राजनैतिक कार्य

Agenda 2019 – Part - 3 Is Prime Minister Modi’s First Five Year Tenure a Turning Point on Corruption?


12-03-2019

एजेंडा 2019 – पार्ट - 3

क्या प्रधान मंत्री मोदी का पांच वर्ष का कार्यकाल भ्रष्टाचार में बदलाव का नया मोड़ है?

अरूण जेटली

मई, 2014 तक के हालात

देसी और अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारत को दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में मानते थे। भ्रष्टाचार के मामले में भारत की साख सबसे नीचे पहुंच गई थी। यूपीए कार्यकाल में जो लोग फोन बैंकिंग से लाभ उठा रहे थे उन्होंने बैंकिंग सिस्टम को खोखला कर दिया। भारत उन देशों में था जहां टैक्स का आधार सबसे कम था। टैक्स चोरी को बुरा आचरण या व्यापारिक रूप से गैर बुद्धिमता का काम नहीं माना जाता था। नए प्रोजेक्ट में प्रमोटरों का हिस्सा बैकों के कर्ज से बनता था और बरास्ता मॉरीशस या कोलकाता की शेल कंपनियों के जरिये वापस आ जाता था। स्पेक्ट्रम, खनिज या अन्य के दान मंत्रियों के विशेषाधिकार से दिए जाते थे। कमीशन रोजमर्रा की बात थी। राजनीतिक फंडिंग के लिए नकदी को वरीयता दी जाती थी। कई तो विदेशों में धन रखते थे। वह भी टैक्स हैवन में। रक्षा के ज्यादातर सौदे सत्ता के केन्द्र के करीब रहने वालों द्वारा किए जाते थे।

बोफोर्स तोपों के सौदे से लेकर एचडीडब्लू पनडुब्बी की खरीद, एयरबस सौदा,  अगस्ता वेस्टलैंड डील, उर्वरक घोटाला, इन सभी में कांग्रेस और उसके नेताओं की हर ओर मिलीभगत रही है।

टर्निंग प्वाइंट

प्रधान मंत्री मोदी के पांच साल के कार्यकाल को भविष्य के राजनीतिक इतिहासकार भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का एक आंदोलन मानेंगे। सरकार और उसके मंत्रियों ने यह पूर्ण रूप से साबित कर दिया है कि भारत में एक ईमानदार सरकार चलाना संभव है। इस सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सामने नहीं आया। प्रधान मंत्री और उनकी सरकार की साफ-सुथरी इमेज से कुंठित कांग्रेसी नेताओं ने ऐसे आरोप लगाने शुरू कर दिए जिन्हें अदालतों और कैग ने सिरे से नकार दिया था। देश में एक नया संदेश गया कि भारत में एक नया नियम लागू हो गया है। अगर किसी ने बैंक को पैसे नहीं लौटाए तो वह मैनेजमेंट से बाहर हो जाएगा। अगर वह भाग जाएगा तो उसे विदेशों से वापस लाया जाएगा। अगर कोई पैसे को इधर-उधर करता पाया जाएगा तो उसे पकड़ लिया जाएगा। लाखों फर्जी कंपनियां बंद हो गईं। अंतरर्राष्ट्रीय संधियों को फिर से लिखा जा रहा है। मारीशस, साइप्रस और सिंगापुर रूट जिनसे पैसे को विदेशों से भारत लाया जाता था, अब बंद कर दिए गए हैं। मंत्रियों के विशेषाधिकार खत्म कर दिए गए। स्पेक्ट्रम, कोयले की खदानें और अन्य खनिजों को बाजार के नए मेकेनिज्म के तहत आवंटित किया जाता है। यही बात सरकारी ठेकों पर भी लागू हो रही है। सरकार एनसीएलटी में आईबीसी प्रक्रियाओं से अपने को दूर रखती है। नए प्रमोटरों का फैसला एब कर्जदार एक पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के जरिये करते हैं। इस बात का जरा भी आरोप नहीं लगा कि इनमें किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ है।

भारत हर साल दस हजार किलोमीटर राजमार्ग बना रहा है। कोई भी ठेका रद्द नहीं हुआ या बिना प्रमाणित किए आवंटित नहीं हुआ है। सरकार ने इलेक्ट्रोल बांडिंग के जरिये राजनीतिक फंडिंग की एक ऐसी स्कीम भी बनाई है ताकि टैक्स दिए गए पैसे दिए जा सके।

बिचौलिये कहां गए?

