अनुच्छेद: वित्त, सूचना एवं प्रसारण मंत्री और कारपोरेट मामलों, श्री अरुण जेटली द्वारा


10-12-2015
Press Release
 
  Hindi PDF English PDF

कांग्रेस क्यों गलत है

  - ARUN JAITLEY

पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस पार्टी ने संसद के दोनों सदनों को बाधित कर रखा है। इनका गोबेल्सियन दुष्प्रचार यह है कि पार्टी का नेतृत्व एक राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार है। तो तथ्य क्या है?

एक अखबार 'नेशनल हेराल्ड' को शुरू करने के उद्देश्य से एक कंपनी बनाई गई। कंपनी को देश के कई हिस्सों में बहुमूल्य जमीन का आवंटन मिला। जमीन अखबार के कारोबार के लिए इस्तेमाल किये जाने के लिए था। आज, कोई समाचार-पत्र नहीं है। केवल जमीन और उसके ऊपर निर्मित संरचनाएँ हैं जिनका व्यावसायिक रूप से दोहन किया जा रहा है।

एक राजनीतिक पार्टी अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए धन इकट्ठा करने के लिए अधिकृत है। उसी प्रयोजन के लिए, इसे आय कर के भुगतान से छूट मिल जाती है। कांग्रेस पार्टी द्वारा एकत्रित कोष में से 90 करोड़ रुपये की राशि समाचार-पत्र वाली कंपनी को दे दिया जाता है। प्रथम दृष्टया, यह उतना ही आयकर अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है जितना एक छूट मुक्त आय को गैर शुल्क-मुक्त प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना होता है।

90 करोड़ रुपये के कर्ज को फिर 50 लाख रुपए की मामूली रकम के लिए एक सेक्शन 25 कंपनी को अभिहस्तांतरित कर दिया गया। कर मुक्त राशि प्रभावी ढंग से एक रियल एस्टेट कंपनी को हस्तांतरित हो जाती है। यह रियल एस्टेट कंपनी अब पुरानी समाचार-पत्र वाली कंपनी का 99% शेयर्स अधिगृहीत करती है। प्रभावी रूप से, काफी हद तक कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा नियंत्रित सेक्शन 25 कंपनी अब एक अखबार के प्रकाशन के लिए अधिग्रहीत की गई सभी सभी संपत्तियों की मालिक है, और वास्तव में बिना किसी विचार के, वह सेक्शन 25 कंपनी इन सभी सम्पत्तियों का मालिकाना हक़ रखती है। इसके हाथों, यह लाभ बहुत बड़ा कर योग्य आय हो जाएगा।

2012 के बाद से, एक व्यक्तिगत नागरिक के रूप में, डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने भरोसे के उल्लंघन का आरोप लगाया। यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह एक अपराध को रिपोर्ट करे जब वह उसके संज्ञान में आता है। एक निचली अदालत, डॉ. स्वामी की शिकायत पर समन जारी करती है। कांग्रेस पार्टी के आरोपी नेता इसे ख़ारिज करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय जाते हैं, जो उन्हें अंतरिम संरक्षण प्रदान करती है। आखिरकार, दिल्ली उच्च न्यायालय आरोपियों की याचिका खारिज करती है। अब आरोपियों के पास दो विकल्प हैं। वे या तो इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं अथवा निचली अदालत के समक्ष पेश होते हैं और योग्यता के आधार पर लड़ाई लड़ सकते हैं।

तथ्य स्पष्ट हैं. वित्तीय लेनदेन की एक श्रृंखला के द्वारा, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने खुद के लिए 'चक्रव्यूह' बनाया। 'चक्रव्यूह' से बाहर निकलने का रास्ता उन्हें स्वयं खोजना होगा। बिना किसी खर्च के ही उन्होंने एक विशाल राशि की संपत्ति का अधिग्रहण कर लिया। उन्होंने कर से छूट वाली आय का एक गैर कर मुक्त आय के लिए उपयोग किया है। उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी के आय को एक रियल एस्टेट कंपनी में हस्तांतरित कर दिया है। उन्होंने रियल एस्टेट कंपनी के पक्ष में विशाल कर योग्य आय बनाई है। सरकार ने अब तक कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की है। प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें कोई नोटिस जारी नहीं किया है। आयकर अधिकारी अपनी स्वयं की प्रक्रिया का पालन करेंगे। इस बीच, आपराधिक न्यायालय ने अपराध का संज्ञान ले लिया है। उच्च न्यायालय, निचली अदालत से सहमत हो गई है। लड़ाई को कानूनी तौर पर लड़ा जाना है। लेकिन कानूनी लड़ाई के परिणाम हमेशा से अनिश्चित रहे हैं। कांग्रेस इसीलिये, जोर-जोर से चिल्ला रही है और इसे राजनीतिक बदले की भावना बता रही है। क्या यह न्यायालयों के खिलाफ एक आरोप है? सरकार ने विवादित लेनदेन के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया है। क़ानून के सामने सब बराबर है। कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। भारत ने कभी इस तरह के तानाशाही रवैय्ये को स्वीकार नहीं किया है कि रानी कानून के प्रति जवाबदेह नहीं है। क्यों कांग्रेस पार्टी और इसके नेताओं को न्यायालय में नोटिस के ऊपर बहस नहीं करना चाहिए? न तो सरकार और न ही संसद इस मामले में उन्हें मदद कर सकती है। तब क्यों संसद को बाधित किया जाता है और विधायी गतिविधियों को जारी रखने के बजाय रोका जाता है? 'चक्रव्यूह' में घिरे कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को जवाब यह है कि आप अपनी लड़ाई कानूनी तौर पर लड़ें और संसद को बाधित न करें। लोकतंत्र को बाधित करके कांग्रेसी नेताओं के बनाये गए वित्तीय जाल को पूर्ववत नहीं किया जा सकता है।




To Write Comment Please Login