Salient points of speech : Hon'ble Union Home Minister and Minister for cooperation Shri Amit Shah addressing on the occasion of 160th Birth Anniversary of Bharat Ratna Mahamana Pt Madan Mohan Malaviya ji at NDMC convention Center, New Delhi


by Shri Amit Shah -
26-12-2021
Press Release

 

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह द्वारा नई दिल्ली में भारत-रत्न महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की 160वीं जयंती समारोह में दिए गए उद्बोधन के मुख्य बिंदु

 

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय सदैव यह मानते थे कि भारतीय संस्कृति की रक्षा में ही विश्व कल्याण की अवधारणा छिपी है।

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पंडित मदन मोहन मालवीय जी एक व्यक्ति नहीं बल्कि अपने आप में आचार, विचार और संस्कार के जीते जागते प्रतिमूर्ति थे, अपने आप में एक संस्था थे।

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मातृभाषा, भारतीय संस्कृति और भारतीयता का एक साथ उद्घोष करने वाले एक मात्र स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय जी थे।

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मालवीय जी गंगा, गाय और हिंदी भाषा के सरंक्षण और संवर्धन के लिए सदा तत्पर रहे। उनके गंगा के प्रति लगाव और श्रद्धा का ही परिणाम है कि उन्होंने हरिद्वार में हर की पौड़ी बनाई और गंगा महासभा की स्थापना भी की। 

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महान शिक्षाविद महामना ने भविष्य में  शिक्षा का क्या स्वरूप होगा और आज कैसी शिक्षा चाहिए, इसकी संकल्पना काफी पहले ही कर ली थी।

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पंडित मदन मोहन मालवीय जी के जीवन की सभी उपलब्धियों में सबसे बड़ी कोई उपलब्धि है तो वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना है।

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बड़े दुख की बात है कि आजादी के तुरंत बाद मालवीय जी को भारत रत्न मिल जाना चाहिए था, जो उन्हें नहीं मिला। जब केंद्र में यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई, तब उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया गया।

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मालवीय जी ने अमीरों और गरीबों, सभी का समान रूप से आलिंगन किया और उनका यही व्यक्तित्व उन्हें महामना बनाता है।

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आजादी के आन्दोलन में भारतीयता और राष्ट्रीयता की नींव डालने का श्रेय पंडित मालवीय जी को जाता है।

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पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने कांग्रेस के भीतर भी भारतीयता लाने का प्रयास किया। जहाँ ब्रिटिश हुकूमत के प्रति प्रशस्ति गान होता था, वहां उन्होंने वंदे मातरम गायन की शुरुआत कराई।

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देश में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फूट डालो-राज करो की नीति के तहत जब 1916 में मुस्लिमों को अलग  से वोट देने का अधिकार दिया गया तो इसका भी पंडित जी ने पुरजोर विरोध किया। साथ ही उन्होंने खिलाफत आंदोलन का भी विरोध किया।

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पंडित मालवीय जी हमेशा इस बात के लिए मननशील रहते थे कि हिन्दी को किस प्रकार से आगे बढाया जाए।

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समाज में अस्पृश्यता की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने सतत प्रयास किया।

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आजादी के अमृत महोत्सव में हम सभी को एक समान एक लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ना होगा, तभी वास्तविक तौर पर हमारा देश पंडित जी के विचारों का देश बन पायेगा।

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केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज रविवार को नई दिल्ली के एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की 150वीं जयंती पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे सनातन वैदिक धर्म के चलते-फिरते विग्रह पंडित थे। मातृभाषा, भारतीय संस्कृति और भारतीयता का एक साथ उद्घोष करने वाले एक मात्र स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय जी थे।

 

माननीय केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अनेक सिद्धियों की प्राप्ति के बाद भी भिक्षु की तरह रहना और जीवन पर्यंत विनम्र बने रहना, यह पंडित जी के साधुभाव लक्षण को दर्शाता है। महान शिक्षाविद महामना ने भविष्य में  शिक्षा का क्या स्वरूप होगा और आज कैसी शिक्षा चाहिए, इसकी संकल्पना काफी पहले ही कर ली थी। महामना पंडित जी बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के संस्थापक, एक प्रख्याता अधिवक्ता के साथ साथ एक पत्रकार भी रहे, किन्तु विनम्रता उन्होंने कभी नहीं छोड़ी। पंडित मदन मोहन मालवीय जी एक व्यक्ति नहीं बल्कि अपने आप में आचार, विचार और संस्कार के जीते जागते प्रतिमूर्ति थे, अपने आप में एक संस्था थे। आजादी की लड़ाई उन्होंने सिर्फ राजनेता के तौर पर नहीं लड़ी बल्कि एक पत्रकार के तौर पर और वकालत के जरिए भी लड़ी। जहाँ तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की बात है तो मैं अभी भी मानता हूं कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी के जीवन की सभी उपलब्धियों में सबसे बड़ी कोई उपलब्धि है तो वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना है।

