Good Governance

"A Year After Demonetisation" by Minister of Finance, and Corporate Affairs, Shri Arun Jaitley


07-11-2017

डिमोनेटाईजेशन के एक वर्ष

- अरुण जेटली

नवंबर 8, 2016 भारतीय अर्थव्यवस्था में एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में याद किया जाएगा। यह दिन देश को "काले धन की खतरनाक बीमारी" से दूर करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार के संकल्प को दर्शाता है। हम भारतीयों को, भ्रष्टाचार और काले धन के संबंध में "चलता है" के रवैये के साथ रहने के लिए मजबूर किया गया था और इसका सबसे बड़ा कुप्रभाव विशेष रूप से मध्यम वर्ग और समाज के निचले तबकों को भुगतना पड़ा था। भ्रष्टाचार और काले धन के अभिशाप को जड़ से उखाड़ फेंकने का लंबे समय से हमारे समाज के बड़े हिस्से की यह एक हार्दिक इच्छा थी जो मई 2014 में संपन्न हुए आम चुनाव में लोगों के फैसले में प्रकट हुई थी।

मई 2014 में जिम्मेदारी ग्रहण करने के तुरंत बाद, इस सरकार ने काले धन पर एसआईटी का गठन करके काले धन के खतरे से निपटने की लोगों की इच्छा को पूरा करने का फैसला किया। हमारा देश इस बात से भलीभांति अवगत है कि किस तरह इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का तब की कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने कई वर्षों तक अवहेलना की थी। बेनामी संपत्ति कानून के क्रियान्वयन में 28 साल की देरी कांग्रेस सरकार द्वारा काले धन से लड़ने के प्रति इच्छाशक्ति की कमी का एक और उदाहरण था।

इस सरकार ने काले धन के खिलाफ लड़ाई के उद्देश्य को पूरा करने के लिए विगत तीन वर्षों में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए और क़ानून के पूर्व प्रावधानों को अच्छी तरह से समझते हुए इसे नियोजित तरीके से लागू किया। SIT के गठन से इन फैसलों की शुरुआत हुई और फिर विदेशी संपत्ति के संदर्भ में आवश्यक क़ानून बनाने के साथ-साथ डिमोनेटाईजेशन और जीएसटी को क्रियान्वित कर काले धन के खिलाफ लड़ाई की निर्णायक पहल की गई।

जब देश "एंटी-ब्लैक मनी डे" में भाग ले रहा है, तब एक बहस शुरू हुई है कि क्या विमुद्रीकरण ने किसी निर्दिष्ट उद्देश्य की पूर्ति की है। यह नोट उक्त उद्देश्यों के संबंध में लघु एवं दीर्घ काल के लिए डिमोनेटाईजेशन के सकारात्मक परिणाम को उल्लेखित करने का प्रयास है।

आरबीआई ने अपने वार्षिक रिपोर्ट में सूचित किया है कि 30.6.2017 तक 15.28 लाख करोड़ रुपये के अनुमानित मूल्य के निर्दिष्ट बैंक नोट्स (एसबीएन) वापस जमा किए गए हैं। 8 नवंबर, 2016 को बकाया एसबीएन 15.44 लाख करोड़ रुपये के मूल्य के थे। 8 नवंबर, 2016 को डिमोनेटाईजेशन के वक्त कुल 17.77 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में थी।

डिमोनेटाईजेशन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भारत को एक कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था में तब्दील करना था और इस तरह से व्यवस्था में से काले धन के प्रवाह को भी कम करना था। आधार स्थितियों से परिसंचरण में मुद्रा में कमी दर्शाती है कि इस निर्दिष्ट उद्देश्य को पूरा करने में सफलता प्राप्त हुई है। सितंबर, 2017 को समाप्त हुए आधे साल के लिए "प्रचलन में मुद्रा" का प्रकाशित आंकड़ा 5.89 लाख करोड़ रुपये है। यह (-) 1.39 लाख करोड़ रुपए के सालाना वेरिएशन को रेखांकित करंता है जबकि इसी अवधि के लिए पिछले वर्ष के दौरान सालाना वेरिएशन (+) 2.50 लाख करोड़ रुपये था। इसका मतलब यह है कि मुद्रा संचरण में पिछले साल की तुलना में 3.89 लाख करोड़ रुपये की कमी हुई है।