मई 2014 के पहले दिल्ली एक ऐसा शहर था जहां बिचौलिए हर जगह दिखाई देते थे। अब वे बेरोजगार हो गए हैं। नॉर्थ ब्लॉक और उद्योग भवन किसी समय कारोबारियों और उद्योगपतियों से भरे रहते थे। अब वहां सन्नाटा रहता है। एक वित्त मंत्री के तौर पर अभी तक किसी ने भी मुझे किसी भी फाइल को आगे बढ़ाने के लिए नहीं कहा। संदेश साफ है-यह सरकार काम करती है। इसे दबाया नहीं जा सकता है। प्रधान मंत्री ने 2015 में बैंकरों को कहा कि उनके पास साउथ या नॉर्थ ब्लॉक से कोई कॉल नहीं आएगा। बैंकों के बोर्ड में नए प्रोफेशनल आ गए हैं। बैंक बोर्डों में कर्ज दिलवाने वालों के दिन गए। पब्लिक सेक्टर बैंकों के सभी सीनियर एग्जीक्युटिव, सीईओ, अब बैंक बोर्ड ब्यूरो द्वारा प्रोफेशनल तरीके से चुने जाते हैं।

इज ऑफ डूइंग बिज़नेस का प्रभाव

पर्यावरण मंत्रालय सभी तरह के भ्रष्टाचार का केन्द्र था। फाइलें टेबल पर रखी रहती थीं और उन्हें अनिश्चितकाल तक लटका कर रखा जाता था। कुछ पाइलें मंत्रियों के साथ भी घूमती रहती थीं। आज सभी आवेदन ऑनलाइन हैं। अनुमति या इनकार की सूचना भी ऑनलाइन मिलती है। अब किसी फाइल को आगे बढ़ाने की कोई गुंजाइश नहीं है। ऐसा नहीं है कि भारत में इज़ ऑफ डूइंग बिजनेस की रेटिंग 142 से 77 हो जाना अपने आप संभव हुआ। पिछले साल सबसे बड़ा सुधार भवनों और निर्माण के परमिट के मामले में हुआ। सरकार द्वारा अपनाए गए और ज्यादातर पालिकाओं द्वारा स्वीकार किए गए नए बाइलाइन में एक निश्चित समय में ऑनलाइन स्वीकृति की व्यवस्था की गई है।

टैक्सेशन में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

पालिकाओं के अलावा टैक्स विभाग परेशान करने के लिए और भ्रष्टाचार के लिए मशहूर था। प्रत्यक्ष करों के मोर्चे पर रिटर्न अब ऑनलाइन फाइल किए जाते हैं। पूछताछ भी ऑनलाइन हो गई है। एसेसमेंट ऑरर्डर्स भी अब ऑनलाइन पारित होते हैं। यहां तक कि रिफंड के बारे में ऑनलाइन बताया जाता है और भेजा भी जाता है। इस साल 99.6 प्रतिशत व्यक्तिगत इनकम टैक्स रिटर्न वैसे ही पास कर दिए गए। सीबीडीटी अब एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रही है जिसके तहत रिटर्न कुछ ही दिनों में रिटर्न एसेस किए जा सकेंगे और भेजे भी जा सकेंगे। एसेसी अब अपने एसेसिंग ऑफिसर को नहीं जान सकेंगे। अब उन दोनों के बीच कोई सीधा संवाद नहीं हो सकेगा। अब वे उन्हें उपहार आदि नहीं भेज सकेंगे। जीएसटी कुछ इस तरह का बनाया गया है कि जिससे इनपुट क्रेडिट का लाभ मिल सके। इसके लिए रजिस्टर्ड डीलरों या बैंकिंग लेनदेन के जरिये इनपुट खरीदे जाने चाहिए। इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाया जा सकेगा। पहली बार हमारे पास ऐसी सरकार रही है जिसने पांच वर्षों में कोई टैक्स नहीं बढ़ाया गया। इसके विपरीत कई टैक्स घटाए गए। इसके बावजूद टैक्सों का आधार और टैक्स वसूली बढ़ी। इससे रक्षा, गरीबी उन्मूलन और इन्फ्रास्ट्क्चर पर ज्यादा खर्च हो सका है।

कुंभ (2019) बनाम कॉमनवेल्थ गेम्स

हाल ही में प्रयागराज में संपन्न कुंभ और 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में तुलना जरूरी है। कॉमनवेल्थ गेम्स को पदकों के लिए नहीं भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है। प्रोजेक्ट में विलंब हुआ। कई तो गेम खत्म होने तक पूरे नहीं हो पाए। हर ओर भ्रष्टाचार हो रहा था। कई तो जेल भेजे गए और कई मामले अभी भी चल रहे हैं।

कुंभ 2019 इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि कैसे सरकारी धन का प्रभावी एवं ईमानदारी से इस्तेमाल हो सकता है। कुल 4200 करोड़ रपए खर्च किए गए। आठ किलोमीटर लंबे घाट, 1.2 लाख शौचालय, आवासीय परिसर, 24 करोड़ श्रद्धालुओं के लिए पंडाल बनाए गए। शहर के बुनियादी ढांचे को सुधारा गया। सभी 683 प्रोजेक्ट समय पर पूरे हुए। इस वर्ष हुए कुंभ को अब का श्रेष्ठ कुंभ माना जाता है।

