Salient points of speech : Hon'ble Home Minister & Minister of Cooperation Shri Amit Shah while releasing Book "Maharana : Sahastra Varshon Ka Dharmyudh" in New Delhi


by Shri Amit Shah -
10-06-2022
Press Release

 

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री अमित शाह द्वारा NDMC कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित 'महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध' पुस्तक के विमोचन अवसर पर दिए गए उद्बोधन के मुख्य बिंदु

 

'महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध' पुस्तक में देश को बचाने और बनाने के लिए बप्पा रावल से लेकर महाराणा प्रताप कर सिसोदिया वंश के संघर्ष की कहानी है। मैं प्रभात प्रकाशन और डॉ ओमेंद्र रतनु जी को उनके इस महान कार्य की भूरि-भूरि सराहना करता हूँ।

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देश के स्वाधीनता संघर्ष में अपना बलिदान देने वाले देश के वीर सपूतों ने अपने बारे में नहीं सोचा बल्कि केवल और केवल एक विचार और संस्कृति के प्रवाह पर आंच आने देने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। हमें संस्कृति के इस नूतन प्रवाह को हजारों साल आगे लेकर जाना है। सालों बाद आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में दुनिया में देश का गौरव प्रतिस्थापित हुआ है।

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मैं भारत के निर्माण में संघर्ष के सभी नायकों को नमन करता हूँ एवं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। डॉ रतनु जी का यह प्रयास विफल नहीं जाएगा। आजादी के अमृत वर्ष में ही मेवाड़ की वीर गाथा के प्रकाशन से मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है।

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कुछ लोगों ने इतिहास को इस तरह लिखा जिससे यहाँ निराशा का जन्म हो लेकिन ये भारत भूमि एक ऐसी भूमि है जहां निराशा टिक ही नहीं सकती। बप्पा रावल और रावल खुमान ने इस्लामी आततायियों और अरब हमलावरों को दिन में तारे दिखाए लेकिन इतिहास ने उनके साथ कभी भी न्याय नहीं किया। **********************

इतिहास हार और जीत के आधार पर नहीं लिखा जाता बल्कि उस घटना ने क्या परिणाम छोड़ा उसके आधार पर इतिहास लिखा जाता है। इतिहास पुस्तकों का मोहताज नहीं है। यह चमकती बिजली की तरह है जो रात के अंधेरे में भी बिजली बिखेर देती है। इसीलिए, हमें अपने प्रयास को तेज करना चाहिए।

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जब हमारा प्रयास किसी से बड़ा होता है तो अपने-आप झूठ का प्रयास छोटा हो जाता है। झूठ पर टीका-टिप्पणी करने से भी झूठ प्रचारित होता है। हमें अपना इतिहास लिखने से कोई नहीं रोक सकता। हम किसी के मोहताज नहीं हैं, हम अपना इतिहास खुद लिख सकते हैं।

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किसी भी समाज को यदि अपने उज्जवल भविष्य को बनाना है तो उसे अपने इतिहास से प्रेरणा भी लेनी चाहिए, इतिहास के आधार पर उन घटनाक्रमों से सीख भी लेनी चाहिए और उससे सीख लेकर समाज के लिए आगे का रास्ता भी बनाना चाहिए।

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यदि हम अपने इतिहास को अपने दृष्टिकोण से लिखने का प्रयास करें तो बहुत देर नहीं हुई है। लड़ाई लंबी है लेकिन यह जरूरी है कि हम अपने इतिहास को सबके सामने रखें।

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हमारे यहाँ कई तेजस्वी साम्राज्य स्थापित हुए लेकिन इतिहास लिखने वालों ने केवल मुग़ल साम्राज्य की ही चर्चा की। पाण्ड्य साम्राज्य ने 800 वर्षों तक शासन किया तो अहोम साम्राज्य ने असम को लगभग 650 साल तक स्वतंत्र रखा। अहोम ने खिलजी से लेकर औरंगजेब सबको हराया।

