प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सार्वजनिक जीवन में 20 साल पूरे होने पर केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह द्वारा संसद टी वी पर दिए गए इंटरव्यू के प्रमुख बिंदु
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प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सार्वजनिक जीवन को तीन हिस्सो में बाँटा जा सकता है। भारतीय
जनता पार्टी में आने के बाद का पहला कालखंड एक दृष्टि से संगठनात्मक काम का था, दूसरा जब वे
गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और उनके तत्वावधान में काम हुआ और तीसरा वे राष्ट्रीय राजनीति में
आकर प्रधानमंत्री बने।
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ये तीनों कालखंड बेहद चुनौतीपूर्ण रहे हैं। जब उनको भारतीय जनता पार्टी में भेजा गया, वे संगठन
मंत्री बने, उस वक्त भारतीय जनता पार्टी की स्थिति खस्ताहाल थी।
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गुजरात पहले से भारतीय जनता पार्टी के अनुकूल राज्य रहा नहीं था। हम सब युवा कार्यकर्ता
थे,कोई भविष्य नज़र नहीं आता था, हमारे प्रोफेसर हमें डांटते थे कि कहां गलत रास्ते पर चले गये हो
,देश में 2 सीटें आईं थीं।
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तब मोदी जी भारतीय जनता पार्टी गुजरात के संगठन मंत्री बने और 1987 से उन्होंने संगठन को
संभाला और संगठन के माध्यम से एक पक्ष की विश्वसनीयता जनमानस में कैसे बनाई जा सकती है
उसका उत्कृष्ट उदाहरण करा।
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1987 में सबसे पहला चुनाव अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन आया। पहली बार भारतीय
जनता पार्टी अपने बूते पर कॉरपोरेशन में सत्ता में आई।
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1990 में हम गठबंधन सरकार में आये। 1995 में पूर्ण बहुमत में आये और वहां से भारतीय जनता
पार्टी ने आज तक पीछे मुंड़कर नहीं देखा है । कल भी जो चुनाव हुये उसमें भी लगभग लगभग हम
95 प्रतिशत तक स्वीप कर गये हैं ।
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उस वक्त उनका सबसे बड़ा चैलेंजिंग काम गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का कमल खिलाना था।
उन्होंने कठोर परिश्रम, बारीक आयोजन , इंप्लीमेंटेशन के लिये एक दृढ़ता तीनों के कारण भारतीय
जनता पार्टी को खड़ा किया।
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मैं अभी भी मानता हूं मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी सिस्टम में बहुत सारी पार्टियां हैं और होनी भी चाहिये।
सबको गुजरात के संगठन मॉडल की स्टडी करनी चाहिये जो मोदी जी ने उस वक्त बनाया।
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उसमें समयानुकूल परिवर्तन भी होते गये परंतु उस मॉडल की जो नींव थी जनता के साथ सरोकार
रखकर जनता की वेदनाओं को समझकर उसको वाचा देना ये राजनीतिक पार्टी का काम है।
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जब विपक्ष में होते हैं तो आंदोलन के माध्यम से उसको वाचा देते हैं और जब सत्ता में आते हैं तो
सरकार की नीति और कार्यक्रमों के माध्यम से उसका रास्ता ढ़ूढ़ना, उसका हल निकालना और उस
वेदना को कम करना या तो निरस्त करते हैं।
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मैं मानता हूं उनके लिये ये बहुत बड़ा चैलेंज था कि उस वक्त भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में
प्रस्थापित करना, हम तीसरे नंबर पर थे। तब से लेकर आज तक भारतीय जनता पार्टी का जो सफर
शुरु हुआ है उसे दुनिया देख रही है , हम लगातार जीतते जा रहे हैं ।
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दूसरा बड़ा चैलेंज उनके सार्वजनिक जीवन में तब आया जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मैं जिस
कांस्टीट्युएंसी से आता हूं वो कांस्टीट्युएंसी भी हम हार गये थे, साबरमती असेंबली कांस्टीट्युएंसी
जो गुजरात की सबसे सेफेस्ट सीट मानी जाती थी वो हम हार चुके थे।
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बड़ा भूकंप आया था, सारे कॉरपोरेशन के चुनाव , जिला पंचायत और तहसील पंचायत के चुनाव
कांग्रेस स्वीप कर गई थी।
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1970 के दशक के बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी राजकोट म्युनिसिपल चुनाव हारी थी और
1987 के बाद अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन हम पहली बार हारे थे। उस समय मोदी जी
को गुजरात की जिम्मेदारी सौंपी गई।
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उस वक्त की राष्ट्रीय राजनीति की कल्पना करते हैं तो एक बहुत लंबा कालखंड यहां पर गठजोड़ की
राजनीति का रहा। जो सरकारें आईं पूर्ण बहुमत की सरकारें नहीं थीं मिलीजुली सरकार थी। कभी
20 पार्टियां कभी 25 पार्टियां कभी 30 पार्टियां।
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अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी वो भी कोई पूर्ण बहुमत की एक पार्टी की सरकार नहीं थी और
इसका परिणाम ये हुआ था कि देशभर में एक लचर स्थिति बन गई थी, सब लोगों का भरोसा उठता
जा रहा था।
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उस वक्त नरेंद्र भाई गुजरात के मुख्यमंत्री बने हालांकि उनको प्रशासन का कोई अनुभव नहीं था।
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विधायक तो छोड़िये कभी सरपंच भी नहीं बने थे। मगर फिर भी उन्होंने धैर्यपूर्वक तरीके से प्रशासन