हमें व्यवस्था में से अतिरिक्त मुद्रा क्यों हटानी चाहिए? हमें नकद लेन-देन में कटौती क्यों करनी चाहिए? यह सामान्य ज्ञान है कि नकदी गुमनाम होती है। जब विमुद्रीकरण लागू किया गया था, तो इसका एक उद्देश्य अर्थव्यवस्था में नकदी जमा रखने वालों की पहचान भी करना था। औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में 15.28 लाख करोड़ रुपये की वापसी के बाद अब अर्थव्यवस्था में नकदी रखने वाले लगभग सभी धारकों की पहचान हो गई है। अब कोई गुमनाम नहीं है। इस इनफ्लो से, विभिन्न अनुमानों के आधार पर संदिग्ध लेन-देन में शामिल होने वाली राशि 1.6 लाख करोड़ रुपये से लेकर 1.7 लाख करोड़ रुपये तक की है। अब यह कर प्रशासन और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के ऊपर है कि वे बड़े डाटा विश्लेषण का प्रयोग कर संदिग्ध लेन-देन पर शिकंजा कसें। इस दिशा में पहले ही कदम उठाये जाने शुरू हो गए हैं। 2016-17 के दौरान बैंकों द्वारा दर्ज संदेहास्पद ट्रांजेक्शन के रिपोर्टों की संख्या 2015-16 के 61,361 से बढ़कर 2016-17 में 3,61,214 हो गई है; वित्तीय संस्थाओं के लिए इसी अवधि के दौरान 40,333 से 94,836 की वृद्धि हुई है और सेबी के साथ पंजीकृत मध्यस्थों के लिए 4,579 से 16,953 की वृद्धि दर्ज की गई है।

डाटा विश्लेषण के आधार पर, आयकर विभाग द्वारा 2015-16 की तुलना में जब्त नकदी 2016-17 में दोगुनी हो गई है; विभाग द्वारा खोज और जब्ती के दौरान 15,497 करोड़ की अघोषित आय की स्वीकारोक्ति हुई है जो 2015-16 के दौरान अघोषित आय की स्वीकारोक्ति से 38% अधिक है; 2016-17 में सर्वेक्षणों के दौरान 13,716 करोड़ रुपये की अघोषित आय की पहचान की गई है जो 2015-16 की तुलना में 41% अधिक है।

अघोषित आय की स्वीकारोक्ति और अघोषित आय की पहचान को मिलाकर 9, 213 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त हुई जो संदिग्ध ट्रांजेक्शन में शामिल राशि का लगभग 18% है। जनवरी 31, 2017 को शुरू हुए 'ऑपरेशन क्लीन मनी' से इस प्रक्रिया ओ और गति मिलेगी।

मुद्रा के साथ गुमनामी को हटाने की प्रक्रिया के फलस्वरूप निम्नलिखित रूप में परिणाम प्राप्त हुए हैं:

● 56 लाख नए व्यक्तिगत करदाताओं ने 5 अगस्त, 2017 तक अपने रिटर्न दाखिल किये जो इस श्रेणी के लिए वापसी दाखिल करने की आखिरी तारीख थी; पिछले साल यह संख्या लगभग 22 लाख थी।

● गैर-कॉरपोरेट करदाताओं द्वारा 1 अप्रैल से 5 अगस्त 2017 में इसी अवधि के दौरान 2016 की तुलना में 34.25% ज्यादा स्वयं-मूल्यांकन कर (कर दाताओं द्वारा स्वैच्छिक भुगतान) का भुगतान किया गया।

कर आधार में वृद्धि और अघोषित आय को औपचारिक अर्थव्यवस्था में वापस लाने के साथ-साथ चालू वित्त वर्ष के दौरान गैर-कॉर्पोरेट करदाताओं द्वारा अग्रिम कर के रूप में भुगतान की गई राशि भी 1 अप्रैल से 5 अगस्त के बीच 42% बढ़ी है।

डिमोनेटाईजेशन अवधि के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों के चलते एकत्रित सुरागों से 2.97 लाख संदिग्ध शेल कंपनियों की पहचान की गई। इन कंपनियों को वैधानिक नोटिस जारी करने और कानून के तहत प्रक्रियाओं का अनुपालन करने के पश्चात् 2.24 लाख कंपनियों को रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज से डि-रजिस्टर किया गया है।

