Hindi of Arun ji blog on 24 September 2018


24-09-2018
Press Release

परिस्थितियों और तथ्यों को नकारता हुआ एक संदिग्ध बयान

अरुण जेटली

रविवार, 23 सितंबर, 2018

 

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद की ओर से आए उस बयान के आधार पर एक विवाद उभारने की कोशिश की जा रही है कि Dassault Aviation के साथरिलायंस डिफेंस की ‘पार्टनरशिप’ भारत सरकार के सुझाव पर हुई थी। इसके बाद के अपने एक बयान में पूर्व राष्ट्रपति ने जो कहा, उसके अनुसार रिलायंस डिफेंस इस सीन में भारत सरकार के साथ करार होने के बाद उभरकर सामने आया। बाद के अपने बयान में उन्होंने कहा है कि उन्हें ‘नहीं पता’ कि रिलायंस डिफेंस के लिए सरकार ने कभी कोई लॉबी की थी, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘साझेदारों ने खुद ही एक-दूसरे को चुना था’। सच के दो रूप नहीं हो सकते।    

 

फ्रांस सरकार और मेसर्स दसॉल्ट एविएशन ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान को खारिज कर दिया है। फ्रांस सरकार ने कहा है कि दसॉल्ट एविएशन के ऑफसेट करारों पर फैसला कंपनी द्वारा लिया गया है और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। दसॉल्ट एविएशन ने कहा है कि उसने ऑफसेट करारों के संदर्भ में कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ अनेक करार किए हैं और यह उसका खुद का फैसला है।

 

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयान की सच्चाई को लेकर फ्रांसीसी मीडिया में विवाद चल रहा है। इस पर टिप्पणी किए बिना यह उल्लेख किया जा सकता है कि ओलांद हितों के टकराव से जुड़े एक मुद्दे पर अपने खिलाफ आ रहे बयानों का सामना कर रहे हैं, जो रिलायंस डिफेंस से संबंधित है।

व्यक्तिरूप से दिए गए बयानों की सच्चाई पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन परिस्थितियां कभी झूठ नहीं बोलती हैं। यह नीचे दिए गए तथ्यों से स्पष्ट है:

 

  • पूर्व राष्ट्रपति ने दसॉल्ट एविएशन द्वारा भारत सरकार को 36 राफेल एयरक्राफ्ट की सप्लाई किए जाने को लेकर जो बात कही है, वैसी कोई ‘पार्टनरशिप’ है ही नहीं। यह दोनों सरकारों के बीच का करार था, जिसके तहत भारतीय वायुसेना को पूरी तरह से हथियारों से लैस एयरक्राफ्ट मिलने हैं। भारत में किसी तरह की मैन्युफैक्चरिंग नहीं होनी है। इसलिए, किसी का यह कहना कि 36 एयरक्राफ्ट की सप्लाई को लेकर कोई ‘पार्टनरशिप’ हुई है, पूरी तरह से गलत है। 
  • मेसर्स रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और दसॉल्ट एविएशन के बीच फरवरी, 2012 में एक MoU हुआ था। पीटीआई ने 12.2.2012 को यह रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी। यह उस समय की बात है, जब 126 राफेल एयरक्राफ्ट में से 18 फ्रांस में और 108 भारत में बनाए जाने के करार के संबंध में यूपीए सरकार विचार-विमर्श के निर्णायक दौर में थी। राहुल गांधी द्वारा की जा रही बेसिर पैर की आलोचना, 2012 के MoU पर भी बराबर रूप से लागू हो सकती है। 
  • ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट, उपकरण के मूल आपूर्तिकर्ता यानि दसॉल्ट एविएशन द्वारा भारत में निवेश सुनिश्चित करता है, जिसमें वे भारतीय कंपनियों से अधिक से अधिक पचास प्रतिशत तक (इस मामले में) खरीदारी कर सकते हैं। 2005 की ऑफसेट पॉलिसी के तहत ऑफसेट पार्टनर को मेसर्स दसॉल्ट एविएशन ने चुना और उसने आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई सरकारी एवं निजी कंपनियों का चुनाव भी किया। 
  • ऑफसेट पार्टनर पूरी तरह से मूल उपकरण निर्माता दसॉल्ट एविएशन की तरफ से चुने गए। फ्रांस सरकार या फिर भारत सरकार का इसमें कोई हस्तेक्षप नहीं है।
  • यह कोई संयोग नहीं है कि 30.8.2018 को श्री राहुल गांधी ने ट्वीट किया था,  "यह वैश्विक भ्रष्टाचार है। यह #राफेल विमान वास्तव में दूर तक और तेजी से उड़ता है! यह अगले कुछ हफ्तों में कुछ बड़े बंकर बस्टर बमों को गिराएगा।"

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति का पहला बयान राहुल गांधी की भविष्यवाणी के साथ मेल खाता है।

  • कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से 31.8.2018 को पार्टी के एक नेता का ट्वीट किया गया था, "यह स्पष्ट है कि अनिल अंबानी ने अपने अभिनेता-साथी के माध्यम से दसॉल्ट में साझेदारी पाने के लिए राष्ट्रपति ओलांद को रिश्वत दी थी।" यानि जिस कांग्रेस पार्टी ने पहले यह आरोप लगाया कि एक पूर्व राष्ट्रपति को एक भारतीय बिजनेस ग्रुप के द्वारा रिश्वत दी गई थी, वही पार्टी अब उसे प्राथमिक गवाह के रूप में इस्तेमाल कर रही है। यह भी खासकर तब हो रहा है जब वह अपने देश के भीतर ही कथित हितों के टकराव (conflict of interest) के मामले में आलोचना का सामना कर रहे हैं।
  • फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने पहले बयान दिया था कि भारत सरकार द्वारा भारतीय  बिजनेस ग्रुप का नाम प्रस्तावित किया गया था। अब उन्होंने बयान बदल दिया है और उनका कहना है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है कि भारत सरकार ने कभी रिलायंस डिफेंस का पक्ष लिया था। उन्होंने आगे कहा है कि साझेदारों ने आपस में खुद को चुना है। (22.9.2018 की एएफपी रिपोर्ट)।
  • राहुल गांधी ने एक बेतुकी बात कही है कि भारतीय सैनिकों के हित से समझौता किया गया है। लेकिन किसके द्वारा?  यूपीए, जिसने डील को पूरा करने में देरी की, जिससे सेना की मारक क्षमता प्रभावित हुई या फिर एनडीए, जिसने इस डील को कम कीमत पर तेजी के साथ पूरा किया।

 

निष्कर्ष

एक रिलायंस ग्रुप 2012 से इस सौदे का हिस्सा था। यह रक्षा उत्पादन से बाहर निकल गया। एक अन्य रिलायंस ग्रुप पहले से ही डिफेंस सेक्टर में था। वे राफेल डील में भागीदार नहीं हैं। उनका भारत सरकार या फ्रांस सरकार के साथ कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। उन्हें किसी भी सरकार द्वारा ऑफसेट भागीदारों के रूप में नहीं चुना गया था। इस डील में पार्टनर (दसॉल्ट और रिलायंस) ने खुद को एक दूसरे को चुना है, जैसा कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद अब कह रहे हैं। यह उनके पहले के बयान के विपरीत है, जिसका फ्रांस सरकार और दसॉल्ट दोनों ने खंडन किया है। इस डील के तथ्य भी उनके बयान को झुठलाते हैं। कनाडा के मॉन्ट्रियल में एएफपी को दिया गया उनका दूसरा बयान उनके पहले बयान की सत्यता को और भी संदिग्ध बनाता है।

 

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