की बारीकियों को समझा, जो एक्सपर्ट थे उनको प्रशासन के साथ जोड़ा, चीजों को लोकभोग्य
बनाया। योजनाओं में तब्दील किया और योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का काम किया।
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जो भूकंप एक जमाने में भाजपा के लिये एक धब्बा बन जायेगा ऐसा लगता था उस भूकंप के काम की
पूरे विश्व ने भूरि भूरि सराहना की ।
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आप भुज जाकर देख लीजिये , एक ओर लातूर का भी भूकंप है और भुज का भी है । पूरे भुज का
नवनिर्माण हुआ, विकास दर 37 प्रतिशत ज्यादा बढ़ी और आज भुज के अंदर पानी भी है, इंडस्ट्री भी
है और एजुकेशन भी है । पहले भुज को पनिशमेंट पोस्टिंग माना जाता थी आज प्राइम पोस्टिंग
माना जाता है।
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इतना बड़ा परिवर्तन लाये और अपने मुख्यमंत्री काल में उन्होंने एक नया मॉडल बनाया कि विकास
को सर्वस्पर्शी सर्वसमावेशक बनाया जा सकता है।
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इसके लिये वे ढ़ेर सारी योजनायें लेकर आये जैसे वनबंधु कल्याण योजना , गुजरात में आदिवासी
सबसे नेगलेक्टेड थे। कांग्रेस ने उनका वोट बैंक के नाते तो उपयोग तो किया परंतु उन तक कभी
विकास नहीं पहुंचता था।
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उन्होंने सारी बिखरी हुई योजनाओं को जोड़ा, उनका संविधान में जो अधिकार था कि उनकी
जनसंख्या के अनुपात में बजट में हिस्सेदारी मिले उसके तहत गुजरात में पहली बार नरेंद्र मोदी जी ने
2003 के बजट के अंदर उनको दिया।
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वनबंधु कल्याण योजना ने पूरे गुजरात के ट्राइबल एरिया के विकास का रास्ता खोल दिया। आज
कोई भी क्रिटिक से क्रिटिक एनालिसिस करने वाला व्यक्ति ट्राइबल एरिया में जाये वह सूरत शहर
और डांग जिले के बीच कोई अंतर नहीं ढ़ूंढ़ पायेगा, इतना बड़ा परिवर्तन हुआ है।
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सागर छोर के हमारे किनारे थे उसके लिये भी दूसरी योजना लेकर आये। वो भी नेगलेक्टेड पड़े थे
जबकि सबसे ज्यादा खनिज संपदा वहीं थी। रेवेन्यू सबसे ज्यादा वहां से आती थी । बंदरगाह के
कारण सबसे ज्यादा इंडस्ट्री वहीं लगी थी।
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पूरे सागर छोर के किनारों को रोड से जोड़ दिया और वहां के हर तहसील के लिये एक डिवलेपमेंट
प्लानिंग बनाई गई। उन्होंने सागरखेड़ू विकास योजना वहां शुरु की। आज वह एरिया पूरे गुजरात
के इंडस्ट्रियल डिवलपमेंट का बैकबोन बना हुआ है ।
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तीसरा देश भर में उस वक्त सबसे बड़ा प्रॉबल्म प्राइमरी एजुकेशन में ड्रॉपआउट का था। एनरोलमेंट
और ड्रॉपआउट गुजरात जैसे राज्य में बहुत बड़ी समस्या थी।
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मोदी जी ने खुद कड़ी धूप के अंदर , पटवारी से लेकर मुख्यमंत्री तक सब लोगों ने 5 दिन तक शुध्द रुप
से , 5 दिन मे 25 स्कूलों तक जाना है और महोत्सव के रुप में बच्चों के एनरोलमेंट का कार्यक्रम शुरु
करावाया।
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एनरोलमेंट को 100 प्रतिशत तक पहुंचाया और उसके बाद वहां अभिभावकों की कमेटी बनवाई,
विशेषरुप से माताओं की कमेटी बनाई।
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कोई भी बच्चा स्कूल नहीं आता है तो उसकी चिंता होती थी। मास्टरों की जिम्मेदारी तय कर दी।
साथ ही प्राइमरी एजुकेशन में गुणवत्ता बढ़ाने के लिये गुणोत्सव करके एक कार्यक्रम शुरु किया।
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इसके कारण परिणामस्वरूप एनरोलमेंट 67 प्रतिशत से शत प्रतिशत पहुंच गया। ड्रॉपआउट रेशियो
37 प्रतिशत था वो एक प्रतिशत से नीचे चला गया।
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इसी प्रकार उन्होंने शहरी विकास ,ग्रामीण विकास, औद्योगिक नीति और वाइब्रैंट गुजरात का एक
बहुत बड़ा एक्सपेरीमेंट किया।
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खावड़ा तक पानी भी उनके समय में ही पहुंचा, नर्मदा योजना को अंजाम तक पहुंचाने का काम किया
। Sauni योजना से गुजरात के अंदर टैंकर राज को लगभग समाप्त कर दिया।
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गुजरात ऐसा क्षेत्र था जहां टैंकरों की इंडस्ट्री चलती थी क्योंकि गांव में पानी नहीं होता था, आज
फ्लो से पानी हर गांव में जाता है। पीने के पानी की कहीं किल्लत नहीं है।
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100 -100 फुट भूगर्भ जल का लेवल ऊपर आया है । पूरे भारत में एक ही ऐसा क्षेत्र है जहां भूगर्भ
जल में बढ़ोत्तरी हुई है । तालाबों को बहुत डीप करने का काम किया गया। छोटे – छोटे चेकडैम
बनाये गये। नर्मदा का जो बाढ़ का पानी था वो तालाबों में डाइवर्ट किया गया।
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इस प्रकार से दूसरे चैलेंज को इतने अच्छे तरीके से उन्होंने लिया कि देशभर में मिलीजुली सरकारों का
एक युग था उस युग में एक छवि बनी थी कि मल्टीपार्टी डेमोक्रेटिक सिस्टम शायद फेल तो नहीं हो
जायेगा।
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गुजरात के नरेंद्र भाई के सफल मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान ना केवल गुजरात , देशभर में आशा की
एक किरण जागृत हुई कि मल्टीपार्टी डेमोक्रेटिक सिस्टम में कोई दोष नहीं है। ये सफल हो सकती है,
डिलिवर कर सकती है अंतिम व्यक्ति तक जा सकती है और संविधान निर्माताओं ने जो वेलफेयर स्टेट
की कल्पना की थी वो साकार हो सकती है।
