबा है और विपक्ष का गठबंधन है, 50 वोटिंग का लक्ष्य रखें, सफल होता दिख रहा है।

कई राज्यों में विपक्ष उधेड़बुन में है, गठबंधन भी कारगर होता नहीं दिख रहा है। बहुकोणीय मुकाबला बीजेपी के पक्ष में है। वामपंथ, तृणमूल और कांग्रेस और अब आम आदमी पार्टी के बीच जुबानी जंग अब तेज होती जा रही है। नेतृत्व के सवाल पर स्थिति, जैसा मैंने सोचा था, उससे भी बदतर होती जा रही है। बसपा नेत्री मायावती और तृणमूल चीफ ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष को नीचा दिखाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रही हैं।

किसी प्रधान मंत्री खासकर नरेन्द्र मोदी जैसे लोकप्रिय राजनीतिज्ञ को पद से हटा देने के लिए आपको कोई ठोस और वास्तविक मुद्दा चाहिए न कि कोई काल्पनिक कहानी। विपक्ष चुनाव के दो वर्ष पहले तक उन मुद्दों पर वो विषय गढ़ता रहा है जो दरअसल अस्तित्व में थे ही नहीं। राफेल पर झूठे अभियान में कोई दम नहीं था। उद्योगपतियों को कर्ज माफी की बात भी सरासर झूठी है। ईवीएम के जरिये चुनाव में गड़बड़ी का अभियान सबसे बड़ा झूठ था। अब वे लोग एक महीने से एक ही मुद्दे पर लगे हुए हैं।

हस्ताक्षर अभियान प्रोपगंडा

एक खास तरीका है जिसके तहत सरकार के कुछ आलोचकों से बीजेपी के विरुद्ध ज्ञापन पर हस्ताक्षर करवाया जाता है। 2014 के अभियान के दौरान भी ऐसे ही पत्रों पर हताश होकर हस्ताक्षर करवाए गए थे। विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक रूप से बंटे हुए समाज में आपको हमेशा ऐसे लोग मिल जाएंगे जो ज्ञापन पत्र पर किसी न किसी कारण से हस्ताक्षर करने को तैयार रहते हैं। इस तरह के ग्रुप में शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, कलाकार, पूर्व सरकारी अधिकारी और अब कुछ पूर्व सैनिक हैं और उनके ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षर हैं। लेकिन कई पूर्व सैनिकों इससे इनकार कर दिया है कि उस पर उनके हस्ताक्षर हैं।

बीजेपी और उनके सहयोगी दल लोगों से सीधे बात कर रहे हैं। वे बड़ी रैलियों, मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये लोगों से बातें करते हैं। करोड़ों कार्यकर्ता पार्टी और सरकार के संदेश को लेकर प्रचार कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में विपक्ष सरकार के खिलाफ कोई भी बड़ा मुद्दा खड़ा करने में विफल रहा है। अब उन्होंने नई रणनीति बनाई है कि हर दिन ट्वीट या प्रेस वार्ता करके कोई न कोई शगूफा छोड़ दिया जाए। विपक्ष के अभियान की यह दुर्गति है।

हर दिन एक नया विषय

एक दिन पुलावामा पर यह कहकर सवाल उठाए गए कि यह खुद का कराया गया है। अगले दिन बालाकोट पर यह कहकर सवाल उठाए गए कि ऐसा कोई ऑपरेशन नहीं हुआ। ऐंटी सैटेलाइट मिसाइल को नेहरू का योगदान बता दिया गया जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू और डॉक्टर होमी भाभा के बीच के पत्राचार से इसके ठीक उलटी बात सामने आई। एक दिन बीजेपी को युद्ध का उन्माद भड़काने वाला बताया जाता है तो अगले दिन उसे पाकिस्तान समर्थक बता दिया जाता है।

एक दिन बीजेपी के उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता पर फोकस रहता है। लेकिन वे भूल जाते हैं कि राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता की जांच से भी काफी अनुत्तरित सवाल उठ खड़े हो रहे हैं। मास्टर्स डिग्री के बिना राहुल को एम फिल मिल गया! पूरे अभियान में कोई एक भी ऐसी डोर नहीं है जिससे आज जो कहा जा रहा है या कुछ महीने पहले जो कुछ कहा गया, जोड़ा जा सके।

विपक्ष के पास कोई नेता नहीं है, कोई गठबंधन नहीं है, कोई न्यूनतम कार्यक्रम नहीं है और कोई वास्तविक मुद्दा नहीं है। यही कारण है कि विफल अभियानों पर विश्वास करने वाले लोग बहुत कम ही हैं। यह किराये पर लिये गये विषय वाला अभियान है।

 

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