
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं लोकसभा सांसद डॉ संबित पात्रा की प्रेस वार्ता के मुख्य बिन्दु
वर्ष 2008 में तत्कालीन यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी के निर्देश पर प्रधानमंत्री संग्रहालय में संग्रहित पंडित नेहरू द्वारा विभिन्न हस्तियों को लिखे गए पत्रों को 51 डब्बों में रख कर उनके (सोनिया गांधी) घर पहुंचाया गया।
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प्रधानमंत्री म्यूजियम मेमोरियल लाइब्रेरी के सदस्य और अहमदाबाद के इतिहासकार रिजवान कादरी ने राहुल गांधी को चिट्ठी लिखी कि जवाहर लाल नेहरू की 51 कार्टन चिट्ठियां यूपीए की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास हैं, कृपया उस राष्ट्रीय धरोहर को वापस करने में आप मदद करें।
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देश की धरोहर को सोनिया गांधी जी तुरंत वापस करें। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि जितनी चिट्ठियां वापस गई थीं, क्या उतनी ही चिट्ठियां वापस आईं या नहीं?
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ये चिट्ठियां ऐतिहासिक दस्तावेज हैं, यह किसी की निजी संपत्ति नहीं है और इनमें किस प्रकार की बात-चीत हुई है, यह देश को जानने का अधिकार है।
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नेहरू द्वारा विभिन्न व्यक्तियों और हस्तियों को लिखे गए पत्रों का संग्रहण 1971 में प्रधानमंत्री संग्रहालय को दिए गए थे।
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2010 से इन सभी चिट्ठियों का डिजिटलीकरण होना था, लेकिन डिजिटलीकरण से पहले ही सोनिया जी ने चिट्ठियों को अपने पास मंगा लिया। इससे स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि इन चिट्ठियों में ऐसी कौन सी बातचीत थी कि गांधी परिवार नहीं चाहती कि वो बातें देश के सामने आए।
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देश जानना चाहता है कि आखिर इन चिट्ठियों में ऐसा क्या है, जिसमें माउंटबेटन और नेहरू जी की बातचीत हुई है या नेहरू जी की जगजीवन राम व जयप्रकाश नारायण जी से बात हुई थी। भाजपा देश की विपक्षी पार्टी से प्रश्न करती है कि आखिर वो उत्तर क्यों नहीं दे रहे हैं।
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राहुल गांधी के व्यवहार के कारण उनके गठबंधन के घटक दल के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी उन्हें खरी खोटी सुनाते हुए कहा है कि राहुल गांधी को अगर चुनाव लड़ना नहीं आता, तो उसका ठीकरा ईवीएम पर न फोड़ें।
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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद डॉ संबित पात्रा ने सोमवार को नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री म्यूजियम मेमोरियल लाइब्रेरी में रखी नेहरू-माउंटबेटन, बाबू जगजीवन राम और जय प्रकाश नारायण के मध्य संवाद की अहम चिट्ठियों को सोनिया गांधी के घर भेजे जाने की आलोचना की। डॉक्टर संबित पात्रा ने कहा कि ये महज चिट्ठियां नहीं हैं, यह ऐतिहासिक दस्तावेज भी हैं और इनमें किस प्रकार की बात-चीत हुई, यह देश को जानने का अधिकार है।
डॉ. पात्रा ने कहा कि मीडिया और अखबारों में प्रधानमंत्री संग्रहालय से संबंधित एक गंभीर मुद्दा चर्चा में है। वर्ष 1964 में दिल्ली के तीन मूर्ति मार्ग पर स्थित जवाहरलाल नेहरू म्यूजियम और लाइब्रेरी, जिसे अब प्रधानमंत्री संग्रहालय के रूप में जाना जाता है, जिसमें भारत के प्रधानमंत्रियों से जुड़ी ऐतिहासिक सामग्रियां संजोई गई हैं। प्रधानमंत्री संग्रहालय का प्रबंधन प्राइम मिनिस्टर मेमोरियल ट्रस्ट के 29 सदस्यों की टीम के अधीन है। फरवरी 2024 में ट्रस्ट की एक बैठक हुई थी, जिसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया। इस तथ्य में यह बताया गया कि पं. नेहरू द्वारा विभिन्न व्यक्तियों और हस्तियों को लिखे गए पत्रों को 1971 में प्रधानमंत्री संग्रहालय को दिए गए थे। लेकिन वर्ष 2008 में तत्कालीन यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी के निर्देश पर एम.