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तीसरा चैलेंज जब वो भारत के प्रधानमंत्री बने तब आया। मैं डॉक्टर मनमोहन सिंह जी की सरकार
के लिये कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता , ये कोई राजनीतिक मौका भी नहीं है। परंतु देश हर क्षेत्र
के अंदर नीचे ही नीचे जा रहा था।
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12 लाख करोड़ के घपले घोटाले भ्रष्टाचार सरफेस पर आ चुके थे, सार्वजनिक जीवन पर श्रध्दा
पाताल के नीचे चली गई थी और दुनियाभर में देश का कोई सम्मान नहीं था।
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हमारी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा बिलकुल लचर पड़ी थी, पॉलिसी पैरालिसिस हो चुका था,
नीतिगत फैसले महीनों तक सरकार की आंतरिक उलझनों में उलझते रहते थे। एक मंत्री महोदय ऐसे
भी थे जो पूरे पांच साल कैबिनेट में ही नहीं आये।
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कई सारी ऐसी चीजें थीं जो सवाल करती थीं कि ऐसे कैसे चल सकता है ? ऐसे माहौल में मोदी जी पर
देश के प्रधानमंत्री का चैलेंज आया।
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आज हम देख सकते हैं कि 7 साल के अंदर सारी व्यवस्थायें अपनी अपनी जगह सही हैं।
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समस्याएं आती हैं , आयेगी भी , भविष्य में भी आयेगी। मगर समस्या को एड्रेस किया जाता है,
तत्काल एड्रेस किया जाता है, उसका समाधान निकालने का प्रयास किया और उसको संवेदनशीलता
के साथ आगे बढ़ाया जाता है।
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एक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण देश की सुरक्षा व्यवस्था भी चाक-चौबंद हुई है।
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कभी कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि भारत एयर स्ट्राइक करेगा या सर्जिकल स्ट्राइक करेगा , ये
तो अमेरिका के लिये रिजर्व चीज थी।
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आज इसके कारण भारत के युवा का हौसला हुआ है कि हम भी कर सकते हैं।
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कभी ये नहीं हो सकता था कि कोई प्रधानमंत्री कहे कि 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने का
साहस भारत में है और हम पहुंच सकते हैं।
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ढ़ेर सारे स्टार्टअप आये , लोग लगे हैं , मुझे विश्वास है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी मोदी जी के
नेतृत्व में बन ही जायेगी और 11 नंबर की अर्थव्यवस्था से हम पांचवे- छठे नंबर की अर्थव्यवस्था बन
चुके हैं।
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बहुत बड़ा जंप आया है, ढ़ेर सारे सुधार हुये हैं और ईज ऑफ डूईंग बिजनेस में भी परिवर्तन आया है।
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मोदी जी के जीवन में जो तीन बड़े-बड़े स्टेज थे, तीनों चुनौतीपूर्ण थे और उन्होंने बड़े धैर्य से और दृढ़
राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ तीनों चैलेंजों को सफलतापूर्वक पार किया और मैं मानता हूं कि
उनकी लीडरशिप की ये बहुत बड़ा क्वालिटी है।
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मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ मुझे संगठन और सरकार दोनों में मोदी जी के साथ काम
करने का मौका मिला, पहले गुजरात के संगठन में, फिर गुजरात सरकार में और यहां मैं राष्ट्रीय
अध्यक्ष था, तब मोदी जी प्रधानमंत्री थे, अब मैं उनकी सरकार का मैं मंत्री हूँ।
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मैंनें मोदी जी को नज़दीक से काम करते हुए देखा है, मैंने मोदी जी जैसा श्रोता देखा ही नहीं है, किसी
भी समस्या के लिए बैठक हो मोदी जी कम से कम बोलते हैं।
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सब लोगों को धैर्यपूर्वक सुनते हैं और फिर उचित निर्णय लेते हैं, कई बार तो हमे भी लगता है कि
इतना सोच विचार हो रहा है। वे बहुत धैर्यपूर्वक निर्णय लेते हैं और छोटे से छोटे व्यक्ति के सुझाव को
गुणवत्ता के आधार पर महत्व देते हैं व्यक्ति के आधार पर नहीं देते।
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ये कह देना कि वो निर्णय थोपने वाले नेता हैं, ये ज़रा भी सच नहीं है और जिन जिन लोगों ने उनके
साथ काम किया है और काम करने वालों में भी critic होते हैं और वो भी इतना ज़रूर कहेंगे कि इतने
democratic तरीके से कैबिनेट कभी नहीं चलती होगी जितने डेमोक्रेटिक तरीके से मोदी जी के
प्रधानमंत्री होने के नाते चलती है, मैंने उनके जैसा श्रोता Listener देखा नहीं है।
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वो discipline के आग्रही हैं, जिस फोरम में जो डिस्कशन होता है वो बाहर नहीं आएगा… एक
ज़माने में आ जाता था, सब आप लोगों के उपयोग के लिए… अब नहीं आता है।
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बहुत कम आता है… तो लोगों को लगता है कि फैसला मोदीजी ने ले लिया… लोगों को मालूम नहीं
है... जनता को भी मालूम नहीं है। जर्नलिस्टों को भी मालूम नहीं है कि यह सामूहिक चिंतन का
परिपाठ है.. ।
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निर्णय of course वो ही करेंगे, वो प्रधानमंत्री हैं. उनको ही करना चाहिए। जनता ने ही उन्हें ये
अधिकार दिया है बाकि सारे मंत्रियो को फिर मोदी जी ने ही अधिकार दिया है, यही तो हमारा
संविधान है ।
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सबके साथ चर्चा कर कर, सबको बोलने का मौका देकर, सबके प्लस- माइनस पॉइंट्स सुनकर, फिर