इन बंद कंपनियों से बैंक खातों के संचालन को रोकने के लिए कानून के तहत और कार्रवाई भी की गई है। इनके बैंक खातों को फ्रीज करने और उनके निदेशकों को किसी भी कंपनी के बोर्ड में होने से रोकने के लिए भी कार्रवाई की जा रही है। ऐसी कंपनियों के बैंक खातों के शुरुआती विश्लेषण में निम्नलिखित तथ्य सामने आये हैं:

● 2.97 लाख बंद कंपनियों में से 28,088 कम्पनी से संबद्ध 49,910 बैंक अकाउंट्स से पता चलता है कि इन कंपनियों ने 9 नवंबर 2016 से RoC द्वारा बंद किये जाने तक 10,200 करोड़ रुपये की डिपाजिट और निकासी की है।

● इनमें से कई कंपनियों के 100 से अधिक बैंक खाते हैं - एक कंपनी के पास तो 2,134 बैंक खाते हैं।
इसके साथ ही, आयकर विभाग ने 1150 से अधिक शेल कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की है, जिसका उपयोग 22,000 से ज्यादा लाभार्थियों द्वारा 13,300 करोड़ रूपए से अधिक की राशि को व्हाईट करने के लिए एक टूल के तौर पर किया गया।

डिमोनेटाईजेशन के बाद, सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों में एक ग्रेडेड सर्विलांस मेज़र अपनाया है। इस पैमाने को एक्सचेंजों द्वारा 800 से अधिक प्रतिभूतियों में शुरू किया गया है। निष्क्रिय और निलंबित कंपनियां कई बार हेराफेरी करनेवालों के लिए एक पनाहगाह के रूप में उपयोग में आती है। ऐसी 450 कंपनियों को एक्सचेंज से डिलिस्ट किया गया गया है और इनके प्रमोटरों के अकाउंट्स को भी फ्रीज किया गया है, साथ ही उन्हें सूचीबद्ध कंपनियों के निदेशक होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। भूतपूर्व क्षेत्रीय एक्सचेंजों में सूचीबद्ध लगभग 800 कंपनियों का पता नहीं चल पाया है और इन्हें गायब होने वाली कंपनियों के रूप में घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

डिमोनेटाईजेशन बचत के वित्तीयकरण में तेजी को प्रेरित करने के रूप में प्रतीत होता है। समानांतर रूप में, GST को लागू किये जाने से अर्थव्यवस्था और अधिक फॉर्मलाईजेशन की ओर शिफ्ट हुई है। बदलावों का संकेत देने वाले कुछ पैरामीटर्स निम्नलिखित हैं

● कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट ने अतिरिक्त वित्तीय बचत और ब्याज दर में कमी के संचरण का लाभ देना शुरू किया है। 2016-17 में 1.78 लाख करोड़ रुपये के कॉरपोरेट बॉण्ड मार्केट जारी हुए हैं, सालाना तौर पर 78,000 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई है।

● पब्लिक और राइट्स इश्यूज के चलते प्राथमिक बाजार वृद्धि में आये उछाल से यह प्रवृत्ति और आगे बढ़ी है। 2015-16 के दौरान 24,054 करोड़ रुपये की इक्विटी जुटाने के लिए 87 पब्लिक और राइट्स इश्यूज थे जबकि 2017-18 के पहले 6 महीने में ही 28,319 करोड़ रुपये के 99 ऐसे इश्यूज मौजूद हैं।

● 2016-17 के दौरान म्युचुअल फंडों में शुद्ध निवेश 2015-16 की तुलना में 155% बढ़ कर 3.43 लाख करोड़ तक पहुंच गया, नवंबर 2016 से जून 2017 के दौरान म्यूचुअल फंडों में शुद्ध निवेश 1.7 लाख करोड़ रुपये था जो कि इससे पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 9,160 करोड़ रुपये था।

● लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा प्रीमियम कलेक्ट करने में नवंबर 2016 में दुगुनी वृद्धि हुई है, जनवरी 2017 के दौरान संचयी संग्रह में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई। प्रीमियम कलेक्शन में सितम्बर 2017 में इसी अवधि की तुलना में 21% की ग्रोथ देखने को मिली है। कम नकदी अर्थव्यवस्था में बदलाव के बल पर भारत ने 2016-17 के दौरान डिजिटल भुगतान में बड़ी छलांग लगाई है। कुछ रुझान इस प्रकार हैं:

