एजेंडा 2019 – पार्ट-1
नेतृत्व का सवाल
-अरूण जेटली
लोक सभा चुनाव के कार्यक्रम घोषित हो गए हैं। अगले दस हफ्ते हम विचारों और आदर्शों का संघर्ष, उम्मीदवारों के बीच मुकाबला और नेतृत्व के लिए लड़ाई देखेंगे। चुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो एजेंडा बनते हैं। आज मैं उस मुद्दे पर चर्चा करूंगा जिसका 2019 के आम चुनाव में बहुत महत्व रखता है। और यह है नेतृत्व का मुद्दा।
नए प्रधान मंत्री
भारत ने कई ऐसे चुनाव देखे हैं जिनमें नए प्रधान मंत्री ने सत्ता विरोधी लहर झेला है। सत्ता विरोध की लहर वह होती है जिसमें लोग कामचोरों को सत्ता से बाहर कर देते हैं। विपक्ष अपने आप जीत जाता है। लेकिन अगर उसके साथ आरामदायक स्थिति हो और उसमें आत्म विश्वास हो, उसके प्रदर्शन, नेत़ृत्व और आत्म विश्वास की परीक्षा हो चुकी हो तो वह जीत जाता है।
देश ने श्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात के मुख्य मंत्री के रूप में 14 साल तक देखा। विकास की अवधारणा, राष्ट्रवादी दृष्टि और जबर्दस्त ईमानदार के रूप में वह एक मजबूत नेता के रूप में उभरे। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जो लोग उनके साथ काम करते हैं वे भी उस आचरण का पालन करें जो सार्वजनिक जीवन में रहने वालों से अपेक्षित है। उन्होंने अपने खिलाफ एक झूठे और दुर्भावनापूर्ण अभियान का मुकाबला किया। इस अभियान के सभी त्तर्क हर कानूनी संघर्ष में झूठे साबित हुए। अपने खिलाफ शत्रुतापूर्ण अभियान से भी वह कभी झुके नहीं। उन्होंने विकास का अपना एक एजेंडा राज्य के लिए बनाया और तीन लोक सभा तथा विधान सभा चुनाव लगातार जीते। उन्होंने जनता से सीधे संवाद किया। एक वक्ता के रूप में वह अद्भुत हैं। उन्होंने गुजरात में एक नए नेतृत्व को पाला-पोसा। सारी दुनिया के गुजराती उनसे अपने को जुड़ा पाते है। वे उन सभी को प्रेरित करते हैं।
वह राष्ट्रीय परिदृश्य में 2014 में आए जब देश अनिर्णय, नेतृत्व के विध्वंस, नीतिगत विफलता और ईंमानदारी के अभाव से जूझ रहा था। लोगों ने उन्हें बहुमत देकर उन्हें सम्मानित किया।
पांच वर्षों के बाद देश उन्हें कैसे देखता है?
उन्होंने दुनिया के सामने साबित कर दिया कि भारत को कैसे ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से चलाया जा सकता है। विकास को सुनिश्चित करने के लिए भारत कठोर निर्णय लेने में सक्षम हैं ताकि अपने को सुरक्षित रख सके। आज भारत दुनिया में ऊंचे पायदान पर है। यह दुनिया में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में है। उन्होंने एक आर्थिक मॉडल सुनिश्चित किया जिसमें तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था से प्राप्त अतिरिक्त स्रोतों को इन्फ्रास्ट्रक्चर या गरीबों खासकर ग्रामीणों के कल्याण में लगाया जा सके। उन्होंने नारे नहीं दिए लेकिन संसाधनों को गरीबी हटाने में लगाया और उनके लिए आसान जिंदगी मुहैया कराया।
उनके आलोचक भी उनके राष्ट्रीय सुरक्षा वाले सिद्धांत को देखकर आश्चर्यचकित हैं। उन्होंने भारत को अपने को महज सुरक्षित रखने वाले देश से एक ऐसा राष्ट्र बना दिया जो खुफिया तंत्र और सुरक्षा नेटवर्क से पाकिस्तान को दुनिया से अलग-थलग करने से लेकर आतंक को उसकी जड़ों पर प्रहार करने की क्षमता रखता है। 2016 का सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 का एयर स्ट्राइक की सफलता इसी दिशा में है।
