Shri Arun Jaitley speech in Rajya Sabha on Sarabjit Singh death


02-05-2013
Press Release
pdf

नेता विरोधी दल (श्री अरुण जेटली): माननीय उपसभापति जी, यह एक संवैधानिक आवश्यकता है कि जितने भी वित्त विधेयक हैं, उन पर इस सदन में चर्चा हो और लोक सभा को वे वापिस भेजे जाएं।  लेकिन इस वक्त नैतिकता की, शासन की, देश की और सरकार की जो परिस्थिति है, मुझे यह कहते हुए खेद है कि हम इस सरकार के साथ सहयोग नहीं कर सकते, लेकिन  उस संवैधानिक प्रक्रिया में भी हम बाधा नहीं बनना चाहेंगे।

मैं अपने दल की ओर से केवल दो-तीन विषय रखना चाहूंगा, जिसके लिए आपने मुझे अवसर दिया है।  आज सारे देश के लिए दु:ख, संवेदना, खेद और आक्रोश का दिन है कि हमारे देश के एक नागरिक, श्री सरबजीत सिंह को किस प्रकार से पाकिस्तान के अन्दर मारा गया।  शायद सारा सदन इस आक्रोश और इस संवेदना में एकमत से अपनी आवाज उठाएगा।  यह विषय बहुत दिनों से चल रहा था और इस विषय को लेकर हम उनके परिवार के साथ अपनी संवेदना और दु:ख रखेंगे।  हमारी विदेश नीति किस दिशा में जा रही है और यह लड़खड़ाती हुई सरकार दुनिया के सामने कितनी कमजोर पड़ गई है, सच में यह उसी का एक नमूना है।  पाकिस्तान हमसे जो इतने युद्ध हारा, उसके बाद मृत्युदंड कैसे दिया जाता है, उसका एक वैकल्पिक तरीका उन्होंने ढूंढ़ लिया है। पाकिस्‍तान को मृत्‍युदंड देने का यह वैकल्पिक तरीका मिल गया है।

श्री अरुण जेटली (क्रमागत):  हम सभी को राजनैतिक जीवन में कभी न कभी जेल जाने का अवसर मिला होगा। वहां हमने देखा होगा कि जो फांसी-कोठी होती है, वहां तो पक्षी तक भी नहीं पहुंच पाता। यहां तक कि दंडित कैदियों की कोठरी में पक्षी तक नहीं प्रवेश कर सकते। उनको उस कोठी के अंदर, उस सैल में बंद रखा जाता है, उसी में ही खाना भी होता है, शौचालय भी उसमें रहता है। अब वहां यदि एक कैदी को भेड़ियों के सामने डाल दिया जाए और फिर वहां का शासन और सुरक्षा मुंह मोड़ ले, तो यह अपने आप में विश्वास करना संभव नहीं है। पाकिस्तान हमेशा कहता रहा है कि यह नॉन-स्टेट-एक्टर्स का काम है, लेकिन यह काम नॉन-स्टेट-एक्टर्स नहीं कर सकते। इसमें जब तक पाकिस्तान के शासन की, वहां की पुलिस व्यवस्था की पूरी हिस्सेदारी न होती, तब तक शायद यह संभव न होता और इसलिए मैं चाहूंगा कि हमारी विदेश-नीति कहां जा रही है, हम कितने कमजोर पड़ रहे हैं, इसके ऊपर कभी न कभी भारतीय सरकार आत्म-निरीक्षण करे।

इसी के साथ ही हम सभी लोगों की यह चिंता है, जो हम पिछले दस दिनों से समाचार-पत्रों में पढ़ रहे हैं, कि चीन ने इस देश की सीमा में 19 किलोमीटर अंदर आकर अपने टेंट गाड़ कर अपनी पोस्ट बना ली हैं। भारत सरकार के पास इसका उत्तर क्या है, सरकार की प्रतिक्रिया क्या है, देश इसकी प्रतीक्षा कर रहा है। हम सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। आपके पास सुरक्षा की दृष्टि से, कूटनीति की दृष्टि से कई विकल्प हो सकते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार को विषय ही समझ में नहीं आ पा रहा है। आपके पास सुरक्षा के कुछ विकल्‍प हो सकते हैं, आपके पास कूटनीतिक विकल्‍प हो सकते हैं। हम उन विकल्‍पों में सरकार के साथ हैं लेकिन अनभिज्ञ होना कोई विकल्‍प नहीं है। मुझे यह कहते हुए खेद है कि भारत की क्षेत्रीय प्रभुसत्‍ता को कैसे बहाल किया जाएगा, इस बारे में इस सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है।

