Hindi : Press release by BJP National Media Head, Shri Anil Baluni on 20.09.2018


20-09-2018
Press Release

 

विदूषक युवराज का झूठ

अरुण जेटली   

 

29 अगस्त, 2018 को अपने ब्लॉग में मैंने राफेल डील पर कांग्रेस पार्टी के एक-एक झूठ की कलई खोली थी। मनगढ़ंत बातों के आधार पर चलाई जा रही इस मुहिम का नेतृत्व पूरी तरह कांग्रेस अध्यक्ष के हाथ में है। उनकी रणनीति साफ है कि पहले झूठ को गढ़ो और उसके बाद बार-बार उसे बोलो। ऐसा करके उन्हें कम से कम बेबुनियाद बयानबाजी करने का मसाला मिल जाता है क्योंकि कांग्रेस के पास कोई और ठोस मुद्दा तो है नहीं। राफेल को लेकर मैंने जितने भी सवाल उठाए उनमें से एक का भी जवाब नहीं आया। एक परिपक्व लोकतंत्र में जो लोग झूठ को अपनी राजनीति का आधार बनाते हैं, वे आम लोगों की नजर में अप्रासंगिक हो जाते हैं। ऐसे लोगों के उदाहरण भरे पड़े हैं जिनका झूठ पकड़ा गया और वे हमेशा के लिए राजनीति से बाहर हो गए। लेकिन जगजाहिर है कि वंशवाद की राजनीति करने वाली कांग्रेस इस परंपरा से अछूती रही है।

कांग्रेस का पहला बड़ा झूठ 'राफेल डील की मनगढ़ंत कहानी'के साथ सामने आया, तो दूसरा बड़ा झूठ बार-बार उसका यह कहना है कि पीएम मोदी ने पंद्रह उद्योगपतियों के 2.5 लाख करोड़ रुपये के लोन माफ कर दिए। इस बारे में राहुल गांधी द्वारा बोला गया एक-एक शब्द झूठहै।

सबसे पहले यह बता दूं कि यह रकम 2014 के पहले बैंकों द्वारा दी गई थी। दूसरी बात ये कि यूपीए सरकार दुनिया के सामने लोन में गड़बड़ियों की सच्चाई सामने न आए, इसलिए पिछला लोन चुकाने के लिए नया लोन देती गई। यानि लोन को हमेशा Evergreen बनाए रखा। आज यूपीए के नेता यह कहते हैं कि जब वह सरकार से गए तब Non-Performing Assets (NPAs) सिर्फ 2.5 लाख करोड़ रुपये का था। जबकि सच्चाई यह है कि NPA की रकम को छिपाया गया था। 2015 में, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों का एक Asset Quality Review (AQR) कराया गया था और इसके जो परिणाम मिले उसके अनुसार NPA वास्तव में 8.96 लाख करोड़ रुपये का था। साफ है कि NPA  की वास्तविक राशि को छिपाया गया था। तीसरा, NPA की राशि को कम करने और इसकी वसूली के लिए कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाया गया था। 2014-15 के बाद एनपीए में वृद्धि इसलिए नहीं हुई कि नए लोन दिए गए, बल्कि बकाया राशि पर ब्याज चढ़ने की वजह से ये बढ़ा। कुछ डिफॉल्टर्स के लोन की रिस्ट्रक्चरिंग कर दी गई, ताकि उनकी गड़बड़ियां छिपी रहें। एक ऋण खाते को तभी तक ‘Performing Account’ माना जाता है, जब तक कर्ज ली गई रकम का भुगतान मूलधन/ब्याज के रूप में किया जाता रहे। जिस समय देनदार ऋण का भुगतान करने में असमर्थ हो जाता है, उसका खाता डिफॉल्ट हो जाता है। इतना ही नहीं डिफॉल्ट होने के 90 दिनों के बाद खाते को गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) घोषित कर दिया जाता है। यूपीए के दौरान, ऐसे अधिकतर खातों को NPA के रूप में घोषित नहीं किया गया था।

 

प्रभावी कदम

इस सिलसिले में मौजूदा सरकार ने जो सबसे प्रभावी कदम उठाया है, वो है इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC). इसने भारत में लेनदार और देनदार के संबंध को नए सिरे से परिभाषित करने का काम किया है। IBC के अस्तित्व में आने के बाद ऋणदाता नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) का रुख कर सकते हैं, जो याचिका मंजूर होने परresolution professionalsको नियुक्त करता है औरdefaulting managementको बदलता है। इसके बाद ऋणदाता resolution plan लेकर आते हैं जहां कंपनी के संभावित अधिग्रहण के लिए निविदाएं आमंत्रित की जाती हैं। यहां सबसे आकर्षक और सक्षम बोलीदार को कंपनी का प्रबंधन सौंपा जाता है।

