
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्य सभा सांसद डॉ सुधांशु त्रिवेदी की प्रेस वार्ता के मुख्य बिंदु
राहुल गाँधी को पता था कि संभल जाया नहीं जा सकता, उनकी संभल जाने की मंशा थी भी नहीं, उन्हें तो मीडिया में सपा से ऊपर फुटेज लेने का बहाना चाहिए था। इसलिए राहुल गाँधी ने संभल जाने की रस्म अदायगी की।
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संसद में जब इंडी गठबंधन के घटक दलों ने अलग-अलग राह पकड़ते हुए अपनी राह खुद तय कर ली तो औपचारिकता नहीं, विवशतावश राहुल गाँधी को संभल का राग अलापना पड़ा।
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संभल जाने की घटना वास्तव में राहुल गांधी की राजनीतिक प्रपंच और कांग्रेस की चयनात्मक राजनीति को उजागर करता है। राहुल गांधी की संवेदनाओं का आधार मानवीयता नहीं, बल्कि सियासी नफा-नुकसान है। उनके हर कदम सियासी तराजू पर तोलकर तय किए जाते हैं।
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संभल मुद्दे पर इससे पहले कांग्रेस के किसी नेता ने कुछ नहीं किया, लेकिन आज अचानक राहुल गांधी मीडिया आकर्षण पाने के लिए और इंडी गठबंधन को साथ न रख पाने की छटपटाहट में संभल जाने का प्रयास कर रहे हैं।
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संभल घटना के बाद प्रियंका गांधी का बयान देना दर्शाता है कि कांग्रेस में प्रतिस्पर्धा केवल विपक्षी इंडी गठबंधन तक सीमित नहीं रही, बल्कि पार्टी के भीतर भी शुरू हो गयी है।
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नेता प्रतिपक्ष होने के नाते राहुल गांधी गांधी का नजरिया हर घटना पर निष्पक्ष होना चाहिए, न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए चुनिंदा घटनाओं पर। संदेशखाली, आरजी कर, हिमाचल में त्रासदी, तमिलनाडु में अवैध शराब से मौत और कर्नाटक में कांग्रेस नेता की बेटी की हत्या पर राहुल गाँधी की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
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राहुल गांधी को कांग्रेस और इंडी गठबंधन शासित राज्यों में भी जनता के दुख-दर्द को समझने की आवश्यकता है, लेकिन उनकी चुप्पी यह साफ करती है कि कांग्रेस का नेतृत्व सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए काम करता है, न कि जनसेवा के लिए।
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पंजाब में जिस तरह से पवित्र स्वर्ण मंदिर के परिसर में पूर्व उप-मुख्यमंत्री और अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पर जानलेवा हमला हुआ, वह बताता है कि पंजाब में क़ानून-व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। जब से पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, अपराधियों के हौसले बुलंद हो गए हैं।
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पंजाब के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि पुलिस कार्यालय पर हमला करके अपराधियों को छुड़ा लिया जाए, लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार में यह भी दृश्य पूरे देश ने होता हुआ देखा।
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एक नॉन ऑफिशियल मुख्यमंत्री और एक ऑफिशियल मुख्यमंत्री के बीच कुछ तो है कि उनका ध्यान शासन-प्रशासन की जगह आपसी खींचतान पर है।
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पंजाब में 2021-22 में लगभग 23 हजार करोड़ का निवेश आया था, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस निवेश में अब 80 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। एक तरफ आर्थिक निवेश में गिरावट आ रही है और दूसरी तरफ कानून व्यवस्था में गिरावट आ रही है।
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भारतीय जनता पार्टी के राज्य सभा सांसद एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ सुधांशु त्रिवेदी ने आज बुधवार को पार्टी केन्द्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में राहुल गांधी द्वारा संभल जाने के सियासी ड्रामे पर जमकर निशान साधा। डॉ त्रिवेदी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्र संभल जाने की घटना वास्तव में राहुल गांधी की राजनीतिक प्रपंच और कांग्रेस की चयनात्मक राजनीति को उजागर करता है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के बीच अब एक द्वंद चल रहा है। एक ओर समाजवादी पार्टी ने जब अपना विषय ही बदल दिया, तो कांग्रेस पार्टी को मजबूरन उस दिशा में जाना पड़ रहा है। पवित्र स्वर्ण मंदिर में गोली चलने की घटना पर उन्होंने कहा कि पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यकाल में क़ानून-व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और पंजाब की आर्थिक हालत बिगड़ गयी है।
