राजनैतिक कार्य

“Agenda 2019 – Part-7 Mahamilawat or Gathbandhan – A Race to the Bottom" by Hon'ble Union Minister Shri Arun Jaitley


17-03-2019

दिनांक : 17 मार्च, 2019

एजेंडा- 2019 पार्ट- 7

महामिलावट या गठबंधन- रसातल में जाने की दौड़

                                                               अरूण जेटली

आज भारत इतिहास बनाने के कगार पर है। अतीत की औद्योगिक क्रांतियों को नजरअंदाज कर देना चाहिए। हमें गरीबी की समस्या और विकास के अभाव से लड़ना होगा। साढ़े चार दशकों की नियंत्रित अर्थव्यवस्था ने हमारी समस्याएं बढ़ाईं। जब हम अतीत के आदर्शवादी जंजीरों से मुक्त हुए तो ही भारत ने उच्च विकास दर हासिल की। आज हम उस स्थिति में पहुंच गए हैं कि दुनिया के अन्य सभी देशों से तेजी से बढ़ रहे हैं। हम अपनी अर्थव्यवस्था के आकार को बढ़ा रहे हैं। हमारा राजस्व तेजी से बढ़ रहा है जिस कारण से हम अंततः गरीबों को एक बेहतर जिंदगी देने के लिए संसाधन हस्तांरित करने में सफल हो रहे हैं। हमारा इन्फ्रास्ट्रक्चर हर साल बढ़ रहा है जिनमें बेहतर हाईवे, ज्यादा एयरपोर्ट, बेहतर रेलवे सिस्टम, बंदरगाहों की बढ़ती क्षमता शामिल है। अगर यह ट्रेंड अगले दो दशकों तक बना रहा तो भारत एक नए लीग में पहुंच जाएगा।

इस दिशा में हमारे प्रयासों को तेज करने के लिए जरूरी शर्त है कि भारत में राजनीतिक स्थिरता बनी रहे, एक सुस्पष्ट नीति निर्देश, एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व हो। अगर हम इनमें से एक में भी फिसले तो हम अपने लोगों को और भविष्य की पीढ़ियों को नीचा दिखा देंगे। भारत इन हालात में ऐसे अवसर गंवा नहीं सकता।

भारत का संघात्मक ढांचा

भारत का संघात्मक ढांचा इसके भौगोलिक और संवैधानिक रूप से अंतर्निहित है। हमारे संविधान में “इंडिया” यानी भारत राज्यों का संघ होगा। हमारे राज्य आर्थिक रूप से मजबूत हों। यही भारतीय संघ का मूलभाव है। इसी तरह यह तथ्य कि भारत को राज्यों का संघ बने रहने के लिए एक मजबूत संघ होना चाहिए, यह महत्वपूर्ण है। अगर मजबूत संघ न हो तो भारत और भारत के संघवाद दोनों को झेलना पड़ेगा। इस मामले में स्पष्टता जरूरी है। भारत राज्यों का संघ है। यह राज्यों का परिसंघ नहीं है। यही एनडीए और यूपीए दोनों में मूलभूत फर्क है। संघात्मक मोर्चे के गठन के विचार में यही मूल त्रुटि है। संविधान निर्माताओं में एक दृष्टि थी। वे बुद्धिमान लोग थे। जब मह्तवपूर्ण क्षेत्र जैसे रक्षा, संप्रुभता, भारत की सुरक्षा, विदेश नीति अंततः केन्द्र सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है तो क्या भारत की सुरक्षा बिना किसी मजबूत संघ के हो सकती है? केन्द्र में एक मजबूत दल के बिना कोई भी संघीय मोर्चा नहीं बन सकता है।  