फैसले होते हैं।
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बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है जो मैं बोलने जा रहा हूं.... कुछ लोग जो हमारे वैचारिक विरोधी हैं.... वो, सत्य
कुछ भी हो... सत्य को तोड़- मरोड़ कर लोगों के सामने कैसा रखना है, वो भी प्रयास हम तो देख ही
रहे हैं.... आप भी शायद देखतें होंगे और इसके कारण छवि को आहत करने का भी सुनियोजित प्रयास
हुआ है।
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मोदी जी जोखिम लेकर फैसला करते हैं, वो सही है… क्योंकि उनका मानना है और सार्वजानिक
जीवन में कई बार उन्होंने कहा भी है कि हम देश बदलने के लिए सरकार में आये हैं, सरकार चलाने
के लिए सरकार में नहीं आये हैं।
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हमारा लक्ष्य देश के अंदर परिवर्तन लाना है… एक सौ तीस करोड़ की जनता को विश्व में, दुनिया के
सब बड़े लोकतंत्र को विश्व में एक सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाना है… जो कि पिछले कई सालों से
यहां पड़ा है।
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हमारा युवा धन पश्चिम और अमरीका की तरफ न जाता, अगर ये फैसले पहले हो गए होते, जो आज
हो रहे हैं।
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वो इसलिए नहीं डरते हैं कि सत्ता में बने रहना लक्ष्य नहीं है, उसको चलने देना, आराम का जीवन भी
लक्ष्य नहीं है, एकमात्र लक्ष्य है भारत प्रथम- India First… ये लक्ष्य लेकर वो चलते हैं।
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इसी से दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति की निर्मिति होती है और जब दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ
आप एक रास्ता तय कर लेते हो कि मुझे देश को यहां पहुंचाना है तो हर क्षेत्र के फैसले आप देखिये,
नोट बंदी का फैसला और कोई ले ही नहीं सकता, इतना बड़ा फैसला कोई ले ही नहीं सकता।
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हमारी…. टीका करने वाले जो कहेंगे, वो कहेंगे, मैं बताता हूं कि देश के अर्थतंत्र के माहौल में बहुत
बड़ा परिवर्तन आया कि नहीं ये सरकार का विल है कि काला धन नहीं चलेगा कई बार विल का
परिचय कराना भी बड़ी बात होती है…
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इसी प्रकार से GST... चिदंबरम साहब से लेकर मुखर्जी साहब सब बात तो करते थे अच्छी-अच्छी
अंग्रेजी में बोलते थे… परन्तु किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी।
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मोदीजी ने केंद्र का - राज्य का फर्क भूलकर, ये फेडरल स्ट्रक्चर (Federal Structure) हैं हम एक टीम
है. काफी ऐसी चीज़ें थीं जो राज्यों में अविश्वास पैदा करती थीं, उन्हें हटा दिया।
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मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि इक्का-दुक्का चीज़ों को छोड़कर GST Council में एक भी फैसला बहुमत
से नहीं बल्कि सर्वानुमति से लिया गया है, जबकि GST Council में सभी दल की सरकारों के वित्त
मंत्री हैं ।
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तीन तलाक़ का उन्मूलन किसी में हिम्मत नहीं थी... शाहबानो के केस को give-up करना पड़ा था....
उनको... राजीव गाँधी को बदलना पड़ा था।
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One Rank One Pension- कोई हिम्मत नहीं करता था. Chief of Defence staff का नया
कॉन्सेप्ट- डिफेन्स के क्षेत्र में…. कोई हिम्मत नहीं करता था।
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सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का सवाल ही पैदा नहीं होता था… हम चुप हो जाते थे… एक आध
दो निवेदन कर कर… आज, सबको मालूम है भारत की सीमाओं के साथ कोई छेड़खानी बर्दाश्त नहीं
की जाएगी।
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धारा 370, 35 A.... सबको मालूम था… ये टेम्पररी था, इसकी ज़रूरत नहीं है, कोई छूने की हिम्मत
नहीं करता था।
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इसी प्रकार से हमारी संस्कृति को लोगों तक पहुंचाया दुनिया तक… योग दिवस कितना बड़ा फैसला
है UN General Assembly तक ने इसे स्वीकार किया है, ये बहुत बड़ी बात है, भारतीय संस्कृति का
इतना बड़ा acknowledgement शायद ही कभी हुआ होगा।
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पेरिस समझौता- बड़े बड़े देश प्राप्त करना तो छोडो घोषित करने से झिझकते थे मोदी जी ने कहा की
Global Warming और जलवायु परिवर्तन को रोकना है तो यही एक रास्ता है, International
Solar Alliance और भी ऐसे बहुत सारे जो फैसले उन्होंने लिए।
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मैं मानता हूं नई शिक्षा नीति और ढेर सारे फैसले। आर्थिक सुधार का तो... एक पूरा इंटरव्यू आर्थिक
सुधार पर हो सकता है इतने सारे आर्थिक सुधार उन्होंने किये हैं।
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मज़बूत इच्छा शक्ति वाले प्रधानमंत्री के अलावा तो यह हो ही नहीं सकता है।
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उनका लक्ष्य सत्ता में बने रहना नहीं है, भारतीय जनता पार्टी के लिए सरकार चलाना नहीं है, उनका
लक्ष्य देश के लिए सरकार चलाना नहीं है, उनका लक्ष्य ग़रीबों के लिए सरकार चलाना है।
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अध्यात्म के दो रास्ते हैं- एक आत्म का कल्याण करना और दूसरा जनता समग्र के कल्याण के लिये
