
केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री हरदीप सिंह पुरी की प्रेसवार्ता के मुख्य बिन्दु
कांग्रेस की वास्तविक रुचि अखबार प्रकाशित करने में नहीं थी, यह परिवार पहले से ही एजेएल की संपत्तियों को लेकर “रियल एस्टेट” में सक्रिय था।
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बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित प्लॉट नंबर 5A को 1963 में एजेएल को ₹1.25 लाख प्रति एकड़ की दर से अलॉट किया गया था, जिसमें प्रेस और ऑफिस होना प्रस्तावित था, लेकिन 2016 में जांच में पता चला कि इस बिल्डिंग में कभी प्रिंटिंग प्रेस थी ही नहीं।
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इस बिल्डिंग में बेसमेंट पूरी तरह से खाली था, जबकि ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर पर पासपोर्ट ऑफिस किराए पर दिया गया था जबकि सेकंड और थर्ड फ्लोर टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को किराए पर दिया गया था, जिससे बड़ी रकम में किराया प्राप्त हुआ।
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नवंबर 2010 में, गांधी परिवार ने एक नई कंपनी बनाई, जिसका नाम था "यंग इंडिया" और ₹90 करोड़ के बकाया लोन को भरने के लिए केवल ₹50 लाख का भुगतान किया।
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केवल ₹50 लाख में एजेएल के 99% शेयर यंग इंडिया को ट्रांसफर किए गए, जबकि एजेएल की संपत्तियों की कीमत ₹2000 करोड़ से अधिक थी। कुछ लोग तो यह दावा करते हैं कि इनकी वास्तविक कीमत ₹5000 करोड़ के करीब है।
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2008 में नेशनल हेराल्ड अखबार की छपाई बंद हो गई थी और 2012-13 में यह मामला शुरू हुआ। इस मामले में भाजपा सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
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2014 में जब यह मामला मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष आया तो उस समय मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि "यह प्रतीत होता है कि यंग इंडिया लिमिटेड सार्वजनिक धन को निजी उपयोग में बदलने के उद्देश्य के साथ बनाया गया।"
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कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी के उन नेताओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए, जिन्होंने चैरिटेबल उद्देश्य का गलत इस्तेमाल किया और पार्टी के संसाधनों को निजी लाभ के लिए उपयोग किया।
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2008 में अखबार के बंद होने पर खड़गे सहित बाकी कांग्रेस नेता क्या कर रहे थे? कृपया एक सूची दें कि उस समय कांग्रेस ने उस अखबार को चलाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए?
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केन्द्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री हरदीप सिंह पुरी ने आज केन्द्रीय कार्यालय में प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेताओं की संलिप्तता पर बड़े खुलासे किए। श्री पुरी ने बताया कि दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित प्लॉट नंबर 5A की बिल्डिंग में नेशनल हेराल्ड की कभी प्रेस चल ही नहीं रही थी, जबकि तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रेस चलाने के लिए ही बहुत ही कम दर पर भूमि उपलब्ध करायी गयी थी। कांग्रेस नेताओं ने इन बिल्डिंग्स का निजी और व्यवसायिक उपयोग किया और कांग्रेस कार्यकर्ताओं सहित पूरे देश को धोखा दिया।
श्री पुरी ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा यह केस फाइल किए जाने पर कांग्रेस पार्टी के नेता आरोप लगा रहे हैं कि यह मोदी सरकार की बदले की कार्रवाई है और केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। भाजपा का कांग्रेस से बस इतना कहना है कि वह थोड़ा आत्ममंथन करें। कांग्रेस पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को गुमराह कर रही है, असल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए। नेशनल हेराल्ड का इतिहास बहुत पुराना है, जिसे 1937 में स्थापित किया गया था। हालांकि, 2008 में इस अखबार की छपाई बंद हो गई थी और इसके बाद नेशनल हेराल्ड केस 2012-13 के आसपास शुरू हुआ। इस मामले में भाजपा सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं था। असली प्रश्न यह है कि कैसे महज ₹50 लाख रुपये की रकम से ₹2000 करोड़ की संपत्ति हासिल की गई?
