भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव श्री श्रीकांत शर्मा द्वारा जारी प्रेस नोट


05-09-2016
Press Release

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव श्री श्रीकांत शर्मा द्वारा जारी प्रेस नोट

बसपा की कल की इलाहाबाद रैली में मायावती की हताशा और निराशा स्पष्ट रूप से झलक रही थी। लगता है कि मायावती को भी अब यह लगने लगा है कि अब दलितों के नाम पर वोट बैंक की उनकी झूठी राजनीति की दाल उत्तर प्रदेश में गलने वाली नहीं है। दलितों के नाम पर राजनीति करने वाली मायावती दौलत की वसूली का काम कर रही हैं। यूपी में भ्रष्टाचार, अपराध और दुराचार की बुआ-भतीजे की जुगलबंदी से राज्य की जनता त्रस्त है। उत्तर प्रदेश की जनता सपा-बसपा के झांसे में अब और आने वाली नहीं है, वह आने वाले यूपी विधान सभा चुनावों में इन लोगों को कड़ा सबक सिखाएगी।

लगातार अपराधियों के दम पर ही सरकार चलानेवाली और अभी भी अपराधियों को साथ रखने वाली मायावती कैसे अपराधियों को जेल भेजने की बात कर सकती हैं! पहले मायावती उत्तर प्रदेश की बहन बेटियों का अपमान करनेवाले नसीमुद्दीन सिद्दिकी को तो पार्टी से बर्खास्त करें फिर अपराधियों को सजा देने की बात करें। मायावती की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर दिखाई देता है। 8500 करोड़ का एनएचआरएम घोटाला मायावती सरकार के भ्रष्टाचार की एक अलग ही कहानी पेश करता है। इस घोटाले पर पर्दा डालने के लिए सीएमओ विनोद आर्या व बीपी सिंह, डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान व शैलेश यादव, परियोजना प्रबंधक सुनील वर्मा और लिपिक महेंद्र शर्मा की हत्या तक कर दी गई थी, ऐसे में मायावती किस मुंह से भ्रष्टाचारियों और अपराधियों पर नकेल कसने की बात कर सकती हैं! उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार में केवल यही एकमात्र घोटाला नहीं हुआ, बल्कि खाद्यान्न घोटाला, लैकफेड, नोएडा प्लाट आवंटन घोटाला, टीईटी, पंजीरी, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि घोटाला, सिक्योरिटी नंबर प्लेट घोटाला, पुलिस एवं होमगार्ड भर्ती घोटाला, आयुर्वेद, ताज कॉरिडोर घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला, चीनी मिल घोटाला जैसे हजारों करोड़ों के कई घोटाले हुए। अपने आप में ही अपराध और भ्रष्टाचार का गठजोड़ है बसपा। ऐसे में मायावती के मुंह से अपराधियों को जेल में डालने वाली बात अपने आप में हास्यास्पद है।

मायावती दलितों के नाम पर ने हमेशा से वोट बैंक की ही पॉलिटिक्स की है। उन्होंने दलितों की भलाई के लिए अथवा उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए कुछ भी नहीं किया। यूपी की जनता जानती है कि जब-जब प्रदेश में बसपा सत्ता में आती है, दलितों पर उत्पीड़न का ग्राफ बढ़ जाता है। उत्तर प्रदेश की गृह मंत्रालय के रिपोर्ट के अनुसार, 2008 से मई 2011 तक लगभग साढ़े चार वर्षों के मायावती जी के शासनकाल में दलितों में उत्पीड़न की लगभग 30000 से अधिक घटनाएं रजिस्टर्ड की गई। इस दौरान उत्तर प्रदेश में कुल 1074 दलितों के हत्याएं हुई जो पूरे देश में होने वाली घटनाओं का 30% थी। मायावती शायद यह भूल गई हैं कि उनके शासनकाल में ही दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए। 2011 में कन्नौज में हुए दलितों पर अत्याचार की घटना को कौन भूल सकता है? मायावती के शासनकाल में बसपा विधायकों की गुंडागर्दी से पूरा प्रदेश खौफ के साए में जीने को मजबूर था। यह वोट बैंक की पॉलिटिक्स नहीं है तो और क्या है कि दलितों की सबसे बड़ी हितैषी का दंभ भरने वाली मायावती के पास ऊना जाने का तो समय है लेकिन उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के रेप विक्टिम से मिलने तक का समय नहीं है! आखिर चुनावों के समय ही मायावती को दलितों की याद क्यों नहीं आती है?

यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो चुकी है कि उत्तर प्रदेश में मायावती के पैरों तले से जमीन खिसक चुकी है। उत्तर प्रदेश की जनता का मायावती से पूरी तरह मोह भंग हो चुका है। प्रदेश की जनता ने 2012 में ही मायावती को सत्ता से बेदखल करके यह स्पष्ट कर दिया था कि उत्तर प्रदेश में उनकी वोट बैंक और तुष्टीकरण की घृणित पॉलिटिक्स का कोई स्थान नहीं है। 2014 के लोक सभा चुनावों में तो बसपा को एक भी सीट न देकर जनता ने इस बात पर मुहर भी लगा दी। यही कारण है कि बसपा के सारे दिग्गज एक-एक करके मायावती से किनारा कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की जनता यह समझ चुकी है कि दलितों के नाम पर दिखावे की राजनीति से दलितों का विकास नहीं होने वाला।

