Salient points of speech by Shri Rajnath Singh at Delhi University


28-01-2014
Press Release

भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह द्वारा
दिल्ली विश्वविद्यालय में दिए गए भाषण के मुख्य अंश

मैं समझता हूं कि स्वतंत्र भारत में राजनीतिक नेताओं के द्वारा जितने वादे किए गए, यदि आंशिक रूप से भी वे वादे पूरे कर दिए गए होते तो आज यह भारत विश्व का सबसे सुपर इकोनॉमिक पावर बन गया होता, इसे कोई रोक नहीं सकता। इसलिए मैं कहता हूं कि क्राइसिस ऑफ क्रेडिबिलिटी, यह बहुत बड़ा चैलेंज है। हर पॉलिटिकल पार्टी को, नेताओं को, इसे चैलेंज के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इतना ही नहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों को इस सच्चाई को भी समझना चाहिए कि अगर हम राजनैतिक क्षेत्र में काम रहे हैं तो हमारा उद्देश्य केवल सरकार बनाने के लिए नहीं होना चाहिए। राजनैतिक क्षेत्र में अगर काम कर रहे हैं तो जनता का समर्थन प्राप्त होगा तो सरकार बनाएंगे, लेकिन अगर हम राजनीति कर रहे हैं तो केवल सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि देश और समाज को बनाने के लिए राजनीति कर रहे हैं। यह भाव जब तक मन में नहीं होगा, तब तक गुड गवर्नेंस का चाहे जितना भी बड़ा खांका या एक्शन प्लान पेश क्यों न कर दें, उसे हम साकार नहीं कर पाएंगे।

गुड गवर्नेंस के बारे में एक सबसे पहली जरूरत जो मैं समझता हूं कि जनता के मन में एक सेंस ऑफ सिक्योरिटी (सुरक्षा का भाव) होना चाहिए। सुरक्षा का भाव लॉ एंड ऑर्डर के भाव में मैं नहीं कह रहा हूं, व्यक्तिगत सुरक्षा की बात नहीं कर रहा हूं। सेंस ऑफ सिक्योरिटी होनी चाहिए हेल्थ, एजुकेशन, इम्प्लॉयमेंट या कई ऐसे मामले में। कई ऐसे फेक्टर्स हैं जिसमें जनता को आश्वस्त रहना चाहिए कि यह सुरक्षा, यह सरकार अपने गवर्नेंस के माध्यम से हमें प्रदान करेगी। यह भरोसा व विश्वास होना चाहिए। लेकिन इस आजाद भारत में हुआ क्या है ? मैं समझता हूं कि कोई राजनैतिक पार्टी अगर चुनाव मैदान में उतरती है तो जनता से वादे करती है कि हम सभी को रोजगार दे देंगे, गरीबी दूर करेंगे, बेरोजगारी का संकट समाप्त हो जाएगा, सबको पर्याप्त सुरक्षा दी जाएगी। यानी जनता के मन में सेंस ऑफ सिक्योरिटी पैदा करने की पहली किसी की जिम्मेदारी होती है तो सरकार की होती है। और जब पहला दायित्व भी सरकारें नहीं निभा पाती हैं तो जनता के मन में आक्रोश होता है, असंतोष होता है।

यह भी काफी हद तक सही है कि सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, ये सारी चीजें प्राथमिक जिम्मेदारी होती हैं। अब इधर हाल-फिलहाल जो भी सरकारों ने काम किया है, इधर, एक और मेजर फेक्टर है- महंगाई का। मैं आप सबको याद दिलाना चाहता हूं कि ऐसा नहीं है कि आजाद भारत में ही महंगाई बढ़ने का सिलसिला प्रारंभ हुआ है। महंगाई पहले भी बढ़ी है। खिलजी वंश का जब शासन था 800 वर्ष पहले तो उस समय भी महंगाई बढ़ी थी और उस समय प्राइस इस्टेबिलाइजेशन के लिए उस समय जो खिलजी वंश की हुकूमत थी, उनके द्वारा कदम उठाए गए थे। लेकिन गुड गवर्नेंस किसे कहा जाएगा, जो सभी प्रधानमंत्री हैं वो प्रिकॉशन (सावधानी) लें कि जिस महंगाई का असर देश में बढ़ रहा है, उसका खामियाजा जनता पर पड़ने वाला है तो तुरंत बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए सरकार के द्वारा कुछ प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।