केन्द्रीय मंत्री श्री पुरी ने कहा कि यह नेशनल हेराल्ड का मामला धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है और पूरी तरह से शट एंड क्लोज केस हैं। 2014 में जब यह मामला मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष आया था, उस समय मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि "यह प्रतीत होता है कि यंग इंडिया लिमिटेड (वाईआईएल) को सार्वजनिक धन को निजी उपयोग में बदलने के उद्देश्य के साथ बनाया गया।" यह मामला 2014 से लगातार विभिन्न अदालतों में घूमता रहा है और कांग्रेस पार्टी ने अपने वकीलों का उपयोग करके इसे कई बार टालने का प्रयास किया है। यंग इंडिया लिमिटेड को 2010 में एक सेक्शन 25 के तहत कंपनी के रूप में रजिस्टर्ड किया गया था, जिसका उद्देश्य चैरिटी था और इसकी पूंजी ₹5 लाख थी। इसके बावजूद, कांग्रेस पार्टी ने यह लोन बढ़ाकर ₹80-90 करोड़ रुपए तक कर दिया और अब सवाल यह उठता है कि इसे चुकाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने क्या कदम उठाए हैं? इसके बाद, 50 लाख की राशि प्राप्त कर ₹2000 करोड़ की संपत्ति हासिल की गई।
श्री पुरी ने कहा कि भाजपा यह भी याद दिलाना चाहती है कि 2008 में नेशनल हेराल्ड ने अपनी प्रिंटिंग बंद कर दी थी। उस समय जो जमीन दी गई थी, उसके बारे में भी कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं। हाउसिंग और अर्बन अफेयर मंत्री के रूप में कार्य करते हुए इस मामले में 7 वर्षों तक कुछ विवरण प्राप्त हुए। 3.365 एकड़ में फैले बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित प्लॉट नंबर 5A को 1963 में एआईएल एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को ₹1.25 लाख प्रति एकड़ की दर से अलॉट किया गया था। इस अलॉटमेंट के समय यह स्पष्ट किया गया था कि प्रस्तावित इमारत में 5 मंजिलें होंगी, जिनमें बेसमेंट के अलावा ग्राउंड फ्लोर पर प्रेस और अन्य फ्लोर्स पर ऑफिस होंगे। अब सवाल यह उठता है कि इस तरह की अलॉटमेंट के कारण उन्हें यह भूमि और बिल्डिंग क्यों दी गई? यह स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी ने कम दरों पर जमीन प्राप्त की और यदि वे इसे बाजार दरों पर खरीदते, तो कीमत बहुत अधिक होती। कम दरों पर यह जमीन प्राप्त करने के बाद, वहां एक पांच मंजिला इमारत बनवाई गई, जिसमें प्रेस 2008 में बंद हो गया था। 2016 में इन प्रॉपर्टीज का निरीक्षण करने पर पता चला कि वहां कोई प्रिंटिंग गतिविधि नहीं हो रही थी। बेसमेंट पूरी तरह से खाली था, जबकि ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर पर पासपोर्ट ऑफिस किराए पर दिया गया था और सेकंड तथा थर्ड फ्लोर को किराए पर टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को दिया गया था, जिससे बड़ी रकम में किराया प्राप्त हुआ।
केन्द्रीय मंत्री श्री पुरी ने कहा कि यह देखा जाना चाहिए कि चैरिटी के नाम पर किया गया यह कार्य वास्तव में निजी लाभ के लिए संसाधनों का गलत तरीके से उपयोग कर रहा था। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी के उन नेताओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए, जिन्होंने चैरिटेबल उद्देश्य का गलत इस्तेमाल किया गया और पार्टी के संसाधनों का निजी लाभ के लिए उपयोग किया गया। इन संपत्तियों पर 30 दिसंबर 2018 और फिर 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। इस मामले में कोर्ट में विचाराधीन स्थिति बनी रही, लेकिन अब यह मामला आगे बढ़ने की प्रक्रिया में है। ऐसे में सवाल उठता है कि अब इसे फिर क्यों उठाया गया है और क्या इसका उद्देश्य केवल कानून की प्रक्रिया से बचना है? यह सवाल पूछना जरूरी है कि इस मामले में इतनी देरी क्यों हुई? यहां पर जो बड़े और अनुभवी वकील हैं, वे एक अलग स्थिति में हैं, जहाँ वकील और सांसद दोनों का मामला सामने है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री पुरी ने कहा कि कहा कि कांग्रेस की वास्तविक रुचि अखबार प्रकाशित करने में नहीं थी, यह परिवार पहले से ही एजेएल की संपत्तियों को लेकर “रियल एस्टेट” में सक्रिय था। नवंबर 2010 में, परिवार ने एक नई कंपनी बनाई, जिसका नाम था "यंग इंडिया" और ₹90 करोड़ रुपये के बकाया लोन को भरने के लिए केवल ₹50 लाख रुपये का भुगतान किया। बैंक से लोन लिया जाता है, बैंक ब्याज दर प्रदान करता है, लेकिन जब आप लोन नहीं चुकाते, तो वह रकम बढ़ जाती है। लेकिन इस मामले में कांग्रेस ने ₹90 करोड़ रुपये का लोन सिर्फ ₹50 लाख रुपये में खरीद लिया और इसके साथ जो संपत्तियां मिलीं, उनकी कीमत ₹2000 करोड़ रुपये थी। प्रेस की बिल्डिंग, जो पहले बंद हो चुकी थी, अब कमर्शियल रेंट पर दी जा रही थी और यह प्रॉपर्टी एक प्रमुख स्थान पर स्थित थी।
