Hindi : Article : “Institutions under Attack” - The Latest Fabrication" by Hon'ble Union Minister, Shri Arun Jaitley 10 Feb 2019


10-02-2019
Press Release

 

 

“संस्थाओं पर हमला”-झूठ का नया पुलिंदा

                                      अरूण जेटली

पिछले दो महीनों में कई फर्जी अभियान देखे गए। इसें से कोई भी बहुत प्रभावित नहीं कर पाया। मिथ्य़ा प्रचार की कोई लंबी उम्र नहीं होती। आदतन विरोधाभासी एक के बाद एक झूठ फैलाते रहते हैं। राफेल न केवल भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता को बढ़ाएगा बल्कि सरकारी खजाने के करोड़ों रुपए भी बचाएगा। जब इस पर मिथ्या प्रचार टिक नहीं पाया तो एक आधा-अधूरा दस्तावेज पेश कर दिय़ा गया ताकि झूठ फैलता रहे। लेकिन इस तरह के मिथ्या प्रचार में संलिप्त लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि आधे-अधूरे दस्तावेज पेश करने से ऐसा करने वाले की साख घट जाती है। जिन लोगों ने 2008 से 2014 के बीच बैंकों की लूट में हिस्सा लिया था, अब आरोप लगा रहे हैं कि उद्योगों को दिए गए कर्ज को माफ कर दिया गया है। एक भी पैसा माफ नहीं किया गया। इसके विपरीत डिफॉल्टरों प्रबंधन से निकाल-फेंका गया। यह झूठ कि सरकार और उसके मंत्री आर्थिक घोटालेबाजों को भागने में मदद कर रही है, सामने आ गया जब जांच करने वाली एजेंसियों ने कई प्रमुख डिफॉल्टरों और दलालों को वापस लाने में सफलता पाई। जीएसटी के खिलाफ अभियान भी फुस्स हो गया क्योंकि कार्यान्वित होने के सिर्फ 18 महीने में यह ग्राहकों के हित में उठाया गया कदम साबित हुआ। इससे ग्राहक को काफी फायदा हुआ और भ्रष्टाचार तथा उत्पीड़न खत्म हो गया। अब नए तरह का आक्रमण शुरू हो रहा है। संस्थाओं पर दबाव है-इस बार यह आरोप उनकी तरफ से आया है जिन्होंने पूरी उम्र संस्थाओं में तोड़-फोड़ की। मनी लॉन्डरिंग कानून बनाने वाले भूल रहे हैं कि इसके कड़े प्रावधान उनके खिलाफ ही जाएंगे। अब इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि “संस्थाओं पर हमला” वाली बात पर दिए गए तर्कों का विश्लेषण किया जाए।

संसद

इतिहास इस बात को दोहराएगा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू की बिटिया के पोते (पड़नाती) ने अकेले ही संसद को एक संस्था के रूप में गहरी चोट पहुंचाई है। हर दिन सुबह 11 बजे कांग्रेस पार्टी द्वारा सदन के कामकाज में बाधा डालने का काम किया जाता है। अपने बेहतरीन वाद-विवाद के लिए जाना जाने वाला राज्यसभा में कोई काम ही नहीं हो पा रहा है। अहगर हम राफेल पर राहुल गांधी के दो भाषणों का आकलन करें तो पता चलता है कि वे प्रधान मंत्री के प्रति व्यक्तिगत ईर्ष्या पर आधारित हैं प्रधान मंत्री के प्रति व्यक्तिगत नफरत के कारण हैं। कक्षा में असफल एक छात्र हमेशा क्लास के टॉपर से नफरत करता है। इसके अलावा भी इन भाषणों का संदर्भ कॉलेज स्तर के बेहद हल्के तरह के सार वाला होता है। विपक्ष के दो सदस्यों बीजेडी के भरतहरि महताब और आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन पर ही कांग्रेस द्वारा उत्पन्न बौद्धिक रिक्तता को पूरा करने का जिम्मा रह गय़ा।

न्यायपालिका

न्यायपालिका के बारे में सबसे प्रमुख बिंदु यह बताया गय़ा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की एक सिफारिश को उसके कॉलेजियम के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया। वर्तमान संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह कॉलेजियम की उस सिफारिश को फिर से विचार करने के लिए वापस कर दे। अगर कॉलेजियम फिर से उस सिफारिश को उसके पास भेजती है तो सरकार उसे मान लेती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। जहा तक विलंब की बात है तो पिछले पांच वर्षों में हर साल यूपीए सरकार के कार्यकाल की तुलना में कहीं ज्यादा नियुक्तियां हुई हैं। पिछले साल चार जजों द्वारा किए गए असामयिक प्रेस कॉन्फ्रेंस अदालत के अंदरूनी मामलों से ज्यादा संबद्ध था कि न कि सरकार से।

