
एक दिन में तीन झूठे अभियान का पर्दाफाश
-अरुण जेटली
मैंने हमेशा माना है कि सच और झूठ में मूलभूत फर्क यह है कि सच अजर-अमर होता है जबकि झूठ क्षणभंगुर। अनिवार्य रूप से विरोधाभासियों का हर फर्जी अभियान अंततः अब नष्ट हो गया है। इस बारे में आख्रिरी फैसला वोटर या फिर न्यायिक प्रक्रिया ही करता है।
हिन्दू आतंक का विद्वेषपूर्ण सिद्धांत
हिन्दू आतंक की विद्वेषपूर्ण थ्योरी यूपीए सरकार के कार्यकाल उसके मंत्रियों और नेताओं द्वारा गढ़ी गई थी। अनिवार्य रूप से विरोधाभासियों ने इसे अपना लिया था। यह ज़ेहादी आतंक से ध्यान बंटाने की कोशिश थी। भारत के उदार बहुमत समाज को बदनाम करने की यह साजिश थी। आतंक के मामले में हिन्दुओं को भी बराबरी में ला खड़ा कर दिया गया। आतंक का हिन्दू संस्कृति से कोई लेना देना नहीं रहा। भारत में आतंक की कोई विरासत भी नहीं रही। हम दुनिया के उन कुछ सफल देशों में रहे हैं जहां आतंक और उग्रवाद का देश के बड़े हिस्से से सफाया कर दिया गया है। सीमा पार कोई भी भारतीय वहां धमाका करते हुए कभी भी न तो पकड़ा गया या मारा गया। यूपीए-1 के कार्यकाल मे देश भर में आतंक की कई घटनाओं में हिन्दू आतंकवाद को खड़ा करने की कोशिश की गई। एक घटना में वास्तविक अपराधी पकड़े गए। सरकार ने उस मामले में फिर से विचार करके पहले की रिपोर्ट को नकारते हुए हिन्दू समुदाय के कुछ लोगों के खिलाफ एक चार्ज शीट दाखिल करवाया। समझौता बम धमाके में अमेरिकी विदेश मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र ने संकेत दिया था कि 2007 में पानीपत में धमाके करने वाले जेहादी संगठन और लोग इसके जिम्मेदार हैं। उस समय की सरकार ने इसे हिन्दू षडयंत्र बताया। कल के अदालती फैसले के बाद अब “हिन्दू आतंक” की थ्योरी के ताबूत में आखिरी कील जड़ दी गई है।
2002 का गोधरा ट्रेन अग्निकांड
2002 में गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाए जाने की घटना दरअसल राज्य में सामाजिक और साम्प्रदायिक विद्वेष भड़काने की कोशिश थी। अभियुक्तों को पहचान लिया गया था। उनके खिलाफ बहुत सारे साक्ष्य थे। उन्हें अलग-अलग समय पर पकड़ा गया, उनके खिलाफ अभियोग पत्र दाखिल किए गए, उनकी जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट तक से रद्द हो गई। कई अभियुक्त पहले ही सजा पा चुके थे और कल निचली अदालत ने एक और को सजा सुनाई।
कई उन अनिवार्य रूप से विरोधाभासियों जिन्होंने गुजरात में सामाजिक तनाव पैदा करके अपना करियर बनाया था, कहा कि ट्रेन अग्निकांड या तो राज्य सरकार ने करवाया या फिर कार सेवकों ने खुद। यूपीए सरकार ने गैरजिम्मेदाराना हरकत करते हुए उसके रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद यादव ने बिना सुप्रीम कोर्ट से सलाह मशविरा किए हुए एक अवकाश प्राप्त जज श्री यू एन बनर्जी को रेल इन्क्वायरी का आयुक्त बना दिया। जज साहब ने सरकार को खुश करने के लिए एक रिपोर्ट बनाई जिसमें कहा गया कि बाहर से भीड़ द्वारा कोई आग नहीं लगाई गई और आग डिब्बे के अंदर से लगी थी जहां हिन्दू तीर्थयात्री थे। मैं इस जघन्य अपराध से जुड़े प्रमाणों को उलटने के इस दोष को यूपीए सरकार और उसके प्रधान मंत्री पर सबसे बदनुमा दाग मानता हूं। इस तरह की रिपोर्ट का कोई भी प्रमाणिक महत्व नहीं है। सभी साक्ष्यों को देखने के बाद कल निचली अदालत ने एक और अपराधी को सजा दी।
नीरव मोदी की गिरफ्तारी
नीरव मोदी ने 2011 में बैंकों के साथ धोखाधड़ी शुरू की। यह अपराध चलता रहा। 2018 में इस सरकार के अंतर्गत बैंकों और जांच एजेंसिओं ने उसका अपराध पकड़ा। वर्तमान सरकार में उसकी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया गया, उनकी नीलामी हो रही है और उसके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कर लिये गये हैं। बैंकों तथा अन्य कर्जदारों की बकाया राशि को वसूलने के लिए उसके खिलाफ कार्रवाई हो रही है। वह एक जगह से दूसरी जगह कानून से बचने के लिए भाग रहा है। यह हमारी जांच एजेंसियों की कार्यकुशलता है कि वे उसका पीछा एक जगह से दूसरी जगह कर रहे थे। हमारे आग्रह पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है और उसकी जमानत रद्द कर दी गई है। उसके खिलाफ मजबूत और अकाट्य मामला है। उम्मीद है कि उसे भारत वापस भेज दिया जाएगा। जो कोई भी भारत से धोखाधड़ी करेगा, बचकर निकल नहीं पाएगा। उसे खोज निकाला जाएगा। यह बात उस फर्जी अभियान कि वर्तमान सरकार का उससे कोई संबंध है, की धज्जियां उड़ा देती है।
सिर्फ फर्जी मुद्दों पर यकीन करने में कई तरह के खतरे अंतर्निहित हैं। वे टिक नहीं पाते हैं और ध्वस्त हो जाते हैं जैसा कल तीन मामलों में हुआ। मुझे उम्मीद है कि फर्जी अभियान शुरू करने वाले इनसे सबक लेंगे। लेकिन ये अपने बेशर्म रवैये से बाज नहीं आ रहे हैं।
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