क्या बरेली के 'निकाह-हलाला' कांड ने आपकी अंतरात्मा को चोट नहीं पहुंचाई?
- अरूण जेटली
कुछ घटनाएं ऐसी घिनौनी और निर्लज्ज होती हैं जो आपकी अंतरात्मा झकझोर देती हैं। वे समाज सुधार के कदम उठाने के लिए विवश करती हैं। पर्सनल लॉ के नाम पर अन्याय इसका बेहतरीन उदाहरण है।
पिछले कुछ दशकों में कई समुदायों ने अपने पर्सनल लॉ में महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं। इन परिवर्तनों का मकसद और दिशा लिंग भेद को दूर करना, महिलाओं और बच्चों की रक्षा तथा सम्मान से जीने का अधिकार सुनिश्चित करना रहा है। सैकड़ों वर्षों से चल रही कई सामाजिक प्रथाएं जैसे सती और छूआछूत अब असंवैधानिक हैं।
बरेली में हाल में हुई एक घटना ने मेरे विवेक को चोट पहुंचाई है। यह महिला जिसकी शादी 2009 में हुई उसे उसके पति ने दो बार, पहली बार 2011 और दूसरी बार 2017 में तलाक दे दिया था और वह भी ट्रिपल तलाक के जरिये। उसके परिवार ने उस पर पत्नी को वापस लेने के लिए दबाव डाला। दोनों बार उसे बेसुध हालत में निकाह-हलाला में शामिल होने को कहा गया। पहली बार अपने ससुर के साथ और दूसरी बार देवर के साथ। दोनों ने उसके साथ बलात्कार किया। न्यूज एजेंसी पीटीआई ने 2 सितंबर, 2018 को एक ऐसे ही मामले के बारे में बताया था जो उत्तर प्रदेश के संभल में हुआ। इस 21वीं सदी में भी महिलाओं की इज्जत के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में यह घटना घटी जिससे हर आदमी का सिर शर्म से झुक जाए। इस शर्मनाक घटना के बाद ससुर और देवर ने ट्रिपल तलाक का फिर सहारा लिया ताकि उस महिला को उसका पति पुनः स्वीकार करे।
भारत में ट्रिपल तलाक का यह स्वीकृत तरीका नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल किए जाने वाले तलाक को असंवैधानिक घोषित किया है लेकिन कोई रोक महज एक गलत बात होगी जिसमें किसी तरह के दंड का प्रावधान नहीं होगा। बड़ी तादाद में मुस्लिम पुरूष और कट्टरपंथी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की उपेक्षा कर रहे हैं।
दुर्भाग्यवश, जब उपरोक्त खबर को अखबारों में पढ़कर मनावीय संवेदना जगनी चाहिए थी तो राहुल गांधी और उनकी मंडली ने अल्पसंख्यकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए संसद में विचाराधीन इस बिल को वापस भेजने की बात कही। इस बिल में ट्रिपल तलाक लेने वालों को सजा का प्रावधान है। इस बार फिर इतिहास ने अपने को दोहराया है, न ही व्यंग्य और न ही ट्रेजडी के तौर पर। इसने क्रूरता की मानसिकता को दर्शाया है। स्वर्गीय राजीव गांधी ने संसद में सुप्रीम कोर्ट के शाह बानो मामले पर दिए फैसले को पलट दिया, जिसमें तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को जीवन यापन भत्ता देने की बात कही गई थी। लेकिन राजीव गांधी ने उन्हें गरीबी और बदहाली में छोड़ दिया। आज 32 साल बाद उनके बेटे न एक और पीछे जाने वाला कदम उठाया है ताकि वे ने केवल निराश्रित रहें बल्कि एक ऐसी जिंदगी जीने को बाध्य हो जाएं जो मनुष्य के लायक नहीं है। बरेली की एक मुस्लिम महिला को इसी प्रकार अमानवीय जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया है।
वोट जरूरी है, तो नाम भी। राजनीतिक अवसरवादी लोग अगले दिन के अख़बारों की सुर्खियां देखने को ललायित हैं जबकि राष्ट्र निर्माता अगली सदी की बातें करते हैं।
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