पुरुषार्थ करना। अध्यात्म के रास्ते पर जाने वाले भी वही करते हैं, मोदी जी भी आज वही कर रहे
हैं।
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आज देखिये, देश के साठ करोड़ गरीबों को कई सारे वायदे किये गये हैं, मगर सत्तर साल तक उनके
जीवन में गुणात्मक परिवर्तन कभी नहीं आया था।
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गरीब कल्याण की बातें सबने की, गरीबी हटाओ के नारे भी लगे, मगर हुआ कभी नहीं था।
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आज मैं इतना कह सकता हूं कि ग्यारह करोड़ गरीबों के घर से धुंआ गायब है, गैस का सिलेन्डर गरीब
महिला के घर पहुंच गया है। करीब ग्यारह करोड़ शौचालय इस देश में बन चुके हैं, जिनमें से करीब
नौ करोड़ उपयोग में हैं, तो उन नौ करोड़ परिवारों की महिलायें आज सम्मान के साथ जीवन जी रही
हैं।
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हर घर में नल का पानी पहुंचाने का काम हमने शुरु किया है, आठ करोड़ घरों में हमने पानी पहुंचाया
है, करीब दो करोड़ घरों में पानी पहुंचने का काम हो गया है।
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जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शपथ ली, तब18 हजार गांव में बिजली का खंभा तक नहीं था। 18
हजार गांव आजादी के सत्तर साल बाद भी बिजली की पहुंच से अछूते थे, आज उन अठ्ठारह के अठ्ठारह
हजार गांव में बिजली पहुंच गई है और उसके साथ 4 करोड़ घरों में बिजली पहुंचाने का काम नरेन्द्र
मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने समाप्त कर दिया।
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ग्यारह करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपया मिल रहा है और डेढ़ लाख करोड़ रुपया एक साल
के अंदर सीधे किसानों को मिला है।
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ऐसा बताते थे कि कभी यूपीए की सरकार ने किसानों के साठ हजार रुपये का ऋण माफ कर बहुत
बड़ा काम किया था, साठ हजार करोड़ तो बैंक में ही वापिस गये, किसान को कुछ नहीं मिला। ये डेढ़
लाख करोड़ रुपया सीधा किसान को ही मिला है जिसे अब बैंक से ऋण ही नहीं लेना है।
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आज घर में एकॉउंट न हो ऐसा कोई घर देश में नही है। 60 करोड़ लोग ऐसे थे जिनके परिवार में एक
भी एकॉउंट नही था, आज जनधन के माध्यम से उनको एकॉउंट मिल गया, डीबीटी डायरेक्ट आता है,
कोई बिचौलिया नही है, कोई उनका पैसा खाता नहीं है, चाहे वृद्धावस्था पेंशन हो, विधवा का हो,
चाहे बच्ची का वजीफा हो सीधा पहुंचता है।
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इसी प्रकार से पांच लाख तक की आयुष्मान भारत योजना की स्कीम, 60 करोड़ लोगों को मिल रही
है, 60 करोड़ लोग आश्वस्त हैं घर में कोई भी आपत्ति आ जाये हम मोदी कार्ड को स्वाइप करेंगे और
इलाज करा लेंगे।
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दुनिया में कोई नही सोच सकता 130 करोड़ लोगों को मुफ्त वैक्सीन मिल सकती है बाकी सारे
कंपेरिजन करते हैं, अंग्रेजी अखबारों में लिखते हैं उनको मालूम नही कि अमेरिका की आबादी उत्तर
प्रदेश जितनी है, अरे 130 करोड़ का देश है, 130 करोड़ लोगों को मुफ्त वैक्सिनेशन देना बहुत ही
साहसी फैसला है।
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43 करोड़ बैंक खाते खुल गए और 80 करोड़ लोगों को कोरोना में हमने मुफ्त राशन देने का काम
किया है।
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प्रधानमंत्री जी की सरकार की संवेदनशीलता है जो ये योजनाएं बनाती है....हमने योजनाओं के अंदर
उसका स्केल और साइज दोनों को बदला है।
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पहले होता हम इतने घर बनाएंगे, अब हम कहते हैं सबको घर मिलेगा, पहले इतने घर में विद्युत
पहुँची, पहुंचेगी, अब सबके घर में पहुंचाना है, पहले इतने शौचालय बनाएंगे अब सबके घर में
शौचालय पहुंचाते हैं, पहले गैस इतने देंगे अब सबके घर में गैस पहुंचाना है, तो एक स्केल बदलने का
काम किया है।
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ये स्केल बदलते ही जो 60 करोड़ लोग अपने को आप को आजादी के साथ न जोड़ते थे, न लोकतंत्र के
साथ जोड़ते हैं, न देश के अर्थतंत्र के साथ क्योंकि वो तो बेनिफिशरी था ही नही।
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आज उन 60 करोड़ लोगों में आत्मविश्वास जगा है कि देश के विकास में मेरी भी भागीदारी है, देश
मेरी सोचता है और इन 60 करोड़ लोगों की नई ऊर्जा देश के विकास के अंदर जुड़ी है।
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लोकतंत्र का अर्थ क्या है? समविकास करना यही लोकतंत्र है, सर्वसमावेशक सार्वस्य विकास करना
यही लोकतंत्र है, और सबको देश के भले के लिए जोड़ना यही लोकतंत्र है।
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मैं मानता हूं कि नरेन्द्र भाई आज भी उसी रास्ते पर हैं, अध्यात्म के रास्ते से वापस आकर सत्ता की
राजनीति में आये,जरिया बदला है लक्ष्य वही है।
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मैंने मोदी जी जैसी स्मृति किसी की नही देखी, 1980 की भी बात उनको आज जस की तस याद होती
है और इस स्मृति को उन्होंने एक अलग प्रकार से संजो कर रखा है।
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वामपंथ का रास्ता नही है, वामपंथी रास्ता गरीब का उत्थान करना है ही नही, उसके अंदर पड़े हुए
असंतोष को राजनीतिक पूंजी बनाकर सत्ता पर बैठना है, वरना वामपंथी स्टेटों की ये स्थिति होती?