केन्द्रीय मंत्री श्री पुरी ने कहा कि यह धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग का एक बड़ा मामला है। 9 अप्रेल 2025 को ईडी ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की है, जिसे विशेष अदालत में प्रस्तुत किया गया। इस मामले की अगली सुनवाई 25 अप्रैल 2025 को निर्धारित की गई है। इस मामले में प्रमुख कांग्रेस नेताओं को मुख्य आरोपी के रूप में नामित किया गया है। इन नेताओं ने उन संपत्तियों को बाजार में बेचने का निर्णय लिया था, जिसके बदले में उन्हें पैसे देने का वादा किया गया था। सूत्रों के अनुसार, इन नेताओं ने उन कर्मचारियों को न तो सैलरी दी और न ही ग्रेच्युटी का भुगतान किया। इसके बावजूद, संपत्तियों को बाजार में बेचा गया और इसमें कई लोगों का योगदान था। इस मामले में प्रमुख रूप से मोतीलाल वोहरा सहित कई व्यक्तियों का नाम सामने आया है। अब सवाल यह उठता है कि इस प्रकार से सार्वजनिक संपत्तियों का अधिग्रहण और बिक्री कैसे की जा सकती है? हम चाहते हैं कि इस मामले से संबंधित दस्तावेजों की प्रमाणिकता जांची जाए और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती जाए।
श्री पुरी ने कहा कि जब नेशनल हेराल्ड की शुरुआत हुई थी, तो उसके योगदानकर्ताओं के नामों पर एक बार फिर से गौर करना चाहिए। यह किस प्रकार का ठगी और मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है? यंग इंडिया ने असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के अधिकांश शेयर हासिल किए। केवल ₹50 लाख में एजेएल के 99% शेयर यंग इंडिया को ट्रांसफर किए गए, जबकि एजेएल की संपत्तियों की कीमत ₹2000 करोड़ से अधिक थी। कुछ लोग तो यह दावा करते हैं कि इनकी वास्तविक कीमत ₹5000 करोड़ के करीब है। जब कोई भी अपना टैक्स रिटर्न फाइल करता है, तो आपको अपनी संपत्ति की वास्तविक कीमत का भी जानकारी होती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इन संपत्तियों का वास्तविक मूल्य और उनके साथ हुई वित्तीय लेन-देन के पीछे क्या कारण हैं?
केन्द्रीय मंत्री श्री पुरी ने कहा कि अगर आप 1986 में इन संपत्तियों की वैल्यू लगाते हैं, तो अब उनकी वैल्यू में निश्चित रूप से वृद्धि हो चुकी है। यह स्थिति धोखाधड़ी की प्रकृति को और स्पष्ट करती है। यह मामला प्रेस और मीडिया के माध्यम से बाहर आना चाहिए। यदि एसेट्स की वैल्यू ₹2000 करोड़ या ₹5000 करोड़ है, तो यह पूरी तरह से वैल्यूएशन की तारीख पर निर्भर करता है। कांग्रेस कह रही है कि एजेंसियां सक्रिय हो चुकी हैं। भाजपा का सवाल यह है कि ये एजेंसियाँ पहले क्यों नहीं आईं? यह मामला 2012 से चल रहा था और यह मामला बहुत गंभीर है और इस से ज्यादा गंभीर मामला कभी नहीं देखा गया है। कोई भी सार्वजनिक संपत्तियों को इस तरह से अधिग्रहित कर ले, यह पूरी स्थिति संवेदनशील है।
श्री पुरी ने कहा कि आयकर विभाग ने कोलकाता की "डोटेक्स" कंपनी को रेड फ्लैग किया। डोटेक्स उस समय व्यापार में थी, जो अकॉमोडेशन एंट्रीज देती थी, यानी यह कंपनी कैश स्वीकार करती थी और चेक जारी करती थी। ऐसे में यह गंभीर प्रश्न उठता है कि सार्वजनिक और निजी संपत्तियों के साथ इस तरह की गतिविधियाँ क्यों की जा रही हैं और कौन से लोग इसके पीछे हैं? आप सार्वजनिक संपत्तियों को इस तरीके से हल्के में ले रहे हैं और फिर ध्यान भटकाने के लिए प्रदर्शन करवा रहे हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सार्वजनिक संपत्तियों का धोखाधड़ी से शोषण करने वाले कांग्रेस नेताओं के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिए। ये लोग जनता को गुमराह कर रहे हैं।
केन्द्रीय मंत्री श्री पुरी ने कहा कि कांग्रेस अपनी गलती नहीं मानेगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अखबार ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण था, फिर वह बंद हो गया। भाजपा उनसे कहना चाहती हैं कि, "आप क्या करते रहे, जब वह अखबार 2008 में बंद हुआ था? कृपया एक सूची दें कि उस समय के बाद आपने उस अखबार को चलाने के लिए क्या-क्या प्रयास किए?" कांग्रेस पार्टी को इसी सवाल का जवाब देना चाहिए, क्योंकि देश की जनता पूछ रही है।
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