दोनों एनडीए सरकारों का विश्लेषण

श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में कई महत्वपूर्ण विशेषताएं थीं। यह भारत के संघवाद के सार का प्रतिनिधित्व करता था क्योंकि इसमें क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व था। बीजेपी की प्रमुखता के बारे में पूर्ण स्पष्टता थी, इसके आकार ने भी गठबंधन के प्रभावी केन्द्र की भूमिका निभाई। यह भी स्पष्ट था कि अटल जी सरकार के अविवादित नेता थे। यही बात श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले दूसरे एनडीए के साथ भी लागू होती है। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी को 282 सीटें मिली थीं और उसके पास पूर्ण बहुमत था। लेकिन संघवाद का सम्मान करते हुए उसने अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार का गठन किया। गठबंधन के मूल में एक बड़ी पार्टी थी। नेतृत्व के लिए कोई प्रतियोगिता नहीं थी। प्रधान मंत्री के शब्द ही आखिरी शब्द थे। इस तरह ही दोनों सरकारें चला करती थीं। नीतियों के मामले में स्पष्टता थी और सरकार के पास कठोर निर्णय लेने की क्षमता थी और वह कार्य भी कर देती थी।

महामिलावट गठबंधन

जिस महामिलावट गठबंधन की आज कल्पना की जा रही है वह विपदा का मार्ग है। यह रसातल की ओर जाने की दौड़ है। नेता के मुद्दे पर भी खींचतान है। चार लोगों ने प्रधान मंत्री बनने की इच्छा जताई जिनमें श्री राहुल गांधी, बहन मायावती, ममता दीदी और श्री शरद पवार हैं। हर कोई अपना आधार बढ़ाना और प्रतिस्पर्धी का घटाना चाहता है। बीएसपी उत्तर प्रदेश में अपना आधार और बढ़ाना चाहती है और कांग्रेस को कई राज्यों में कमज़ोर करना चाहती है। तृणमूल कांग्रेस बंगाल में अपनी सीटें बढ़ाना चाहती है और इसलिए वह उस राज्य में कांग्रेस के साथ नहीं है। वह नहीं चाहती कि कांग्रेस बंगाल में कोई सीट जीते। कांग्रेस उन जगहों में अकेले लड़ना चाहती है जहां उसके पास थोड़ी ताकत है। अन्य जगहों में वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से भी गठबंधन करना चाहती है। पवार साहब अपनी सबसे बड़ी इच्छा पूरी करना चाहते हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि त्रिशंकु लोकसभा बने जहां वह अपने पत्ते खेल सकें। चुनाव के बाद महासंग्राम होगा, ऐसा साफ दिख रहा है।

इस गठबंधन में अवसरवादिता साफ दिखाई दे रही है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन की बातचीत चल रही है। आम आदमी पार्टी कांग्रस के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रतिक्रिया के तौर पर बनी थी। आज यही पार्टी कांग्रेस से गठबंधन के लिए गिड़गिड़ा रही है। श्री एनटी रामाराव ने कांग्रेस के विकल्प के तौर पर तेलुगू देशम पार्टी बनाई थी। आज चंद्रबाबू नायडू राहुल गांधी के सारथी बनना चाहते हैं। बंगाल में कांग्रेस और वाम दल गठबंधन करना ताहते हैं। राहुल गांधी ने केरल में जहां दोनों एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं, सीपीएम के खिलाफ भाषण देने का ढोंग किया था। डॉक्टर राम मनोहर लोहिया इस नारे “कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ” के मौलिक सृजनकर्ता थे और अब शरद यादव राहल गांधी की गोद में जा बैठे हैं। समाजवादी पार्टी के श्री अखिलेश य़ादव कांग्रेसियों से ज्यादा कांग्रेसी दिखते हैं। उन लोगों ने डॉक्टर लोहिया की विरासत दफन कर दी है।

राजनीतिक स्थिरता और नीतियां

महामिलावटी गठबंधन निश्चित रूप से सिर्फ राजनीतिक अस्थिरता लाएगा। ऐसे गैर-आदर्शवादी गठबंधन कुछ ही महीने चल पाए हैं। ऐसा इतिहास का जाहिर सा सबक है। चौधरी चरण सिंह, श्री वीपी सिंह, श्री चंद्रशेखर, श्री एचडी देवे गौड़ा और श्री इंद्र कुमार गुजराल की सरकारें कुछ ही महीने चल पाईं। कौन भारत के राजनीतिक अस्थिरता वाले माहौल में निवेश करना चाहेगा?  भारतीय निवेशक भी क्या बाहर जाकर स्थिरता के माहौल वाले देशों में निवेश नहीं करना चाहेंगे? जहां अस्थिरता होती है वहां भ्रष्टाचार होता है। जिन लोगों को थोड़ा ही राजनीतिक अवसर मिलता है वे उसका खूब फायदा उठा लेते हैं। यही अतीत का अनुभव है।