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आज बंगाल की स्थिति देखिए 27 साल के वामपंथी के शासन के बाद और गुजरात का स्थिति देखिए,
त्रिपुरा की स्थिति देखिए, गुजरात का स्थिति देखिए।
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मैं नही मानता वामपंथी और दक्षिणपंथी के बीच में कोई अंतर्द्वंद्व है। सरकार किस चीज के लिए
होती है, कर किस चीज के लिए वसूला जाता है। जिसपर ईश्वर की कृपा है, जो ज्यादा परिश्रमी है
जिसके अंदर ज्यादा मेधा है जिसके अंदर ज्यादा प्लानिंग की क्षमता ईश्वर ने दी वो ज्यादा पैसा
कमाता है, तो उसको कमाने देना चाहिए क्योंकि इससे देश का विकास होता है, उसके पास से कर
वसूल कर कर जो पिछड़ा हुआ है इसके पास पहुंचाना है, इसी के लिए तो सरकार होती है।
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बजट की व्याख्या क्या है, सीधी सादी layman की व्याख्या क्या है, जिसके पास ज्यादा है उसके पास
से उचित प्रतिशत में लेकर जिसके पास नही है उसको पहुंचाना और पूरे देश की व्यवस्थाओं को
चलाना यही तो बजट है।
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हमारी एक भी योजना वोट बटोरने की योजना नही है, एक भी योजना में हमने किसी को सीधा पैसा
नही दिया है। हमने गैस देकर उसके अंदर एक नई आशा की किरण जगाई है, उसके जीवनस्तर को
उठा कर, नया आत्मविश्वास बढ़ा।
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जब घर में साइकिल होती है तो स्कूटी लाने का मन होता है, जब स्कूटी होती है तो स्कूटर लाने का
मन होता है, स्कूटर होती है तो मोटरसाइकिल लाने का मन होता है और मोटरसाइकिल होती है तो
कार लाने का मन होता है।
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लोगो के अंदर आशा का संचार कर उसके जीवन को उसकी सोच को उद्योगति देकर देश के विकास
के साथ जोड़ने का हमने एक रास्ता दिया।
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अपनी विचारधारा के प्रति निष्ठा रखना एक बात है और किसी और विचारधारा का व्यक्ति सफल हो
जाये वो सहन न कर पाना वो अलग बात है।
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मोदी जी के केस में वो हुआ है, हमारे देश में 1967 के बाद की कांग्रेस को गिन लें तो 3-4 बड़ी-बड़ी
विचारधाराएं चली, एक समाजवादी थी वो आंदोलन सिमट कर पहले जातिवाद में परिवर्तित हुआ
और फिर परिवारवाद में परिवर्तित हों गया, बिहार वग़ैरह छोड़कर पूरा परिवारवाद में।
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कांग्रेस पार्टी जो थी वो भी परिवारवाद में सिमट कर रह गयी, एक आइडियोलॉजी बन गयी, जो मेरा
है वही श्रेष्ठ है, मेरा परिवार ही श्रेष्ठ है।
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दूसरा दक्षिणपंथी माने जाने वाले हम, मगर हम एकात्म मानववाद में मानने वाले लोग
हैं....अंत्योदय हमारी नीतियों का मूल प्रेरणास्रोत है।
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तीसरा वामपंथी विचारधारा, इन तीनों को पर्याप्त मौका मिला है, कांग्रेस को कितना बड़ा मौका
दिया, वामपंथियों को तीन राज्यों में लंबे-लंबे समय तक मौका मिला, समाजवादियों को भी बड़ा
मौका मिला।
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जहां-जहां एनडीए की सरकार हुई वहां अच्छा हुआ, जहां भाजपा की सरकार हुई वहां अच्छा हुआ,
और श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आकर इसको एक अलग डायमेंशन से बदला।
मेरा कमिटमेंट मेरी विचारधारा के लिए हो राजनीति के लिए बहुत अच्छा है, राजनीति में व्यक्ति को
विचारधारा के आधार पर ही काम करना चाहिए परंतु मेरे अलावा और कोई विचारधारा, या कोई
और विचारधारा रखने वाला नेता सफल होता है इसको मैं सहन न कर पाऊं ये अच्छा नही. कुछ
परिवार तो आज भी मानते है कि हमारे परिवार के अलावा कोई कैसे देश का प्रधानमंत्री बन सकता
है।
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चाणक्य ने एक सूत्र दिया था कि "जो ज्येष्ठ होता है वो श्रेष्ठ नही होता है, श्रेष्ठ होता है वो ज्येष्ठ होता
है इन्होंने किया कि मैं ही श्रेष्ठ हूं, हमारे अलावा किसी को शासन करने का अधिकार नही है।
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जब मैं एसपीजी का कानून लेकर आया, तो भाई गांधी परिवार को क्यों हटा रहे हो, तो भाई क्यों
रखें। ये कानून कोई गांधी परिवार के लिए नही है ये देश के प्रधानमंत्री के लिए है।
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आप बनो प्रधानमंत्री, चुन कर आओ ऑटोमेटिकली आपको सुविधा मिलेगी, नही बनोगे तो छोड़
देंगे। कल को मेरी सरकार नही है तो मुझे भी आम आदमी की तरह जीना चाहिए।
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हम सालों तक अपोजिशन में रहे हैं हमने कभी ये सवाल नही उठाये मगर ये जो मानसिकता है इसी
प्रकार से वामपंथी मित्रों की भी मानसिकता है कि ये कैसे सफल हो गए, इसके कारण व्यक्तिगत हमले
होते हैं।
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मैं इन सभी मित्रों को कहना चाहता हूं कि आप हमारी नीतिगत बुराई जरूर करिये, हमारी सरकार
में करप्शन है तो उसको उजागर करिये, हमारा कोई फेलियर है तो जनता के सामने लेकर जाईये।
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मगर ऐसा लिख देना कि मोदी जी नही रहते है तो ये प्रधानमंत्री बन जायेगा इस प्रकार की बातें
करना मैं नही मानता, इस प्रकार की गतिविधियों से राजनीति का स्तर बहुत नीचें ले जा रहे हैं, जो
दुःखद है.....