आज बहुत सारे गरीब इलाज के आभाव में दम तोड़ रहे हैं। कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा। क्या सरकार बनने के पांच साल तक यह काम पूरा नहीं हो सकता है ? अगर कोई गरीब हो तो यह उस राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उसका प्रीमियम पूरा करती रहे। हमारी और भी राज्य सरकारें यह काम कर रही हैं। उत्तर प्रदेश का

रोजगार का जहां तक सवाल है, डोल्स तो दिए जाते हैं, चुनाव जीतने के लिए रोजगार भत्ता तो देने की घोषणा की जाती है, लेकिन धरातल पर काम नहीं होता। मगर मैं भारत के नौजवानों को जानता हूं कि भारत का नौजवान स्वाभिमानी है। वह भत्ता, डोल्स, बख्शीश नहीं चाहता, बल्कि वह स्वाभिमान के साथ जीना चाहता है।

योग्यता, क्षमता, प्रतिभा जिसकी जितनी हो, क्या उसे रोजगार का अवसर नहीं मिलना चाहिए। आज गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। क्यों उन्हें गांव से शहर आना पड़ रहा है ? क्या सरकार ने इस पर सोचा है ? क्या गांवों में शिक्षा बेहतर नहीं दे सकते ? क्या वहां हेल्थ सिक्योरिटी नहीं दे सकते ? हम वहां पर भी रोजगार नहीं दे सकते ? सड़क, बिजली, पानी हो गांवों में तो क्यों कोई शहरों की ओर जाएंगे ? मैं याद दिलाता हूं कि महात्मा गांधी ग्राम स्वराज्य की बातें करते थे। आज भी भारत गांवों का देश है। गांव में जितनी भी बुनियादी सुविधाएं हैं, वो गांवों में दिलाना होगा। अगर भारत का विकास करना है तो ऐसा करना ही होगा।

मैन्युफैक्चिरंग सेक्टर्स की हालत मैं देख रहा हूं। इसमें जितने भी उद्योग हैं, सभी आएंगे। जॉब्स अगर बढ़ेंगे तो इस सेक्टर को बढ़ाना देने से ही वह लक्ष्य प्राप्त होगा। आज अगर जीडीपी में इसका 13 से 14 फीसदी तक का योगदान है तो क्या हम इसे और भी अधिक नहीं बढ़ा सकते ? मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स में गिरावट होने के कारण एक तरफ चीन पुवर क्वालिटी की चीजों को एक्सपोर्ट कर रहा है, भारतीयों के पास इस क्षेत्र के लिए वो दक्षता है कि हम कहीं अधिक खरे उतरेंगे। यही कारण है कि भारत में मैन्युफैक्चर्ड चीजों को दुनिया में महत्ता दी जाती है, लेकिन इस सेक्टर्स को जितना प्रमोट करना चाहिए, उतना नहीं किया गया है। आज हमारा इंपोर्ट बढ़ता जा रहा है, एक्सपोर्ट कम होता जा रहा है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स की हालत खराब होने के ये कारण हैं। परिणाम करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ते जा रहा है। करंट अकाउंट डेफिसिट जब बढ़ेगा और विदेशी कर्जा लेकर जब काम चलाएंगे तो डॉलर के मुकाबले रुपया गिरेगा ही। आज यही हो रहा है।