उपसभापति जी, देश के भीतर क्या हुआ? आज तक हम इस सदन में आरोप लगाते रहे हैं कि सीबीआई जैसी एजेन्सी का दुरूपयोग हो रहा है और सरकार यह कहती थी कि नहीं, उसकी अपनी स्वायतता है, हम उसमें दखलअंदाजी नहीं करते, लेकिन आज तो सरकार में ही इतने अंतर्विरोध पैदा हो गए हैं। जब राज जाने लगता है, तो जो कलह पैदा होती है,  राज समाप्‍त होने से पहले जो विरोधाभास दिखाई देता है, वह आज बिल्कुल स्पष्‍ट है। कौन दोषी था, कौन नहीं था, अभी मैं उसमें नहीं जाता हूँ। इस पर कभी लंबी चर्चा हो सकती है, लेकिन आज इसमें जो भी तथ्य सामने आए हैं, कोयला खदानों का आवंटन हुआ, कुछ व्यापारी लोग उसमें बेनेफिशरी  रहे। इसमें इशारा किस की तरफ जाता है? कोयला मंत्रालय की तरफ, कोयला मंत्री की तरफ। उस वक्त कोयला मंत्री आज के प्रधान मंत्री थे। कोल मिनिस्ट्री और प्राइम मिनिस्टर्स ऑफिस उसमें इन्वॉल्व हैं। कानून मंत्री ने क्या किया? वह अपना उत्तर दे रहे हैं। उत्तर से हम संतुष्ट नहीं हैं। लेकिन, आपने क्या किया है? जांच एजेन्सी, सीबीआई इन्वेस्टीगेशन, लॉ आफिसर्स प्रोसिक्यूटर्स। कल खबर थी कि प्रधान मंत्री ने कहा कि क्या मैं एक्यूज्ड हूँ? शायद नहीं, लेकिन शक की सुंई तो जाती है, जिन्होंने निर्णय लिए थे, अभियोक्‍ता, जांचकर्ता और संदिग्‍ध; कोयला मंत्रालय के अधिकारी और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी संदिग्‍ध थे। उनसे पूछताछ हो सकती थी। यह पहला मौका है जब एक जांच एजेंसी ने संदिग्‍धों को अपनी रिपोर्ट दिखाई है, जिनमें से कुछ के आरोपी होने की संभावना है। किसका दोष है, इस विषय पर बाद में चर्चा होती रहेगी। आपने आज देश में नैतिकता की यह स्थिति कर दी कि पहले इतना बड़ा भ्रष्टाचार और फिर हर व्यवस्था का, हर संस्था का दुरूपयोग करो, प्रत्‍येक संस्‍थान को नष्‍ट कर दो। जेपीसी में आपने क्या किया? जेपीसी में संसदीय समिति निर्णय करेगी, लेकिन जो दोषी थे उनको आप क्लीन-चिट दे दो। बहुमत दूसरी तरफ है और संसदीय समिति की जांच का राजनीतिकरण इतना कर दो कि वह भी सच्चाई सामने न ला सके।

श्री अरुण जेटली (क्रमागत) : पहले भ्रष्टाचार और उसके बाद उसके ऊपर पर्दा डालना।  उपसभापति जी, मुझे खेद है कि जब देश की और शासन की नैतिकता की यह परिस्थति है, तो ऐसी सरकार के साथ हम सहयोग नहीं कर सकते। इस सरकार ने एक भारतीय स्‍वप्‍न उत्‍तराधिकार में पाया लेकिन उसे एक दु:स्‍वप्‍न में बदल दिया है। भारत के लोग आज यही महसूस करते हैं और इन परिस्थितियों में हम इस सरकार के साथ सहयोग नहीं कर सकते। हम वित्‍तीय कार्य में बाधा नहीं पहुंचा रहे हैं क्‍योंकि यह संवैधानिक आवश्‍यकता है, इसलिए मैं और मेरी पार्टी इस सरकार के साथ सहयोग करने की बजाय वाकआउट करना उचित समझती है।

(समाप्‍त)

To Write Comment Please लॉगिन