विमुद्रीकरण: बीते दो महीनों पर एक नजर


08-01-2017
Press Release

 

विमुद्रीकरण: बीते दो महीनों पर एक नजर

- अरुण जेटली

प्रधानमंत्री ने उच्च मूल्य वर्ग के लीगल टेंडर को खत्म करने की जो घोषणा की थी उसे दो महीने हो गए हैं। इसके बाद वे नोट विमुद्रीकृत हो गए हैं। देश की 86 प्रतिशत मुद्रा, जो कि जीडीपी का 12.2 प्रतिशत है अगर बाजार से बाहर निकाल जी जाए और उसे नई मुद्रा से परिवर्तित कर दी जाए तो स्वाभाविक है कि इस फैसले के कई महत्वपूर्ण परिणाम होंगे। बैंकों में लगी लंबी लाइनें अब खत्म हो गई हैं और नई मुद्रा भी तेजी से पहुंच रही है, ऐसे में इस निर्णय के पीछे तर्क और इसके प्रभाव का विश्लेषण करना उचित होगा।

1. कालेधन के विरुद्ध कदम

नरेन्द्र मोदी सरकार ने पहले ही दिन से यह स्पष्ट कर दिया था कि वह कालेधन और छ्दम अर्थव्यवस्था के खिलाफ कदम उठाएगी। इस दिशा में पहला निर्णय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार कालेधन की जांच के लिए एसआइटी के गठन का था। प्रधानमंत्री ने जी-20 की ब्रिसबेन बैठक में सुझाव दिया था कि बेस इरोजन और प्रॉफिट शिफ्टिंग के संबंध में सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग तेज करना चाहिए। अमेरिका के साथ की गई व्यवस्था ने इस उद्देश्य को आगे बढ़ाया। राजग सरकार ने स्विटजरलैंड के साथ समझौता किया जो 2019 से लागू होगा जिसके तहत स्विटजरलैंड में भारतीयों की संपत्ति के बारे में सूचनाएं दोनों देश एक दूसरे से साझा करेंगे। वर्ष 1996 से मॉरीसस के साथ दोहरा कराधान निवारण समझौते के नवीनीकरण के लिए वार्ताएं चल रही थी। इस संधि के नवीनीकरण न होने से राउंड ट्रिपिंग को ही प्रोत्साहन मिल रहा था। इसे अब संशोधित व परिवर्धित कर लिया गया है। इसी तरह की संधि साइप्रस और सिंगापुर के साथ भी थी, उन्हें भी संशोधित कर लिया गया है। भारत के बाहर रखी संपत्तियों से संबंधित कालेधन के कानून में 60 प्रतिशत टैक्स और दस साल सजा का प्रावधान है। आय घोषणा योजना 2016 भी 45 प्रतिशत टैक्स के साथ बेहद सफल रही। दो लाख रुपये से अधिक के कैश लेन-देन में पैन कार्ड अनिवार्य कर दिए जाने से कालेधन के जरिए होने वाले खर्च पर अंकुश लगा। बेनामी कानून 1988 में बना था लेकिन यह कभी लागू नहीं हुआ। अब इसे संशोधित करके लागू कर दिया गया है। जीएसटी इस साल से लागू होने जा रहा है और यह बेहतर अप्रत्यक्ष-कर प्रशासन सुनिश्चित करेगा, साथ ही यह अधिक सक्षम कानून होने से कर चोरी को रोकने में भी सफल हो सकेगा। उच्च मूल्य वर्ग के मुद्रा नोटों को बंद करना भी इसी दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम है।