हालांकि, हमारे प्रधानमंत्री जी को कहना नहीं चाहिए क्योंकि वो एक इकोनोमिस्ट हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने संसद में कहा था कि भाजपा के लोग यह हाउस चलने नहीं देते हैं, इस कारण विदेशी निवेश भारत में नहीं हो सकता है जिसके कारण भारत की आर्थिक स्थिति खराब है। आप बताइए मित्रों, क्या भारत में ह्यूमेन रिसोर्सेज की कमी है ? नेशनल रिसोर्सेज की कमी है ? क्यों यह कहा जाता है कि भारत विदेशी पूंजी के बिना खड़ा नहीं हो सकता ? तो मैं यह पूछना चाहता हूं कि हमारे डोमेस्टिक इन्वेस्टर भारत को छोड़कर दुनिया क्यों जा रहे हैं ? इसका कोई जवाब नहीं हैं। जनता की आंखों में धूल झोंककर थोड़े समय के लिए सरकार बनाई जा सकती है, देश नहीं।

भ्रष्टाचार का मुद्दा है। किसी भी विभाग चले जाइए, लोग कहते हैं कि जब तक दो-चार रुपए नहीं रखते, तब तक फाइल मूव करती ही नहीं है। यह हालात है। कितने लाखों-करोड़ों के भ्रष्टाचार हुए हैं, ये मैं नहीं सीएजी कह रहा है। क्या भ्रष्टाचार को रोकने के लिए हमें कदम नहीं उठाने चाहिए ? केवल लोकपाल के पास होने से भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम लग जाएगा, ऐसा नहीं है। भ्रष्टाचार की सीमा देखिए, फाइलें ही मंत्रालय से गायब हो रही हैं। लोकपाल के साथ कई ऐसे बिल हैं जो पेंडिंग हैं, लेकिन केवल कानूनों के माध्यम से भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकता।

अब दूसरा बिंदु कि हमारे भारतवासियों के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता होनी चाहिए। नेताओं को भी सोर्स ऑफ इंसपेरेशन (प्रेरणास्रोत) के रूप में काम करना होगा। एजुकेशन सिस्टम, ज्यूडिशियरी सिस्टम, इकोनॉमिक सिस्टम में भी बदलाव लाना होगा। इन सारी विषयों पर विचार होना चाहिए, जो नहीं हो रही हैं। अगर भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर वश पाना है, देश के सिस्टम में चेंज लाना है तो सबसे जरूरी है मूल्यों के प्रति कमिटमेंट की।

दोस्तों, पाकिस्तान की सेना के जवान यहां आते हैं और हमारे सेना के जवान की हत्या करते हैं, एक सेना के जवान का शरीर कुचल डालते हैं, दूसरे सेना के जवान का सिर धड़ से अलग कर सिर अपने साथ ले जाते हैं। और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है ? सरकार की क्या जिम्मेदारी बनती है ? भारत के सेना के जवानों के शौर्य और पराक्रम पर मुझे संदेह नहीं है। बल्कि मैं तो यह कहता हूं कि एक बार खुले हाथ हमारे जवानों को छोड़ दिया जाए तो हमारे सेना के जवानों के शौर्य और पराक्रम को देख लीजिए। चीन कहता है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का नहीं चीन का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर के बारे में कहते हैं कि स्टेप्ल्ड वीजा जारी करेंगे, अरुणाचल प्रदेश के लोगों को वीजा की कोई जरूरत नहीं है। हम कुछ नहीं बोलते हैं ? पड़ोसी देशों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर होने चाहिए, लेकिन इसके लिए कूटनीतिक कुशलता चाहिए। 2003 में जब श्री अटल जी चीन गए थे तो वहां से तोहफा लेकर आए थे, जो चीन सिक्किम पर दावा किया था कि यह मेरा है, उसी दिन से चीन इस बात को कहने लगा कि अब हम सिक्किम पर दावा नहीं करेंगे, यह होती है डिप्लोमेटिक स्किल।

मैं कहता हूं कि भारत में केवल सुपर इकोनॉमिक पावर ही नहीं, बल्कि स्पिरिचुअल विकास भी हो। यदि भारत को जगत-गुरु बनाना है तो आर्थिक शक्ति के साथ आध्यात्मिक शक्ति का भी विकास करना होगा।

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