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पल्लव राजवंश ने लगभग 600 साल तक, चालुक्य ने 600 वर्षों तक, मौर्या वंश ने अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका तक लगभग 550 वर्षों तक, सातवाहन ने 500 वर्षों तक तो गुप्त वंश ने 400 सालों तक शासन किया। समुद्रगुप्त ने पहली बार भारत की कल्पना को चरितार्थ करने का प्रयास और इसमें सफलता भी प्राप्त की। इस पर संदर्भ ग्रन्थ लिखने की परम आवश्यकता है।

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हमें अपना  गौरवशाली इतिहास जनता के सामने रखना चाहिए। यदि हमें लगता है कि इतिहास गलत लिखा हुआ है तो हम इसे सही करने का प्रयास करें। भारत सरकार भी इस दिशा में इनिशिएटिव ले रही है लेकिन इतिहास यदि समाज जीवन के इतिहासकार लिखते हैं तो सही लिखा जाता है।

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विजयनगर, मौर्य, गुप्त, मराठों ने काफी समय तक संघर्ष किया। पंजाब में सिख गुरुओं ने लड़ाइयाँ लड़ी तो वीर दुर्गादास राठौड़ ने अकेले दम पर वीरता का अदम्य साहस प्रस्तुत किया। बाजीराव पेशवा ने अटक से कटक तक भगवा लहराया लेकिन इन सबके जीवन के साथ इतिहास ने न्याय नहीं किया।

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वीर सावरकर नहीं होते तो 1857 का बहुत सारा सच छिपा ही रह गया होता। हारकर भी विजेता लोगों से ही इस देश का इतिहास बना है। आज भी रानी पद्मिनी का जौहर देश भर के व्यक्ति को गौरव के साथ जीने का सम्मान देता है। आत्मरक्षा में उच्चतम बलिदान भारत में वर्षों से चली रही है।

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भारत आकर सभी आक्रमणकारियों को रुकना पड़ा। फिर से दुनिया के सामने गौरव से खड़े होने का समय गया है। समाज में जब जनजागृति की चिंगारी फैलती है और जब वह जनजागृति की चिंगारी आग में बदलती है, तभी समाज का गौरव जागरुक होता है।

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आज हमारी संस्कृति को दुनिया भर स्वीकृति मिल रही है। इतिहास के विद्यार्थी 1000 साल के अपराजित संघर्ष और बलिदान को जरूर पढ़ें, जरूर जानें।

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केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री अमित शाह ने आज शुक्रवार को NDMC कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित 'महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध' पुस्तक का विमोचन किया। कार्यक्रम में प्रभात प्रकाशन के सभी कर्ता-धर्ता और इस पुस्तक के रचयिता डॉ ओमेंद्र रतनु भी उपस्थित थे। श्री शाह ने विस्तार से भारतवर्ष की निर्माण गाथा को त्याग, बलिदान और संघर्ष के संदर्भ में पारिभाषित किया।

 

कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री शाह ने कहा कि मुझे कई लोगों ने पूछा कि आप क्यों इस पुस्तक के विमोचन में जा रहे हैं? मैंने कहा कि मैं क्यों जाऊं? 'महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध' पुस्तक पुस्तक में देश को बचाने और बनाने के लिए बप्पा रावल से लेकर महाराणा प्रताप कर सिसोदिया वंश के संघर्ष की कहानी है। हमने अपनी स्वाधीनता के लिए लगभग 900 साल तक लड़ाई लड़ी जिसके कारण आज हम केवल बचे हुए हैं बल्कि नया इतिहास लिख रहे हैं। देश के स्वाधीनता संघर्ष में अपना बलिदान देने वाले देश के वीर सपूतों ने अपने बारे में नहीं सोचा बल्कि केवल और केवल एक विचार और संस्कृति के प्रवाह पर आंच आने देने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। हमें संस्कृति के इस नूतन प्रवाह को हजारों साल आगे लेकर जाना है। मैं भारत के निर्माण के 900 साल के इस संघर्ष के नायकों को नमन करता हूँ एवं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। मैं ओमेंद्र रतनु जी का धन्यवादी हूँ कि उन्होंने सिसोदिया वंश के 1000 साल के संघर्ष को हम सबके सामने रख दिया है। मैं डॉ रतनु जी को ये विश्वास दिलाता हूँ कि आपका प्रयास विफल नहीं जाएगा। मुझे इस बात का आनंद है कि आजादी के अमृत वर्ष में ही मेवाड़ की वीर गाथा आज गद्य रूप में प्रकाशित हो रही है।