 

श्री शाह ने कहा कि बड़े दुख की बात है कि आजादी के तुरंत बाद मालवीय जी को भारत रत्न मिल जाना चाहिए था, जो उन्हें नहीं मिला। जब केंद्र में यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई, तब उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया गया। जब 2014 में उनको भारत रत्न मिला तब काफी लोगों ने कहा कि भारत रत्न की जरूरत नहीं थी, 'महामना' ही उनके लिए बहुत बड़ी उपाधि थी, जो स्वयं रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महात्मा गांधी जी ने उन्हें दी थी। आचार्य बिनोवा भावे ने कहा था कि मालवीय जी ने अमीरों और गरीबों, सभी का समान रूप से आलिंगन किया और उनका यही व्यक्तित्व उन्हें महामना बनाता है।

 

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत, इन तीनों भाषाओं के ज्ञाता थे, इन तीनों भाषाओं में धाराप्रवाह भाषण दे सकते थे। उन्होंने 'मकरन्द' उपनाम से कविताएं भी लिखी थी, जो खूब छपी थी। मालवीय जी की कथनी और करनी में कभी भी अंतर नहीं रहा।

 

श्री शाह ने कहा कि मालवीय जी गंगा, गाय और हिंदी भाषा के सरंक्षण और संवर्धन के लिए सदा तत्पर रहे। उनके गंगा के प्रति लगाव और श्रद्धा का ही परिणाम है कि उन्होंने हरिद्वार में हर की पौड़ी बनाई और गंगा महासभा की स्थापना भी की।  गौ हत्या को रोकने के लिए उन्होंनेभारत धर्म महामंडलकी स्थापना की। भारतवासियों में संवाद स्थापित करने के लिए 1910 में वाराणसी में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की गई। महामना पं. मदन मोहन मालवीय सम्मेलन के पहले अध्यक्ष बनाए गए।

 

वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि आजादी के आन्दोलन में भारतीयता और राष्ट्रीयता की नींव डालने का श्रेय पंडित मालवीय जी को जाता है। वैचारिक मतभेद रखने वाले के साथ भी वे एक साथ काम करते थे। यह उनके व्यक्त्वि और उनकी महानता ही रही जिसके कारण वे कांग्रेस और हिन्दू महासभा-दोनों के एक साथ अध्यक्ष रहे। उनकी यह योग्यता ही मानी जाएगी जिसकी वजह से वे कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष बने। उन्होंने कांग्रेस के भीतर भी भारतीयता लाने का प्रयास किया। जहाँ ब्रिटिश हुकूमत के प्रति प्रशस्ति गान होता था, वहां उन्होंने वंदे मातरम गायन की शुरुआत कराई। उन्हें लगा कि यह बहुत समझौतावादी संस्था बनती जा रही है तो उन्होंने वीर सावरकर और लाला लाजपत राय के साथ मिलकर हिन्दू महासभा बनायी। देश में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फूट डालो-राज करो की नीति के तहत जब 1916 में मुस्लिमों को अलग  से वोट देने का अधिकार दिया गया तो इसका उन्होंने पुरजोर विरोध किया। साथ ही उन्होंने खिलाफत आंदोलन का भी विरोध किया।

 

श्री शाह ने कहा कि पंडित मालवीय जी हमेशा इस बात के लिए मननशील रहते थे कि हिन्दी को किस प्रकार से आगे बढाया जाए।   

 

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने बिहार की एक छोटी से घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक बार वहां आयोजित कार्यक्रम में महामना जी को सम्मानित किया गया था। जब उन्होंने जगजीवन राम को बोलते सुना तो वे उन्हें पढ़ने के लिए बनारस ले आये। जब बाबूजी के जूठे बर्तन को धोने के लिए विवाद उठा तो पंडित मालवीय जी ने कहा कि आज से जगजीवन राम मेरे कमरे में रहेंगे और उनके बर्तन मैं ही साफ करूंगा। इस घटना से उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि समाज में अस्पृश्यता की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

 

श्री शाह ने कहा कि पंडित मालवीय जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव प्रयोग किये। बीएचयू में देश सहित विदेशों से आये लोगों को भी भारतीयता की शिक्षा दी। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में जो नयी शिक्षा नीति 2020 लागू की हुई है, उससे देश में शोधकर्ताओं की नई श्रृंखला खड़ी होगी, अपना देश भारत ज्ञान का हब बनेगा।

 

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव में हमें यह संकल्प लेना है कि जब देश आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएगी, तब हम सभी को एक समान एक लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ना होगा, तभी वास्तविक तौर पर हमारा देश पंडित जी के विचारों का देश बन पायेगा जो सदा यह मानते थे कि भारतीय संस्कृति की रक्षा में ही विश्व कल्याण की अवधारणा छिपी है।

 

महेंद्र कुमार

(कार्यालय सचिव)

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