इस तरह के गठबंधन की क्या नीति होगी? क्या हर क्षेत्रीय पार्टी अपने राज्य के लिए स्पेशल स्टेटस मांगेगी? उस समय उस केन्द्रीय फंड का क्या होगा जो गरीबी मिटाने, रक्षा तथा सुरक्षा के लिए आवंटित की जाएगी? क्षेत्रीय मांगों को पूरा करने के लिए क्या ऐसा किया जाएगा? प्रधान मंत्री द्वारा इन्फ्रास्ट्राक्चर को बढ़ावा देने और गरीबी उन्मूलन के लिए शुरू की गई नीतियों का क्या होगा? क्या आतंकवाद के खिलाफ युद्ध ऐसे गठबंधन की वरीयता होगी या फिर यह बैंक वोट पॉलिटिक्स की भेंट चढ़ जाएगा। क्या भारत किसी राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से चलेगा या उस सरकार द्वारा चलेगा जो यह विश्वास करती है कि भारत राज्यों का एक परिसंघ है।

महामिलावट के संभावित सदस्यों में क्या कॉमन है?

महामिलावट के गठबंधन के सदस्यों के बीच बहुत कम ही बातें कॉमन हैं। सबसे पहले उनके पास कोई सकारात्मक कार्यक्रम नहीं है। वे नकारात्मक राजनीति पर चलते हैं। वे सिर्फ एक व्यक्ति को पद से हटाना चाहते हैं। दूसरी बात, ज्यादातर राजनीतिक समूहों में वंशवादी राजनीतिक दलों और वंशवादी समूह हैं। कुछ मामलों में तो पहली पीढ़ी का वंशवादी अभी भी पार्टी को नियंत्रित कर रहा है, कुछ मामलों में नई पीढ़ी पार्टी को नियंत्रित कर रही है। ये वो पार्टियां हैं जिनमें कोई भी आंतरिक पार्टीगत ढांचा या अंदरूनी लोकतंत्र या आंतरिक जवाबदेही नहीं है। कई तो महज क्षेत्रीय भावनाओं के आधर पर जीते हैं। यही उनकी आइडियोलॉजी है। तीसरे, महामिलावट के ज्यादातर के शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। उन्हें सही रूप में क्लिपटोक्रैट क्लब कहा जाता है। चौथी बात है कि उनमें कोई भी बात या सिद्धांत कॉमन नहीं है। पवार साहब मार्केट इकोनॉमी में यकीन करते हैं। कई ऐसे हैं जैसे कि कम्युनिस्ट जो नियंत्रित बाज़ार चाहते हैं। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष गर्व से अपने को वामपंथियों से भी ज्याद वाम विचारधारा का बताते हैं। पांचवीं बात है कि इन लोगों का सरकार चलाने का ट्रैक रिकॉर्ड भयावह है। गठबंधन में तो कई अप्रसांगिक हैं।   

इतिहास के कगार पर खड़े भारत और भारतीयों को एक विकल्प चुनना होगा। क्या वे एक परखे हुए, प्रमाणित और काम करने वाले नेता या गैर नेताओं की एक अराजक भीड़ को चुनेंगे? क्या भारत उस तरह के सरकार की ओर देख रहा है जो विकास को बढ़ावा देगी और गरीबी उन्मूलन का काम करेगी या फिर उन लोगों की सरकार को जो अपना फायदा उठाने में माहिर हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि एक विकसित हो रहे समाज के महात्वाकांक्षी लोग सही निर्णय लेंगे।

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