यहाँ यह उद्धृत करना आवश्यक है कि नेशनल क्राइम ब्यूरो के मुताबिक 2004-13 के दौरान दलितों के खिलाफ हिंसा और अत्याचार में 1994-2003 की तुलना में 245% की वृद्धि हुई थी। उत्तर प्रदेश की जनता को यह ध्यान में रखना चाहिए कि यूपीए सरकार सपा और बसपा के ही समर्थन से ही चलने वाली सरकार थी। यूपीए-1 और यूपीए-2 के पापों में कांग्रेस के साथ-साथ सपा और बसपा भी बराबर की हिस्सेदार है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सपा और बसपा के समर्थन से चलनेवाली सोनिया-मनमोहन की यूपीए-1 और यूपीए-2 के दौरान देश भर में दलितों और पिछड़ों पर अत्याचार की ढ़ाई लाख से अधिक घटनाएं हुई। इतना ही नहीं, हजारों दलितों की हत्या का पाप भी सपा, बसपा और कांग्रेस की सरकारों पर है। ऐसे में आखिर किस मुंह से मायावती दलितों की सबसे बड़ी हितैषी होने का दंभ भर सकती हैं?

कई सर्वेक्षणों में यह साबित हो चुका है कि मोदी सरकार में सपा-बसपा और कांग्रेस की मिलीजुली यूपीए सरकार की तुलना में एससी, एसटी और महिलाओं के खिलाफ होनेवाले उत्पीड़न में काफी कमी हुई है। मोदी सरकार ने दलितों के ऊपर होनेवाले अत्याचार को रोकने और अपराधियों को सजा दिलाने के लिए कई ठोस कदम उठाये हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्त्व में केंद्र की भाजपा सरकार ने मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया के माध्यम से दलित युवाओं को इंटरप्रेन्यौर बनाने का सपना देखा है। मोदी सरकार की सभी योजनाओं के केंद्र में दलित, आदिवासी, पिछड़े, गरीब, किसान और युवा ही हैं। लगता है कि मायावती की आँखों पर दौलत का चश्मा चढ़ा हुआ है जो उन्हें मोदी सरकार की विकास गाथा दिखाई नहीं दे रही है। मायावती प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्त्व में विकास पथ पर बढ़ रहे भारत के कदम से इसलिए आँखें फेर रही हैं कि यदि उन्होंने विकास की इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया तो दलितों के नाम पर राजनीति कर जो वह मोटा माल लेकर टिकट बेच रहीं हैं, कहीं उनके टिकटों का मार्किट रेट न डाउन हो जाए। दलितों का उत्थान नहीं, दलितों के नाम पर केवल झूठ बोलकर दौलत की वसूली ही मायावती का एकमात्र मकसद है। मायावती को यह याद होना चाहिए कि मोदी सरकार के ढ़ाई वर्षों के शासनकाल में भ्रष्टाचार का एक भी आरोप विपक्षी भी नहीं लगा पाए हैं जबकि सपा, बसपा और कांग्रेस भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है।

एक ओर बसपा के नसीमुद्दीन सिद्दिकी जैसे नेता यूपी की बहन-बेटियों का अपमान करते हैं तो दूसरी ओर सपा सरकार के बड़बोले मंत्री आजम खां भी सरेआम बहन-बेटियों का अपमान करते हैं। इतना ही नहीं, ये लोग रेप जैसी गंभीर घटनाओं का भी राजनीतिकरण करने से नहीं चूकते। यह वोट बैंक और तुष्टीकरण की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है कि न तो अखिलेश यूपी की बहन-बेटियों का अपमान करने वाले आजम खां और नसीमुद्दीन सिद्दिकी पर कोई कार्रवाई करते हैं और न मायावती ही सिद्दिकी पर कोई कार्रवाई करती हैं। स्पष्ट है कि अपराधियों और दुराचारियों को राजनीतिक संरक्षण देने में दोनों की ही बराबर की भूमिका है। मायावती और अखिलेश यादव को यह जवाब देना होगा कि उत्तर प्रदेश की बहन-बेटियों का अपमान करनेवाले नसीमुद्दीन सिद्दिकी और आजम खां जैसे नेताओं पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? आखिर अखिलेश यादव की मायावती से किस तरह की जुगलबंदी है कि दोनों अपराधियों को सजा दिलवाने के मामले में मौन साध लेते हैं? सपा और बसपा की अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दिलवाने की मंशा कभी रही ही नहीं, यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश की जनता को यह आश्वस्त करती है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते ही या तो अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और दुराचारियों को अपराध छोड़ना होगा या फिर उत्तर प्रदेश छोड़ना होगा। यूपी में भाजपा की सरकार बनते ही हमारी सबसे पहली प्राथमिकता प्रदेश में अपराधियों को कड़ी-से-कड़ी सजा दिलवाने और बहन-बेटियों को सुरक्षित करने की होगी। सपा-बसपा ने वोट बैंक और तुष्टीकरण की अपनी घृणित राजनीति के चलते जिन-जिन अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और दुराचारियों को राजनीतिक संरक्षण देने का काम किया है, प्रदेश में हमारी सरकार बनते ही ऐसे गुनाहगारों को चुन-चुन कर जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा।

(महेंद्र पांडेय)
कार्यालय सचिव

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