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि संसद का सत्र चल रहा और संसद के सत्र में इंडी गठबंधन का बिखराव देश की जनता को स्पष्ट दिखाई दे रहा है। कल राज्य सभा में नियम 267 के तहत चर्चा के लिए 42 नोटिस आए थे, लेकिन इंडी गठबंधन के किसी भी दो दल ने एक विषय पर बहस के लिए नोटिस नहीं दिया। कांग्रेस पार्टी के एजेंडा के विपरीत, इंडी गठबंधन के बाकी दलों ने अपनी राह खुद तय कर ली। सदन के पटल पर सहयोगी दलों का साथ लेने की असफलता के बाद आज राहुल गांधी उस विवशता में एक रस्म अदा करने के लिए उत्तर प्रदेश के संवेदनशील क्षेत्र संभल में जाने का प्रयास कर रहे हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव भी कह रहे हैं कि कांग्रेस औपचारिकता निभा रही है, लेकिन उनके बयान को थोड़ा अलग रूप से कहा जाए तो कांग्रेस औपचारिकता नहीं विवशता निभा रही है। इस मुद्दे पर इससे पहले कांग्रेस के किसी नेता ने कुछ नहीं किया, लेकिन आज अचानक राहुल गांधी मीडिया आकर्षण पाने के लिए और इंडी गठबंधन को साथ न रख पाने की छटपटाहट में यह कार्य कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के बीच एक द्वंद चल रहा है। एक ओर समाजवादी पार्टी ने जब अपना विषय ही बदल दिया, तो कांग्रेस पार्टी को मजबूरन उस दिशा में जाना पड़ा। शायद कांग्रेस को लगा होगा कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है उसके बावजूद सपा ने इस मुद्दे पर ज्यादा माइलेज ले लिया है। राहुल गांधी ने सोच कि ऐसा कार्य किया जाए जिसमें मीडिया माइलेज कांग्रेस को ज्यादा मिल सके। यह प्रतीत होता है कि यह प्रयास दोनों पार्टियों द्वारा अपने कोर वोट बैंक को लुभाने की प्रतिस्पर्धा से प्रभावित है। इसमें कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई संवेदनशीलता या कोई सहानुभूति का तत्व दिखाई नहीं दे रहा है।
डॉ त्रिवेदी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की पक्षपाती राजनीति और संवेदनहीनता पर हमला करते हुए कहा कि राहुल गांधी, जो वर्षों से कांग्रेस के अघोषित नंबर एक नेता हैं और विपक्ष के प्रमुख चेहरा होने का दावा करते हैं, उनका नजरिया हर घटना पर निष्पक्ष होना चाहिए, न कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए चुनिंदा घटनाओं पर संवेदनाएं व्यक्त करनी चाहिए। क्या राहुल गांधी ने तमिलनाडु में जून 2024 में अवैध शराब त्रासदी पर पीड़ितों से मिलने की जरूरत महसूस की थी? क्या फरवरी 2024 में पश्चिम बंगाल के साधेशखली में हुए अत्याचार, जिसे भारत की सबसे भयानक घटनाओं में गिना गया, क्या इसपर राहुल गांधी की संवेदनाएं जागीं थीं? 6 जुलाई 2024 को तमिलनाडु में बीएसपी पदाधिकारी की हत्या पर राहुल गांधी की चुप क्यों रहे? हिमाचल प्रदेश में 2023 की प्राकृतिक आपदा, आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ अत्याचार, 2020 में पालघर मॉब लिंचिंग, 2022 की करौली हिंसा और हाल ही में करहल में दलित बेटी के साथ हुए अत्याचार जैसी घटनाओं पर भी राहुल गांधी ने चुप्पी साधे रखी। राहुल गांधी की यह चुप्पी न केवल उनकी उदासीनता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाता है कि उनका नेतृत्व केवल राजनीतिक बयानबाजी और चुनिंदा घटनाओं तक सीमित है। एक जिम्मेदार नेता के रूप में राहुल गांधी को कांग्रेस और इंडी गठबंधन शासित राज्यों में भी जनता के दुख-दर्द को समझने और उन पर संवेदनशीलता से प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता है। लेकिन उनकी चुप्पी यह साफ करती है कि कांग्रेस का नेतृत्व सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए काम करता है, न कि जनसेवा के लिए।