इसके परिणामस्वरूप कर्ज की एक बड़ी राशि का निपटारा हो पाता हैजिससे प्राप्त धन का भुगतान बैंकों और अन्य ऋणदाताओं को किया जाता है। कुछ मामलों में, बोलीदार विदेशी मुद्रा में भुगतान की पेशकश करते हैं, जो आज के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए काफी उपयोगी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पहले चरण में 12 बड़े डिफॉल्टर्स की पहचान की।Principal interest और penal interestके साथ इन 12 डिफॉल्टर्स पर विभिन्न बैंकों की लगभग तीन लाख करोड़ रुपये की देनदारी बनती थी। यूपीए के कार्यकाल में बैंकों ने इन ऋणों की वसूली के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

उन्होंने ऐसे किसी एक भी कर्जदार पर अभियोजन नहीं चलाया जिसने मोटा कर्ज लिया था। ये तो एनडीए सरकार है जिसने IBC के जरिए कर्जदाता और कर्जदार के परस्पर रिश्ते में बदलाव किया और बैंकों को ये ताकत दी कि वो कारगर तरीके से रिकवरी की प्रकिया चला सकें। सच्चाई ये है राहुल गांधी कि आपकी सरकार चुपचाप बैंकों को लुटता हुआ देखती रही थी। लोन देने से पहले आवश्यक और समुचित पड़ताल नहीं की गई और इस अपराध में आपकी सरकार सहभागी बनी रही। बैंकों ने उन लोन की रिकवरी कहीं अब जाकर शुरू की है। एक ही झूठ को बार-बार बोलकर आप सच्चाई को बदल नहीं सकते। किसी भी कर्जदार का एक रुपया भी माफ नहीं किया गया है। IBC के तहत बैंक डिफॉल्टर्स अपनी कंपनी से हाथ धो रहे हैं और उनकी  संपत्ति जब्त हो रही है। कुछ के खिलाफ अभियोजन भी चलाया जा रहा है। इन सभी डिफॉल्टर्स ने बैंकों से कर्ज मई, 2014 के पहले लिया था। उस दौरान कइयों को तो कर्जसीमा नियम के तहत जितनी राशि मिलनी चाहिए उससेकहीं ज्यादा दी गई। हालांकि ये गड़बड़झाला मई, 2014 के पहले किया गया लेकिन rollover, restructuring और ever-greeningकी आड़ में इसे छिपाकर रखा गया। मैं यहां कुछ डिफॉल्टर्स के नाम और रिकवरी की मौजूदा स्थिति के आंकड़े पेश कर रहा हूं:

 

क्र.सं. 

12 बड़े कॉरपोरेट कर्जदारों के नाम

वर्तमान स्थिति

1

भूषण स्टील लिमिटेड

18.5.2018 को समाधान प्रस्ताव मंजूर

2

एस्सार स्टील लिमिटेड

समाधान अंतिम चरण में

3

इलेक्ट्रोस्टील लिमिटेड

समाधान मंजूर

4

ज्योति स्ट्रक्चर्स लिमिटेड

समाधान प्रक्रिया लंबित

5

लैंको इन्फ्रास्ट्रक्चर

दिवालियापन की प्रक्रिया शुरू

6

जेपी इन्फ्राटेक लिमिटेड

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद समाधान प्रक्रिया फिर से शुरू

7

एरा इन्फ्राटेक लिमिटेड

समाधान लंबित

8

आलोक इंडस्ट्रीज

समाधान आखिरी चरण में

9

भूषण पावर एवं स्टील लिमिटेड

समाधान आखिरी चरण में

10

मोनेट इस्पात

समाधान पूरा हुआ

11

एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड

समाधान प्रक्रिया लंबित

12

एमटेक ऑटो लिमिटेड

समाधान पूरा हुआ

 

आपने राफेल डील पर झूठ बोला, आपने एनपीए पर झूठ बोला। आपका मनगढ़ंत तथ्यों को उठाने का स्वभाव विधिसम्मत एक सवाल खड़ा करता है- जिन लोगों के स्वभाव में ही झूठ और कपट भरा हो, क्या वो किसी लिहाज से जनता से संवाद करने के लायक भी हैं। जनता से संवाद करना कोई मजाक की बात नहीं है। आपकी सरकार ने तब जो गुनाह किया, उस पर आप किसी से गले लगकर, आंख मारकर और बार-बार झूठ बोलकर पर्दा नहीं डाल सकते। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इस पर आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या हमें एक ‘Clown Prince’ को सार्वजनिक सभाओं में जाकर उसे झूठी बातों से अपवित्र करने की इजाजत देनी चाहिए।

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