वी. राजन नामक प्रतिनिधि ने इन पत्रों का निरीक्षण कर उन्हें चिन्हित किया। इसके बाद, 5 मई 2008 को संग्रहालय के तत्कालीन निदेशक से अनुमति लेकर नेहरू के पत्रों को 51 डिब्बों में संग्रहित करके सोनिया गांधी के घर ले जाया गया। इन पत्रों में कई ऐतिहासिक और अहम संवाद शामिल हैं, जैसे एडविना माउंटबेटन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया था और बाबू जगजीवन राम से संबंधित अहम पत्राचार।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि जब प्रधानमंत्री संग्राहलय की समिति नेहरू के पत्राचार के विषय पर बैठक कर रहीं थी, तो उन्होंने एक कानूनी सुझाव लेने के बारे में सोचा क्योंकि यह केवल चिट्ठियां नहीं हैं, यह ऐतिसासिक दस्तावेज हैं और इनमें किस प्रकार की बात-चीत हुई, यह देश को जानने का अधिकार है। यह किसी की निजी संपत्ति नहीं है क्योंकि 1971 में इन्हें दान किया गया था और राष्ट्रीय धरोहर में शामिल किया गया था। यह म्यूजियम का एक हिस्सा था और जिस प्रकार म्यूजियम से कोई भी मूर्ति ले जाना न्यायोचित नहीं है, ठीक उसी प्रकार चिट्ठियां ले जाना भी क्या न्यायोचित है? इसको लेकर कमेटी ने कानूनी राय ली और दिसंबर में राहुल गांधी को एक चिट्ठी लिखी। अहमदाबाद के एक इतिहासकार रिजवान कादरी, जो प्रधानमंत्री म्यूजियम मेमोरियल लाइब्रेरी के एक सदस्य भी हैं, उन्होंने राहुल गांधी को चिट्ठी लिखी कि जवाहर लाल नेहरू की 51 डब्बे चिट्ठियां यूपीए की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास हैं, कृपया इस राष्ट्रीय धरोहर को वापस करने में आप मदद करें।
डॉ. पात्रा ने कहा कि यह इतिहास की विरासत है, किसी परिवार की अपनी विरासत नहीं। ये चिट्ठियां भले ही किसी के दादा जी या पिता जी ने लिखी हों, लेकिन इससे यह उनकी निजी संपत्ति नहीं हो जाती। देश के इतिहास को अच्छी तरीके से समझने और जानने के लिए यह अनिवार्य है कि आप इन चिट्ठियों का संकलन करें, उनका अध्ययन करें और देश को पढ़ाएं। 2010 से इन सभी चिट्ठियों का डिजिटलीकरण होना था, उन्हे स्कैन करके आगे बढ़ाना था, लेकिन डिजिटलीकरण से पहले ही सोनिया जी ने उन चिट्ठियों को अपने पास मंगा लिया था। इससे स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि इन चिट्ठियों में ऐसी कौन सी बातचीत थी कि गांधी परिवार नहीं चाहता कि देश को इन चिट्ठियों के विषय में पता चले।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि देश की जनता जानना चाहती है कि आखिर इन चिट्ठियों में ऐसा क्या है, जिसमें माउंटबेटन और नेहरू जी की बातचीत हुई है या नेहरू जी की जगवन राम जी व जय प्रकाश नारायण जी से बात हुई थी? इसमें दो गंभीर विषय हैं- पहला यह कि गांधी परिवार दिखा रही है कि उन्होंने चिट्ठियों को अपनी निजी संपत्ति मानकर वापस ले लिया। दूसरा विषय ये है कि इस विषय को लेकर अब तक कोई उत्तर नहीं आया है। भाजपा देश की विपक्षी पार्टी से प्रश्न करती है कि आखिर वो इस मामले में उत्तर क्यों नहीं दे रहे हैं? डॉ. पात्रा ने कहा कि आज अखबारों में यह भी पढ़ने को मिला है कि उनके इसी व्यवहार के कारण उनके गठबंधन के घटक दल के उमर अब्दुल्ला ने उन्हें खरी खोटी सुनाई है कि राहुल जी आपको चुनाव लड़ना नहीं आता तो उसका ठीकरा ईवीएम पर मत फोड़िए। लीडर, बन के उबरते हैं, लीडर बनने की मांग नहीं कर सकते। गांधी परिवार और राहुल गांधी की सच्चाई अब उनके घटक दल भी जानने लगे हैं। भाजपा भी यह कहना चाहती है कि देश की धरोहर को सोनिया गांधी जी तुरंत वापस करें। इसकी यह भी जांच होनी चाहिए कि जितनी चिट्ठियां वापस गई थीं, क्या उतनी ही चिट्ठियां वापस आईं या नहीं?
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