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मोदी जी ने देश की ढेर सारी समस्याओं को उनके पारम्परिक स्वरुप से हट कर देखा और उसका
समाधान किया, यही तो रिफार्म है।जैसे गरीबी उन्मूलन. इसी प्रकार से आर्थिक सुधारों में।
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कोई समझता ही नहीं था कि इज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के बगैर ये देश उत्पादन का केंद्र बन ही नहीं
सकता। इस देश के साठ करोड़ लोग अगर देश की अर्थव्यवस्था से नहीं जुड़े, बैंक एकाउंट ही नहीं है
तो इस देश की शतप्रतिशत ऊर्जा का उपयोग हो ही नहीं सकता। इसके लिए उन्होंने रिफॉर्म किये हैं
और ढेर सारे रिफॉर्म किये हैं।
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मैं सिर्फ रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के बारे मे बताता हूँ। 370....फिर CAA, इसके बाद उत्तर-पूर्व के
अंदर आतंकवाद को खत्म करने के लिए ढेर सारे समझौते किये, ब्रू-पुनर्वसन, कारबी-ओंग्लोंग शांति
समझौता, बोडो समझौता, नक्सलवाद पर नकेल कसने के लिए एक मल्टी- डायमेंशनल रणनीति का
इम्प्लिमेन्टेशन करना।
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उन्होंने, सुरक्षा के क्षेत्र मे, आर्थिक क्षेत्र के अंदर, सामाजिक न्याय की दिशा में ढेर सारे परिवर्तन
किये। समाज कल्याण और गरीबी उन्मूलन की दिशा मे भी बहुत सारे परिवर्तन किये। इसी प्रकार
से कृषि को प्रायोरीटी देना, मैं मानता हूँ ये देश के लिए बहुत बड़ा रिफॉर्म है।
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इसके आलावा भी बजट में बढ़ोतरी आप देख लिजिये, कितनी बड़ी बढ़ोतरी बजट मे कृषि क्षेत्र के
लिए हुईं है।
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आर्थिक सुधारों की बहुत बड़ी सूची है बैंकिंग से लेकर, FDI पॉलिसी , GST, कॉर्पोरेट टैक्स घटाने,
इन्शयुरेंस, डिफेन्स FDI का परिवर्तन करके,ओर्डीनेन्स फैक्ट्री बोर्ड का कॉर्पोरेटाइजेशन और
सहकारिता मंत्रालय के गठन तक।
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आज आपको अगर रिफंड लेना है तो किसी इनकम टैक्स ऑफिस या लॉयर ऑफिस मे जाने की
जरूरत नहीं, बल्कि वो सीधे आपके एकाउंट मे आ जायेगा।
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कोई कम्पनी रजिस्टर करनी है तो कहीं जाने की जरुरत नहीं, ऑन-लाइन ही कंपनी रजिस्टर हो
जाती है। आप एक नाम डालोगे तो तीन दिन में जवाब आ जायेगा कि ये नाम तो आलरेडी रजिटर्ड
है, दूसरा नाम लाइए....जिसके लिए पहले क्युमिलेटिव इफ्फेक्ट से देखें तो अरबों खरबों रूपये घूस
लिया जाता थे, छोटी-छोटी होती थी मगर उसका क्युमिलेटिव इफ्फेक्ट अर्थतंत्र पर काले धन के
अर्जन मे बहुत बड़ी होती थी।
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ये जो दो कांसेप्ट हैं -आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इण्डिया – इसके लिए पीएलआई स्कीम लाना,
कस्टम ड्यूटी को ऊपर नीचे करके भारत के अन्दर उत्पादन के लिए माहौल बनाना, विश्व की स्पर्धा मे
खड़े रहने के लिए गुणवत्ता को अच्छी करने के लिए सरकारी योजनायें बनाना, किन-किन चीजों मे
हम दुनिया के बाजार मे अच्छे से जा सकते हैं उसको आइडेंटीफाई करके उसके लिये स्पेशल पैकेज
बनाना,स्पेशल एरिया आइडेटीफिकेशन, इस प्रकार के निर्णय किये गये हैं।
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अप्ररेल पार्क का, बड़े टेक्सटाइल पार्क के निर्माण का आज ही कैबिनेट मे निर्णय हुआ है. इससे हमारी
कृषि भी बेहतर होगी, रोजगार भी मिलेगा और एक्सपोर्ट भी बढ़ने वाला है। ऐसे ढेर सारे रिफार्म
मोदी जी ने किये हैं।
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छ साल मे अर्थव्यवस्थाओं मे हम ग्यारहवे से छठे पायदान पर पहुंचे हैं, पांच-छ मे ऊपर-नीचे होता
रहता है. एक लाख सत्रह हजार करोड़ का GST....और डायरेक्ट टैक्स मे इतनी बढ़ोतरी ... टैक्स देने
वाले कर दाताओं मे इतनी बढ़ोतरी, हर पैमाने से देखिये।
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मुझे भरोसा है कि ये जो सुधार किये हैं, चाहे NCLT का कानून हो, चाहे बैंक के स्ट्रिक्ट नार्म्स बनाने की
बात हों, चाहे ब्याज दर मे कमी करने का, हर चीज का परिणाम अब मिलने लगा है।
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कोरोना का गतिरोध अगर न आया होता तो आज हम बहुत अच्छी जगह होते, लेकिन ये पुरी दुनिया
के लिए है फिर भी हम सबसे पहले कोरोना के गतिरोध से उबरने वाले अर्थतंत्र हैं। आज हम प्री-
कोरोना स्टेज मे ऑलमोस्ट पहुँच चुके हैं।
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लगभग 54 मंत्रालयों की अलग-अलग योजनायें हैं जो जनता के लिए हैं, गरीबों के लिए, वंचितों के
लिए, पिछड़ों के लिए, दलितों-आदिवासियों के लिए हैं।
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आज तैतालिस करोड़ बैंक खातों में इन सारी योजनाओं के लाभार्थियों को उनकी धनराशि DBT के
माध्यम से एक भी बिचौलिए के बिना सीधा चेक पांच तारीख को उसको बैंक खाते मे मिल जाता
है।इससे बड़ा भला उस गरीब का क्या हो सकता है? उस बुढिया को जिसको छ सौ रुपया पाने के
लिए पचास रुपया छीन जाता था......बच्चे के वजीफे से 10 परसेंट कोई काट लेता था....आज वे सारी
चीजें खत्म हो गई हैं।
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ये सब करने के बाद भी कॉर्पोरेट टैक्स घटाकर यहाँ इन्वेस्टमेंट का माहौल बनाया है, हम इसे 17
प्रतिशत पर ले आये हैं।
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ये सब करने के बाद भी राहुल गाँधी जी को बोलने के लिए तो ठीक है, एकबार आपको साक्षात्कार
करने का मौका मिले तो इतना जरुर पूछना कि भईया आपका शासन था तो इसमें से क्या-क्या कर
पाए थे ?