भाजपा सांसद ने कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद जब उनके नेताओं के साथ अनैतिक और नृशंस घटनाएं होती हैं, तब भी राहुल गांधी की संवेदनाएं नहीं जागतीं। कांग्रेस के एक नगर पंचायत सदस्य की बेटी नेहा हिरामत को कर्नाटक में ऑन कैमरा, चाकुओं से गोद दिया जाता है, लेकिन राहुल गांधी ने इस पर एक शब्द नहीं कहा। इसके अलावा इस विषय पर कांग्रेस सरकार के गृहमंत्री ने एक गैर जिम्मेदाराना और शर्मनाक बयान दिया। जिसमें उन्होंने इस जघन्य हत्या को "आपसी संबंधों का मामला" कहकर खारिज कर दिया। यह कांग्रेस के नेतृत्व की एक संवेदनहीनता और गैर जिम्मेदाराना रवैये को दर्शाता है।
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि कर्नाटक में कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेता अखंड श्रीनिवास मूर्ति के घर पर भीड़ द्वारा प्राणघाती हमला किया गया, लेकिन राहुल गांधी की संवेदनाएं फिर भी नहीं जागीं। यह साफ संकेत है कि राहुल गांधी की संवेदनाओं का आधार मानवीयता नहीं, बल्कि सियासी नफा-नुकसान है। उनके हर कदम सियासी तराजू पर तोलकर तय किए जाते हैं। अब प्रियंका गांधी का बयान इस ओर इशारा करता है कि कांग्रेस में प्रतिस्पर्धा केवल विपक्षी इंडी गठबंधन तक सीमित नहीं रही, बल्कि पार्टी के भीतर भी ध्रुवीकरण शुरू हो गई है। भारतीय राजनीति, जो एक समय एकध्रुवीय सत्ता थी, भाजपा के उदय से द्विध्रुवीय बनी। अब जल्द कांग्रेस के अंदर भी ऐसा ही द्विध्रुवीय सत्ता का उदय होने वाला है। अगर कांग्रेस नेताओं के मन में वास्तव में संवेदनाएं होतीं और वे ईमानदारी से संभल जाना चाहते, तो उन्हें पहले ही प्रशासन को सूचित करना चाहिए था।
राज्य सभा सांसद ने कहा कि राहुल गांधी, विपक्ष के नेता होने के साथ-साथ Z+ सुरक्षा प्राप्त है। उनकी सुरक्षा में ASL (अड्वांस सिक्योरिटी लायज़निंग) प्रक्रिया लागू होती है, जो गृह मंत्री और रक्षा मंत्री के समकक्ष होती है। यह सुरक्षा देश में प्रधानमंत्री की सुरक्षा के बाद सर्वोच्च मानी जाती है। ऐसी सुरक्षा के तहत किसी भी यात्रा से पहले सुरक्षा कर्मियों को सूचित करना, क्षेत्र को सैनिटाइज़ करना और सुरक्षा क्लियरेंस लेना आवश्यक होता है। लेकिन न तो राहुल गांधी ने अपने दायित्व का निर्वाह किया, न सुरक्षा नियमों का पालन किया। उनके इस रवैये से साफ होता है कि न तो उनके पास जाने की सच्ची भावना थी और न ही संवेदनशीलता। यह पूरी प्रक्रिया केवल एक रस्म अदायगी और औपचारिकता बनकर रह गई, जिसे निभाने के बाद वे लौट आए। कांग्रेस पार्टी की जो तथाकथित यात्रा थी, वो इंडी गठबंधन की आपसी प्रतिस्पर्धा से अधिक प्रेरित थी, जो इंडी गठबंधन के भिन्न-भिन्न दलों में अपने कोर वोटर को अपने कब्जे में रखने की छटपटाहट से प्रेरित है। वो मूल वोट जिसके कारण इंडी गठबंधन बना है, उसपर कब्जे की यह छटपटाहट है। इसमें जनता के लिए कोई संवेदना दिखाई नहीं दे रही है।
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि पंजाब में जब से आम आदमी पार्टी की सकार बनी है, राज्य की आर्थिक स्तिथि खस्ताहाल हो चुकी है और अपराध बढ़ रहे हैं। आप के आने के बाद हत्याएं और अपराधियों के हौसले बढ़े हैं। पंजाब के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि पुलिस स्टेशन पर हमला करके अपराधियों को छुड़ा लिया जाए लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार में यह हुआ। आज पवित्र स्वर्ण मंदिर के द्वार पर गोली चलना और एक पूर्व उप-मुख्यमंत्री पर जानलेवा हमला यह दर्शाता है कि पंजाब में कानून व्यवस्था की स्तिथि किस सीमा तक गिर गयी है, इसका मुख्य कारण ये है कि आम आदमी पार्टी में एक अंदरूनी खींचतान चल रही है। दिल्ली के नॉन ऑफिशियल मुख्यमंत्री और पंजाब के ऑफिशियल मुख्यमंत्री के बीच कुछ तो है कि उनका ध्यान शासन-प्रशासन की जगह आपसी खीचतान पर है। इसकी वजह से पंजाब की जनता को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब में 2021-22 में लगभग 23 हजार करोड़ का निवेश आया था लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस निवेश में अब 80 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। एक तरफ आर्थिक निवेश में गिरावट आ रही है और दूसरी तरफ कानून व्यवस्था में गिरावट आ रही है। पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हुई गोली चलने की घटना ने आज हर देशवासी और हर देशभक्त को झकझोर दिया है और इसका जवाब पंजाब की “आप” सरकार को देना पड़ेगा।
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