एनडीए के अंदर नेतृत्व का कोई झगड़ा नहीं है। वहां पर पूर्ण स्पष्टता है। श्री नरेन्द्र मोदी एनडीए का नेतृत्व करेंगे और उसके विजय के बाद प्रधान मंत्री बनेंगे। उनका नेतृत्व को पूरे देश में माना जाता है और उनकी रेटिंग बहुत ऊंची है। उनका ट्रैक रिकॉर्ड उनकी सफलता की कहानी है।
दूसरे पक्ष की ओर भी देखिए
जिसे पहले महागठबंधन कहा गया वह दरअसल आपस में लड़ रहे विरोधाभासी गठबंधनों का गठबंधन है। यह स्वंय नष्ट हो जाने वाला प्रतिद्वंद्वियों का गठबंधन है। बीएसपी और एसपी कांग्रेस के विरुद्ध लड़ेंगे लेकिन बाद में आपस में हाथ मिलाएंगे। यही हाल बंगाल में तृणमूल और कांग्रेस तथा वाम गठबंधन का है। केरल में कांग्रेस और वाम दल आपस में स्पर्धा कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार बनाएंगे कांग्रेस का साथ लेकर। आज वे स्वायत्तता या 1953 के पहले के हालात के मुद्दे पर चुनाव में प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन गठबंधन से हाथ मिला सकते हैं। बीजू जनता दल, टीआरएस और वाईएसआरसीपी गठबंधन के साथ नहीं है।
उनके नेतृत्व का मामला एक पहेली है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अधकचरे नेता हैं। वह थके हुए, पहले जांचे हुए और असफल नेता हैं। मामलों को समझने में उनका विवेक भयानक है। वह इस अराजक झुंड के नेता बनना चाहते हैं।
ममता दीदी इस गठबंधन का सूत्रधार बनने के लिए तैयारी कर रही हैं। वे बंगाल में एक भी सीट कांग्रेस या वाम दलों को नहीं देंगी। लेकिन वे उन दलों को पिछली सीट पर बिठाना चाहेंगी। नीतिगत मामलों पर उनके सहजबुद्धि कमेंट प्रतिगामी हैं।
बीएसपी की नेता बहन मायावती का पिछले लोक सभा चुनाव में सफाया हो गया था। उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी है। वे एक कमज़ोर कांग्रेस और मजबूत बीएसपी चाहती हैं। वे अपने पत्ते सहेज कर रखती हैं। वे उन्हें तभी निकालेंगी जब चुनाव परिणाम आ जाएंगे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ मजबूरी में रणनीतिक समझौता किया है और लेकिन इस पार्टी से उनके पुराने टकराव के घाव अभी भरे नहीं है। वे एक मजबूत बीएसपी और कमज़ोर कांग्रेस चाहती हैं। परिवर्तनशील आदर्शों वाले यह समझते हैं कि वे सभी को स्वीकार्य हैं। विपक्ष का गठबंधन अस्पष्ट है। यह पूरी तरह से कमज़ोर है। इनमें से कोई भी पार्टी बड़ी संख्या में सीटें जीतने की क्षमता नहीं रखती है। इस गठंबधन के केन्द्र में स्थिरता नहीं है। इसमें महत्वाकांक्षी, निहायत ही स्वार्थी और अप्रासंगिक नेता हैं। इनमें से कांग्रेस और वाम को छोड़कर सभी ने बीजेपी के साथ राजनीतिक काम किया है। अपने चुनाव क्षेत्रों के आदर्शों और प्रतिबद्धता के बारे में उनके विचार अलग-अलग हैं।
इस बार की स्पर्धा
यह स्पर्धा उस नेता के लिए है जिसके हाथ में देश विकसित हो रहा है और सुरक्षित है। उस पर विश्वास है। यहां कई नेता हैं और कोई एक दूसरे को छकाना चाहता है। इतिहास गवाह है कि वे सिर्फ अस्थायी सरकार दे सकते हैं। ऐसे में अराजकता हो सकती है। पसंद स्पष्ट है-मोदी या अराजकता।
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