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100 करोड़ टीके, टीम इंडिया की कामयाबी: पढ़ें, देश की इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विशेष आलेख


22-10-2021

भारत ने टीकाकरण की शुरुआत के मात्र नौ महीनों बाद ही 21 अक्तूबर, 2021 को टीके की 100 करोड़ खुराक का लक्ष्य हासिल कर लिया है। कोविड-19 से मुकाबला करने में यह यात्रा अद्भुत रही है, विशेषकर जब हम याद करते हैं कि 2020 की शुरुआत में परिस्थितियां कैसी थीं। मानवता 100 साल बाद इस तरह की वैश्विक महामारी का सामना कर रही थी और किसी को भी इस वायरस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। हमें यह स्मरण होता है कि उस समय स्थिति कितनी अप्रत्याशित थी, क्योंकि हम एक अज्ञात और अदृश्य दुश्मन का मुकाबला कर रहे थे, जो तेजी से अपना रूप भी बदल रहा था।


चिंता से आश्वासन तक की यात्रा पूरी हो चुकी है और दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के फलस्वरूप हमारा देश और भी मजबूत होकर उभरा है। इसे वास्तव में एक भगीरथ प्रयास मानना चाहिए, जिसमें समाज के कई वर्ग शामिल हुए हैं। पैमाने का अंदाजा लगाने के लिए, मान लें कि प्रत्येक टीकाकरण में एक स्वास्थ्यकर्मी को केवल दो मिनट का समय लगता है। 


इस दर से, इस उपलब्धि को हासिल करने में लगभग 41 लाख मानव दिवस या लगभग 11 हजार मानव वर्ष लगे। गति और पैमाने को प्राप्त करने तथा इसे बनाए रखने के किसी भी प्रयास के लिए, सभी हितधारकों का विश्वास महत्वपूर्ण है। इस अभियान की सफलता के कारणों में से एक, वैक्सीन तथा बाद की प्रक्रिया के प्रति लोगों का भरोसा था, जो अविश्वास और भय पैदा करने के विभिन्न प्रयासों के बावजूद कायम रहा। 

हम लोगों में से कुछ ऐसे हैं, जो दैनिक जरूरतों के लिए भी विदेशी ब्रांडों पर भरोसा करते हैं। हालांकि, जब कोविड-19 वैक्सीन जैसी महत्वपूर्ण बात सामने आई, तो देशवासियों ने सर्वसम्मति से 'मेड इन इंडिया' वैक्सीन पर भरोसा किया। यह एक महत्वपूर्ण मौलिक बदलाव है। यह टीका अभियान इसका उदाहरण है कि यहां के नागरिक और सरकार जनभागीदारी की भावना से लैस होकर साझा लक्ष्य के लिए साथ आएं, तो यह देश बहुत कुछ हासिल कर सकता है। 

जब भारत ने टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया, तो 130 करोड़ भारतीयों की क्षमताओं पर संदेह करने वाले कई लोग थे। पर जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन की तरह, लोगों ने यह दिखा दिया कि अगर उन्हें भरोसेमंद साथी बनाया जाए, तो परिणाम कितने शानदार हो सकते हैं। हमारे युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य कर्मियों, सामाजिक एवं धार्मिक नेताओं को इसका श्रेय जाता है कि टीका लेने के मामले में भारत को विकसित देशों की तुलना में कम हिचकिचाहट का सामना करना पड़ा है।

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