 

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि देश में अनेक स्थानों पर अनेकों वीर योद्धाओं, राजा-महाराजाओं ने देश की आन-बाण और शान के लिए लड़ाई लड़ी है, मातृभूमि की रक्षा के लिए आक्रमणकारियों से वर्षों संघर्ष किया है। कई राजवंशों ने मिट्टी की खातिर पीढ़ियों तक लड़ाइयों को लड़ा है। इतिहास सरकारों के आधार पर नहीं बल्कि सत्य घटनाओं पर चलते हैं। मैं आज भी कहना चाहता हूँ कि इतिहास पुस्तकों का मोहताज नहीं है। यह चमकती बिजली की तरह है जो रात के अंधेरे में भी बिजली बिखेर देती है। इसीलिए, हमें अपने प्रयास को तेज करना चाहिए। जब हमारा प्रयास किसी से बड़ा होता है तो अपने-आप झूठ का प्रयास छोटा हो जाता है। झूठ पर टीका-टिप्पणी करने से भी झूठ प्रचारित होता है। हमें अपना इतिहास लिखने से और सच को जनता के सामने लाने से कोई नहीं रोक सकता। हम किसी के मोहताज नहीं हैं, हम अपना इतिहास खुद लिख सकते हैं। मैं डॉ ओमेंद्र रतनु जी को उनके इस साहसिक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ।

 

श्री शाह ने कहा कि किसी भी समाज को यदि अपने उज्जवल भविष्य को बनाना है तो उसे अपने इतिहास से प्रेरणा भी लेनी चाहिए, इतिहास के आधार पर उन घटनाक्रमों से सीख भी लेनी चाहिए और उससे सीख लेकर समाज के लिए आगे का रास्ता भी बनाना चाहिए। कुछ लोगों ने इतिहास को इस तरह लिखा कि देश में निराशा का माहौल पनपा लेकिन लेकिन ये भारत भूमि एक ऐसी भूमि है जहां निराशा टिक ही नहीं सकती। हम यदि इस पुस्तक को बारीकी से देखें तो कई चीजें दिखाई पड़ेगी। हमने अपने इतिहास को सही से जाना ही नहीं। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि बप्पा रावल ने उस समय राजाओं को साथ लेकर किस तरह इस्लामी आततायियों से लोहा लिया था और अरब हमलावरों को दिन में तारे दिखाने का काम किया था। ऐसे वीर थे बप्पा रावल। उनके इस साहसिक और वीरोचित प्रयास ने लगभग 500 वर्षों तक देश की पश्चिमी सीमा को आक्रमण से मुक्त रखा। हालांकि कच्छ के कोने से कई हमले हुए भी लेकिन हर बार आक्रमणकारियों को उन्होंने वापिस भेजा। इसी तरह रावल खुमान ने भी कई बार विदेशी आक्रांताओं को बाहर खदेड़ने का काम किया हालांकि इतिहास ने उनके साथ कभी भी न्याय नहीं किया। रावल रत्न सिंह और रावल खुमान के कालखंड में भी लगभग 40 राजवंशों को एकत्रित कर मजबूत विरोध यहाँ से हुआ था। महाराणा लक्ष्य सिंह, राणा कुंभा, राणा सांघा और महाराणा प्रताप तक, सभी के कालजयी इतिहास को संजोने का काम डॉ ओमेंद्र रतनु जी ने किया है।

 