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर

पूर्व प्रधान मंत्री श्री राजीव गांधी ने एक समय में कहा था कि सरकार द्वारा भेजे 100 पैसों में से सिर्फ 15 प्रतिशत ही लाभार्थी को मिल पाता है। शेष 85 प्रतिशत पैसा भ्रष्याचार की भेंट चढ़ जाता है। केन्द्र राज्य सरकार को पैसे भेजती है और वह जिलाधिकारी को। वह तहसीलदार और पंचायत प्रमुख को भेज देता है ताकि लाभार्थी को मिल सके। इसमें हर ओर हेराफेरी होती थी। आधार एक ऐसा अद्वितीय पहचान है जिसने सैकड़ों योजनाओं के लिए डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर की व्यवस्था की है। इसमें लाभार्थी के खाते में सीधे पैसै पहुंच जाते हैं। इससे बिचौलियों की छुट्टी हो जाती है। यह पैसा उसके काम आ जाता है।

वह क्या व्यवस्था है जो प्रधान मंत्री और उनकी सरकार ने बनाई है ताकि भारत में यह बदलाव आ सके?

  • कमर्शल मामलों में मंत्रियों और अधिकारियों के कोई भेदभाव नहीं। यह बाजार के नियमों के अधीन ही होगा।

  • कॉन्ट्रैक्ट देने में ईमानदारी, प्राकृतिक संसाधन और अन्य इंतजाम

  • बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के बैंक स्वतंत्र रूप से ऑपरेट कर सकते हैं।

  • काला धन निरोधी कदम, जैसे विदेशों में अवैध पैसे रखने के खिलाफ काला धन निरोधी कानून, प्रत्यक्ष और परोक्ष टैक्स प्रणाली को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना, व्यक्तिगत इंटरफेस को घटाना, दरों को कम करना, क़ॉमप्लायंस के जरिये टैक्स का आधार बढ़ाना और कर वंचना को रोकने के कदमों को कड़ाई से लागू करना।

  • डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ने यह सुनिश्चित किया है कि लाभ सीधे लाभ के योग्य के पास ही पहुंचे।

  • जांच करने वाली एजेंसियों को निष्पक्ष, स्पष्ट और प्रोफेशनल होना होगा। यह अब लागू कर दिया गया है।

 

भारत ने यह समझ लिय़ा है कि भ्रष्टाचार न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण के नियम की ही तरह है। यह ऊपर से नीचे जाता है न कि नीचे से ऊपर। अगर शीर्ष पर बैठा नेता ईमानदार है तो वह अपने सहयोगियों से ऐसा ही स्तर सुनिश्चित करेगा।

आज यह संदेश जा रहा है कि जो सिस्टम में बेईमानी कर रहे थे अब यह समझने को विवश हो रहे हैं कि ईमानदार रहने में ही भलाई है। यही फर्क है प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के एनडीए सरकार और उनके पूर्ववर्ती यूपीए में।

आखिर में

जब मैं इस ब्लॉग को अंतिम रूप दे रहा था तो एक ऑनलाइन साइट ने गांधी परिवार के गलत ढंग से समृद्ध होने के बारे में एक विस्तृत विश्लेषण प्रकाशित किया। राजनीतिक जीवन में एक साफ-सुथरा जीवन बिताने के बारे में कई व्यक्ति चर्चा करते हैं और वह है कि भारतीय राजनीतिज्ञ और उनके रिश्तेदार बिना कोई काम किए जिंदगी बिताते हैं। गांधी परिवार के रिश्तेदारों के बारे में खुलासा आपको इसका जवाब देगा। परंपरागत रूप से भ्रष्टाचार घूस के जरिय़े किया जाता है। लेकिन एक नया तरीका निकला है। बिचोलिये और रातों-रात उड़ जाने वाले ऑपरेटर आपको “स्वीट हार्ट डील” दिला सकते हैं। न्यूनतम निवेश वाले लोग जिन्हें विशेषाधिकार प्राप्त है उन लोगों को ढेर सारा लाभ पहुंचाया जाता है। इससे उन्हें पूंजी मिल जाती है। राजनीतिक हिस्सेदारी से गुडविल खरीदा जा सकता है। इससे फैसलों को प्रभावित करने की ताकत मिलती है। जब इनका खुलासा होता है तो फायदा उठाने वाले चालाकी वाले बिज़नेस फैसलों के पीछे छुप जाते हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रथम परिवार के रिश्तेदार द्वारा इस तरह से पूंजी इकट्ठा करने की पूरी जांच होनी चाहिए। इसके बाद सच्चाई सामने आ जाएगी। जो शीशे के मकान में रहते हैं वो दूसरों के मकान पर पत्थर नहीं फेंकते।

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