2. नई सामान्य स्थिति

वर्ष 2015-16 में 125 करोड़ से अधिक की आबादी में से मात्र 3.7 करोड़ लोगों ने आयकर रिटर्न दाखिल किया। इनमें से 99 लाख ने अपनी आय 2.5 लाख रुपये से कम होने का दावा किया और एक भी पैसे का कर-भुगतान नहीं किया। 1.95 करोड़ करदाताओं ने पांच लाख रुपये से कम आय बतायी। 52 लाख लोगों ने अपनी आय 5 से 10 लाख रुपये के बीच में बतायी। सिर्फ 24 लाख करदाता ही ऐसे थे जिन्होंने अपनी आय 10 लाख रुपये से अधिक बतायी। इस बात का इससे बेहतर सबूत नहीं हो सकता कि भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष - दोनों ही टैक्स के मामले में बड़ी संख्या में समाज के लोग कर-कानूनों का पालन नहीं करते। कर कानून का पालन न होने की स्थिति में गरीबी निवारण,राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए जरूरी खर्च के साथ समझौता करना पड़ता है। कई दशकों तक भारत में कुछ लेन-देन कैश में तथा कुछ चैक के जरिए करना आम बात रही है। पक्का और कच्चा खाता कारोबारी भाषा के हिस्से बन गए हैं। कर चोरी को अनैतिक नहीं माना गया, यह जीवन का एक तरीका समझा गया। कई सरकारों ने इसे सामान्य स्थिति समझकर जारी रहने दिया जबकि इससे व्यापक जनहित प्रभावित हो रहा था। प्रधानमंत्री का फैसला एक नई सामान्य स्थिति बनाने के लिए है। यह भारत और भारतीयों के व्यय प्रतिरूप को बदलने के लिए है। ऐसे में व्यवस्था में आंशिक व्यवधान होना स्वाभाविक है। सभी सुधारों को लागू करते वक्त कुछ आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। नोटबंदी से ईमानदारी को लाभ तथा बेइमानों को सजा मिलेगी।

3. कैश के प्रतिकूल परिणाम

पेपर करेंसी पर कोई ब्याज नहीं मिलता और यह भी मालूम नहीं होता है कि यह किसका है। इसके साथ न तो कोई नाम जुड़ा होता है और न ही कोई इतिहास। वैसे तो अपराध कैश या कैश के बिना भी हो सकता है लेकिन कैश के चलते अत्यधिक लेन-देन से कालेधन की अर्थव्यवस्था को मदद मिली है। कर-भुगतान के संबंध में इसका नतीजा ‘नॉन-कंप्लायंस’ के रूप में होता है जो कर चोरी करने वाले के पक्ष में तथा गरीब एवं वंचित के खिलाफ होता है। हवाला के माध्यम से बड़ी मात्रा में नकदी, टैक्स हैवंस में चली जाती है। कैश में होने वाले लेन-देन की रीयल टाइम निगरानी भी नहीं हो सकती। कैश ऐसा माध्यम है जिससे रिश्वत, भ्रष्टाचार, जाली मुद्रा और आतंकवाद पोषित होता है। विकसित और नैतिक समाज प्रौद्योगिकी की मदद से बैंकिंग और डिजिटल लेन-देन की ओर बढ़े हैं और उन्होंने अत्यधिक कैश का लेन-देन कम किया है। पेपर करेंसी कई बुराइयों के दरवाजे खोलती है। सरकार जब कर-चोरों से अधिक कर वसूलने में कामयाब रहती है तो वह अन्य सभी लोगों से कम टैक्स वसूलने की स्थिति में रहती है। कैश के इस्तेमाल को कम करने से आतंकवाद और अपराध भले ही कम न हो लेकिन यह उन्हें गंभीर चोट तो पहुंचा ही सकती है। कई देशों ने दिखाया है कि कैश का इस्तेमाल अपने आप कम नहीं होता, सरकार को पेपर करेंसी को कम करने के लिए सक्रिय कदम उठाने ही पड़ते हैं।

4. निर्णय का महत्व

प्रधानमंत्री ने उच्च मूल्य वर्ग के नोट को बंद करने और उन्हें बदलने का जो निर्णय लिया उसके लिए साहस और शक्ति, दोनों की आवश्यकता होती है। निर्णय का क्रियान्वयन पीड़ादायी रहा। अल्पावधि में इससे असुविधा हो सकती है और इसकी आलोचना भी हो सकती है। मुद्रा की पुन: आपूर्ति के दौरान करेंसी की कमी के चलते आर्थिक गतिविधयों में गिरावट हो सकती है, अर्थव्यवस्था पर भी बहुत कम समय के लिए क्षणिक प्रभाव पड़ेगा। इस निर्णय को गोपनीय रखते हुए बड़ी मात्रा में पेपर करेंसी छापना और फिर इसे बैंकों, पोस्ट ऑफिसों, बैंक मित्रों और एटीएम के माध्यम से वितरित भी करना था।