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा यदि हम अपने इतिहास को अपने दृष्टिकोण से लिखने का प्रयास करें तो बहुत देर नहीं हुई है। लड़ाई लंबी है लेकिन यह जरूरी है कि हम अपने इतिहास को सबके सामने रखें। देवायुर के संग्राम की इतिहास में कहीं चर्चा नहीं होती। कई गौरवशाली गाथाओं पर समय की धूल पड़ी थी, उस धूल को ढंग से हटा कर घटनाओं की तेजस्विता को सब लोगों के सामने लाने का काम हमें करना चाहिए। मारे यहाँ कई तेजस्वी साम्राज्य स्थापित हुए लेकिन इतिहास लिखने वालों ने केवल मुग़ल साम्राज्य की ही चर्चा की। पाण्ड्य साम्राज्य ने 800 वर्षों तक शासन किया तो अहोम साम्राज्य ने असम को लगभग 650 साल तक स्वतंत्र रखा। अहोम ने खिलजी से लेकर औरंगजेब सबको हराया। पल्लव राजवंश ने लगभग 600 साल तक, चालुक्य ने 600 वर्षों तक, मौर्या वंश ने अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका तक लगभग 550 वर्षों तक, सातवाहन ने 500 वर्षों तक तो गुप्त वंश ने 400 सालों तक शासन किया। समुद्रगुप्त ने पहली बार भारत की कल्पना को चरितार्थ करने का प्रयास और इसमें सफलता भी प्राप्त की। इस पर संदर्भ ग्रन्थ लिखने की परम आवश्यकता है। हमें अपना  गौरवशाली इतिहास जनता के सामने रखना चाहिए। यदि हमें लगता है कि इतिहास गलत लिखा हुआ है तो हम इसे सही करने का प्रयास करें। भारत सरकार भी इस दिशा में इनिशिएटिव ले रही है लेकिन इतिहास यदि समाज जीवन के इतिहासकार लिखते हैं तो सही लिखा जाता है। विजयनगर, मौर्य, गुप्त, मराठों ने काफी समय तक संघर्ष किया। पंजाब में सिख गुरुओं ने लड़ाइयाँ लड़ी तो वीर दुर्गादास राठौड़ ने अकेले दम पर वीरता का अदम्य साहस प्रस्तुत किया। बाजीराव पेशवा ने अटक से कटक तक भगवा लहराया लेकिन इन सबके जीवन के साथ इतिहास ने न्याय नहीं किया। वीर सावरकर नहीं होते तो 1857 का बहुत सारा सच छिपा ही रह गया होता। हारकर भी विजेता लोगों से ही इस देश का इतिहास बना है। 1857 की क्रान्ति ने पूरे देश को झिंझोर कर रख दिया था। आज भी रानी पद्मिनी का जौहर देश भर के व्यक्ति को गौरव के साथ जीने का सम्मान देता है। आत्मरक्षा में उच्चतम बलिदान भारत में वर्षों से चली रही है। हार और जीत के कारण इतिहास नहीं लिखा जाता लेकिन उस घटना ने परिणाम क्या छोड़ा, इस पर लिखा जाता है। जीतने वाले कई बार हारे हुए होते हैं, बाद में यह प्रस्थापित भी हो जाता है।

 

श्री शाह ने कहा कि भारत आकर सभी आक्रमणकारियों को रुकना पड़ा। फिर से दुनिया के सामने गौरव से खड़े होने का समय गया है। समाज में जब जनजागृति की चिंगारी फैलती है और जब वह जनजागृति की चिंगारी आग में बदलती है, तभी समाज का गौरव जागरुक होता है। आज हमारी संस्कृति को दुनिया भर स्वीकृति मिल रही है। सालों बाद आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में दुनिया में देश का गौरव प्रतिस्थापित हुआ है। इतिहास के विद्यार्थी 1000 साल के अपराजित संघर्ष और बलिदान को जरूर पढ़ें, जरूर जानें। आज हम यहाँ खड़े हैं और यहाँ खड़े होने के लिए अतीत में संघर्ष की क्या-क्या कीमतें चुकाई हैं, इसका आत्मबोध होना चाहिए। मैं प्रभात प्रकाशन और डॉ ओमेंद्र रतनु जी को उनके इस महान कार्य की भूरि-भूरि सराहना करता हूँ।

 

महेंद्र कुमार

(कार्यालय सचिव)

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