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आप 10 साल तो रहे, उस दौरान आप सांसद भी थे, और आपकी माता जी पार्टी अध्यक्षा
थी....मनमोहन सिंह जी प्रधानमन्त्री थे.....तो क्या क्या कर पाए थे ? एक बार पूछियेगा उनसे, वैसे
साक्षात्कार तो वे देते नहीं, लेकिन अगर कभी आपको दें तो जरुर पूछना।
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विपक्ष में रहकर भी जनता का काम तो किया ही जा सकता है। मगर इतना जरूर है कि यहां आप
फैसले करके परिवर्तन कर सकते हैं, वहां आप फैसलों के अन्दर जो छिद्र होते हैं, उनको उजागर करने
का काम करते हो, सिस्टमेटिक सुधार के लिय़े तो आप काम कर ही सकते हो।
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हमने फैसले लेते वक्त ये कभी नहीं सोचा कि ये करने से हम चुनाव जीतेंगे या नहीं जीतेंगे और ना ही
मोदी जी की पालिसी बनाते वक्त ये सोच रहती है।
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पालिसी बनाते वक्त एक ही सोच रहती है कि ये अच्छे परिणाम देगी या नहीं देगी और जो लाभार्थी
है, उसका कल्याण होगा या नहीं होगा ? कई बार ऐसा होता है कि जनता में पहले रिएक्शन आता है
और उसका कई बार राजनीतिक खामियाजा भी भुगतना पड़ता है।
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हम राजनीति में राजनीतिक पार्टी को जिताने को नहीं हैं, हम राजनीति में देश को आगे बढ़ाने के
लिये हैं, देश की समस्याओं का परमानेन्ट साल्यूशन लाने के लिये हैं, देश को सम्मानजनक जगह पूरे
विश्व में दिलाने के लिये हैं, देश को सुरक्षित करने के लिये हैं, पूरे देश को शिक्षित करने के लिये हैं और
देश की संस्कृति को पूरे विश्व में उच्च स्थान मिले उसके लिए हम राजनीति के अंदर में हैं।
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स्वाभाविक रूप से राजनीति में चुनाव तो हम जीतना ही चाहते हैं, प्रयास तो करते ही हैं, यत्न भी
करते हैं उसके लिए, परन्तु लक्ष्य वो नहीं है।
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हर विरोध के बाद मोदीजी मजबूत होते हैं और वो मोदीजी का हौसला और बढ़ाता है क्योंकि जनता
का आशीर्वाद मोदीजी के साथ है, जनता का समर्थन उनके साथ है, जनता चट्टान की तरह नरेन्द्र
मोदी जी के साथ खड़ी है। लोकतंत्र में इससे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है।
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एक आदमी कई बार कटु फैसले लेते हैं, कड़े फैसले लेते हैं, कई बार तो जनता के लिये भी कड़े फैसले
होते हैं. काले धन पर जब आप नकेल कसते हो, जब आप आर्थिक सुधार करते हो, टैक्स इरोजन के
सारे लूपहोल्स को सील करते हो, तो कुछ लोगों को कष्ट तो होता है, हो सकता है कि सालों तक हमें
वोट देने वाले भी कुछ लोगों को कष्ट होता हो, मगर वो भी समझते हैं कि इसमें मोदी को कुछ नहीं
मिलने वाला है, इसमें देश का भला होने वाला है। इसलिए, अन्ततोगत्वा सब लोग मोदीजी के साथ
जुड़ते हैं।
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भ्रष्टाचार के आरोपों से नहीं, भ्रष्टाचार से अलोकप्रिय होते हैं, आरोप तो हम पर भी लगाने का प्रयास
किया, मगर वक्त नहीं है क्योंकि पारदर्शिता है।
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सार्वजनिक जीवन में जनता की एक करोड़ आंखें होती हैं जो आप को बारीकी से देखती हैं। मोदीजी
को देखती है, किसी को भी बख्शती नहीं है जनता।. मगर, सार्वजनिक जीवन में जब ये मालूम पड़ता
है कि इसमें कुछ नहीं है, कितना भी आरोप लगा दो, कुछ भी नहीं चिपकते हैं।
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आजादी के बाद भारत के लोकतंत्र में नरेन्द्र मोदी ही एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत हैं जिसपर हर
प्रकार के गंदे-घिनौने आरोप लगाने का प्रयास किया गया, भ्रष्टाचार से लेकर कम्यूनल राइट्स से
लेकर सब प्रकार का, एक भी नहीं चिपका।
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इसका एकमात्र कारण है कि पारदर्शी जीवन है, निजी कुछ नहीं है। हर फैसले के पीछे जब खुद का
कुछ नहीं होता है, तो गलती भी हो, जनता इसको स्वीकारती है।
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