महज बैंक में पुराने नोट जमा हो जाने से कालाधन सफेद नहीं हो जाता। कालेधन का रंग सिर्फ इसलिए नहीं बदल जाएगा कि वह बैंक में जमा हो गया। इसके विपरीत हकीकत यह है कि यह धन किसका है इसका अब पता लगाया जा सकेगा। इससे इसकी गुमनामी खत्म हो जायेगी। इस तरह राजस्व विभाग इस धन पर टैक्स वसूलने का अधिकारी होगा। आयकर कानून में पहले ही संशोधन किया जा चुका है जिसके तहत अगर किसी व्यक्ति का काला-धन पकड़ा गया तो उस पर उच्च दर से टैक्स और पेनाल्टी, दोनों वसूली जाएगी।

5. आज की स्थिति

पीड़ा और असुविधा का दौर अब खत्म हो रहा है। आर्थिक गतिविधयां सामान्य हो रही हैं। आज बैंकों के पास उधार देने के लिए पहले से काफी अधिक धन उपलब्ध है क्योंकि बैंकों के पास जमा यह धन कम लागत पर उपलब्ध हुआ है। इसके फलस्वरूप ब्याज दर नीचे आना तय है। ये दोनों बातें पहले हो चुकी हैं। लाखों करोड़ रुपये पहले जो बाजार में पड़े थे, बैंकों के पास आ गए हैं। जिसका पैसा था, उस पर टैक्स लगेगा जिससे वह इसे प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर सकेगा। बैंकिंग लेन-देन से अर्थव्यवस्था का आकार बढेगा। मध्यावधि और दीर्घावधि में जीडीपी बढ़़ेगा और उसमें स्पष्टता आयेगी। बैंकिंग तंत्र में प्रवेश करने वाले धन से और आधिकारिक तौर पर लेन-देन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष-कर अधिक वसूलने का रास्ता साफ होगा। इससे केंद्र और राज्य, दोनों का फायदा होगा। अर्थव्यवस्था को कैश और डिजिटल लेन-देन से फायदा पहुंचेगा।

6. विपक्ष

इस तरह के एक प्रमुख निर्णय के इम्प्लीमेंटेशन में कहीं कोई सामाजिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। स्वतंत्र मीडिया संगठनों द्वारा किए गए सभी जनमत सर्वेक्षणों से पता चला है कि अधिकतर लोगों ने सरकार के फैसले का समर्थन किया है। विपक्ष ने संसद का एक पूरा सत्र बाधित कर दिया। उनके विरोध प्रदर्शन अप्रभावी रहे। अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचने के उनके अतिशयोक्तिपूर्ण दावे गलत सिद्ध हुए। यह एक त्रासदी है कि कांग्रेस जैसी एक राष्ट्रीय पार्टी ने प्रौद्योगिकी, परिवर्तन और सुधारों का विरोध करने का एक राजनीतिक रुख इख्तियार कर काले -धन की व्यवस्था का साथ दिया।

7. स्पष्ट अंतर

प्रधानमंत्री और उनके विरोधियों के दृष्टिकोण में एक अंतर स्पष्ट था। प्रधानमंत्री भविष्य के प्रति आशावान, साथ ही उनकी सोच एक अधिक आधुनिक एवं प्रौद्योगिकी संचालित साफ़-सुथरी अर्थव्यस्था की है। अब वे राजनीतिक चंदे की फंडिंग व्यवस्था की सफाई की बात कर रहे हैं। उनके विरोधी एक नकद प्रभुत्व, नकदी पैदा करने और नकद विनिमय वाली प्रणाली जारी रखना चाहते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच का अंतर स्पष्ट है - प्रधानमंत्री अगली पीढ़ी की बात करते हैं जबकि राहुल गांधी केवल यह सोच रहे हैं कि संसद के अगले सत्र को बाधित कैसे किया जाय।

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