अनुच्छेद : वित्त, सूचना एवं प्रसारण मंत्री और कारपोरेट मामलों, श्री अरुण जेटली द्वारा "पंडित नेहरू और संसद"


14-12-2015
Press Release
   
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 पंडित नेहरू और संसद

  -अरुण जेटली

संसद का पिछला सत्र बाधित रहा। संसद का वर्तमान सत्र भी बेकार जाने के कगार पर है। वर्तमान सत्र के बेकार जाने के कारण प्रतिपल बदल रहे हैं। देश, आम आदमी के मुद्दे पर बहस के लिए, जीएसटी को सक्षम करने के लिए कानून बनाने और एक ऐतिहासिक संविधान संशोधन को मंजूरी देने के लिए संसद का इंतज़ार कर रही है। यह सब अनिश्चय के अधर में लटक रही है। हमें खुद से यह प्रश्न पूछने की जरूरत है, "क्या हम स्वयं और इस देश के प्रति ईमानदार हैं?"

आज, संसदीय प्रणाली पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के एक भाषण को मैं फिर से पढता हूँ। यह भाषण पहली लोक सभा के अंतिम दिन, 28 मार्च 1957 को दिया गया था। यह भाषण हम सभी के लिए पठनीय है। भाषण का एक महत्त्वपूर्ण पैरा इस प्रकार लिखा है:

"यहाँ, हम भारत के सम्प्रभु अधिकार संसद में बैठे हैं, भारत की शासन व्यवस्था के लिए उत्तरदायी हैं। निश्चित रूप से, इस संप्रभु संस्था के एक सदस्य होने से बड़ी कोई उच्च जिम्मेदारी या अधिक सौभाग्य की बात नहीं हो सकती जो इस देश में रहने वाले मानव जाति की विशाल संख्या के भाग्य को बदलने के लिए उत्तरदायी है। हम सबको, अगर हर समय नहीं, तो समय-समय पर किसी भी कीमत पर, जिम्मेदारी और नियति की उच्च भावना को आत्मसात करना होगा जिसके लिए हमें जिम्मेदारी दी गई थी। हम चाहे इसके लायक थे या नहीं, यह एक अलग बात है। हमने, इसलिए, इन पाँच वर्षों में न केवल इतिहास के दहलीज पर, वरन कभी-कभी इतिहास को बनाने के लिए डूबकर काम किया है।

जो लोग पंडित जी की विरासत का दावा करते हैं, उन्हें खुद से यह प्रश्न पूछना चाहिए, वे किस प्रकार के इतिहास का निर्माण कर रहे हैं।

 

 

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