● करीब 3.3 लाख करोड़ रुपये के 110 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के जरिये 3.2 लाख करोड़ रुपये के और 240 करोड़ ट्रांजेक्शन किये गए। 2015-16 में डेबिट और क्रेडिट कार्ड से ट्रांजेक्शन का मूल्य क्रमशः 1.6 लाख करोड़ रुपये और 2.4 लाख करोड़ रुपये थे।

● प्री-पेड इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई) के साथ लेनदेन का कुल मूल्य 2015-16 में 48,800 करोड़ रुपये से 2016-17 में बढ़ कर 83,800 करोड़ रुपये हो गया। पीपीआई के माध्यम से लेन-देन लगभग 75 करोड़ से बढ़कर 196 करोड़ हो गया है।

● 2016-17 के दौरान, नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (एनईएफटी) के माध्यम से 120 लाख करोड़ रुपये के 160 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए जबकि पिछले वर्ष 83 लाख करोड़ रुपये के लगभग 130 करोड़ के ट्रांजेक्शन हुए थे।

फॉर्मलाइजेशन के उच्च स्तर के चले उन श्रमिकों को लाभ पहुंचा है जो ईपीएफ योगदान के रूप में सामाजिक सुरक्षा, ईएसआईसी सदस्यता सुविधाओं और बैंक एकाउंट्स में मजदूरी के डिपोजिट के लाभों से वंचित थे। श्रमिकों के लिए बैंक खातों को खोलने में बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है, नोटबंदी के बाद बड़े पैमाने पर श्रमिकों की EPF और ESIC में एनरॉलमेंट में वृद्धि हुई है। डिमोनेटाईजेशन के बाद एक करोड़ से अधिक श्रमिकों को ईपीएफ और ईएसआईसी सिस्टम से जोड़ा गया जो कि वर्तमान लाभार्थियों की तुलना में लगभग 30% अधिक है। लगभग 50 लाख श्रमिकों के लिए बैंक खाते खोले गए ताकि उनकी मजदूरी सीधे उनके बैंक अकाउंट में आये। इसके लिए पेमेंट ऑफ़ वेगेज एक्ट में आवश्यक संशोधन किये गए।

कश्मीर में विरोध प्रदर्शन एवं पत्थरबाजी की घटनाओं और एलडब्ल्यूई प्रभावित जिलों में नक्सल गतिविधियों में कमी को भी डिमोनेटाईजेशन के प्रभावों के तौर पर गिना जा सकता है क्योंकि शरारती तत्वों के पास नकदी की कमी आई है। नकली भारतीय मुद्रा नोट (एफआईसीएन) तक उनकी पहुंच भी प्रतिबंधित हुई है। 2016-17 के दौरान, 1000 रुपये के एफआईसीएन का पता लगाने के लिए विमुद्रीकरण 1.43 लाख से 2.56 लाख नोटों की संख्या तक पहुँच गया। रिज़र्व बैंक की मुद्रा सत्यापन और प्रसंस्करण प्रणाली में, 2015-16 के दौरान प्रत्येक मिलियन नोट की प्रोसेसिंग में 500 रुपये के एफआईसीएन के 2.4 और 1000 रुपये के एफआईसीएन के 5.8 नोट थे जो डिमोनेटाईजेशन अवधि के बाद बढ़कर क्रमशः 5.5 और 12.4 तक पहुँच गए जो लगभग दुगुना है।

समग्र विश्लेषण में, यह कहना गलत नहीं होगा कि देश बहुत साफ़ सुथरी, पारदर्शी और ईमानदार वित्तीय व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ा है। इसके लाभ अभी तक कुछ लोगों को दिखाई नहीं दे सकते हैं। अगली पीढ़ी नवंबर 2016 के बाद नेशनल इकनॉमिक डेवलपमेंट को गर्व के साथ महसूस कर पायेंगे क्योंकि डिमोनेटाईजेशन ने उन्हें रहने के लिए एक निष्पक्ष और ईमानदार व्यवस्था मुहैया करने का काम किया है।

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