इसके विपरीत सरकार के आलचकों का न्यायपालिका के मामले में उनका क्या ट्रैक रिकॉर्ड रहा है? विपक्ष द्वारा अव्यावहारिक आधार पर महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस देना दरअसल तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य जजों को डराने का प्रयास मात्र था- आप हमारी बात मानिए अन्य़था हम आपके लिए लज्जाजनक स्थिति पैदा कर देंगे। यह स्पष्ट और साफ संदेश था। सरकार का विरोध करने वाले वकील हमेशा जजों को अदालत में डराने वाली चालें चलते रहे हैं। अदालत का बहिष्कार, जजों के खिलाफ सोशल मीडिया अभियान पहले सुना नहीं जाता था लेकिन अब आज यह एक वास्तविकता है। मिथ्या का सहारा लेकर कई याचिकाएं डाली गईं जिनमें सच्चाई चरा भी नहीं थी और इस कारण अदालत ने उस पर गहरी नाराजगी जताई। इसके कई उदाहरण हैं जिनमें जस्टिस लोया की मृत्यु का मामला, राफेल मुद्दा, मध्य प्रदेश में फर्जी वोटर लिस्ट और व्यापम केस। हर मामले में जो तर्क रखे गए वो झूठे पाए गए। अदालतों के फैसलों के बावजूद विपक्षी नेता उसी झूठ को फैलाते रहे। विपरीत फैसलों के कारण अदालत के खिलाफ अभियान चलाए गए। हमने जस्टिस लोया मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ सोशल मीडिया अभियान देखा है। हाल में राफेल फैसले के बाद याचिकर्ताओं में से एक (एक पूर्व राष्ट्रवादी) ने घोषणा की कि राफेल मामले में फैसला करके सुप्रीम कोर्ट ने अपनी विश्वसनीयता घटाई है।

सशस्त्र बल

भारतीय जनता पार्टी और सरकार हमेशा इस देश के सशस्त्र बलों के साथ खड़ी रही है। हम विपक्ष में थे तो भी ऐसा ही करते थे। यह विपक्ष ही था जिसने सर्जिकल स्ट्राइक के अस्तित्व पर सवाल उठाया और बाद में इसे रूटीन ऐक्शन बताया जो पहले भी हो चुके हैं। सेना प्रमुख को सड़क का गुंडा तक बताया जा चुका है। एयर फोर्स द्वारा चुने गए लड़ाकू जहाज राफेल के चयन पर भी उंगलियां उठाई गई। इसके बावजूद वो कहते हैं कि सरकार द्वारा सस्थाओं पर हमले हो रहे हैं। यह एक मजाक ही तो है।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

अतीत में कांग्रेस सरकारों ने बिना हिचक के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नरों को पद छोड़ने को कहा। पंडिच नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और बाद में यशवंत सिन्हा ने गवर्नरों को पद छोड़ने को कहा। यूपीए शासनकाल में दो गवर्नर वित्त मंत्री के साथ शायद ही बातचीत करते थे। हाल में तो ऐसा कुछ बी नहीं हुआ है। सरकार तरलता और क्रेडिट के मामले में अपनी आपत्तियां वैधानिक तरीके से उठाती रही है। ये मामले सरकार के उच्चतम स्तर पर उठाए जाते रहे हैं और इनके लिए सभी कानूनी और अन्य तरह की प्रक्रियाओं का पालन किया गया। ये मामले वैधानिक थे। सरकार देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य प्रबंधक है। तरलता और क्रेडिट का मामला रिजर्व बैंक के कामकाज मं हस्तक्षेप कैसे हो सकता है। सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के के गवर्नरों से हमेशा संवाद करती रहती है।

सीबीआई

सरकार सीबीआई या किसी अन्य जांचकर्ता एजेंसी के कार्यकलापों और जांच पड़ताल में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करती। जब सरकार को आपस में लड़ रहे दो सीबीआई अफसरों के बारे में केन्द्रीय सतर्कता आयोग की उन अधिकारियों को छुट्टी पर भेजने संबंधी सिफारिशें मिलीं तो सीबीआई की साख बचाने और उसकी हितों की रक्षा करने के लिए उसने कदम उठाया। सरकार का स्टैंड उस समय न्यायोचित पाया गया जब तीन सदस्यों वाली उच्च स्तरीय समिति ने सीबीआई निदेशक के तबादले के आदेश पर अपनी मुहर लगा दी। और इस तरह से सरकार ने सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर जांच करने वाली एक बड़ी एजेंसी में सफाई करने का काम किया। किसी जांच एजेंसी की विश्वसनीयता को बहाल करना संस्था को मजबूत करना है न कि उस पर प्रहार। सच्चाई तो यह है कि विपक्ष सीबीआई के मामले में दोतरफा खेल कर रहा था। एक ओर तो वह हर दिन सीबीआई पर हमले कर रही थी जब वह भ्रष्टाचार की जांच करती थी वेकिन जब सरकार ने उसकी साख बनाए रखने के लिए कदम उठाया तो सरकार पर ही उंगलियां उठाने लगे।    

 

 

 

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