Salient points of press conference of BJP National Spokesperson Dr Sambit Patra


द्वारा श्री संबित पात्रा -
11-07-2023
Press Release

 

 

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा की प्रेसवार्ता के मुख्यबिन्दु

 

पश्चिम बंगाल में अप्रत्याशित हो रही हिंसा न तो पहले कभी देखी गई थी और न ही सुनी गई थी. पश्चिम बंगाल में उतरोत्तर दिन-प्रतिदिन लोकतंत्र किस प्रकार से दम तोड़ रही है, ये हिंसा उसका उदाहरण है। आज पश्चिम बंगाल एक तरह से हिंसा का पर्यायवाची शब्द बन चुका है.

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जब से प. बंगाल पंचायत चुनाव में नामांकन प्रक्रिया शुरु हुई है, तब से लेकर अब तक, मतगणना होने के दौरान तक, 45 हत्याएं हो चुकी हैं। इससे पूर्व, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के दौरान लगभग 52 लोगों की हत्याएं हुई थीं। जबकि 2013 के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के दौरान 15 और 2018 के पंचायत चुनाव में 23 हत्याएं हुई थीं।

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पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव को लेकर मीडिया में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है, वह केवल हत्याएं हीं नहीं हैं, बल्कि गोली-बारी, बमबारी, बोगस वोटिंग, रिगिंग, मत पेटियों का जलाना, मत पेटियों को फेंकना आदि शब्दों से भरे पड़े हैं। मतपेटी को कोई तलाब में फेंका रहा है तो कोई बूथ कब्जा करते दिखाया गया है।

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टीएमसी का प्रयास है कि चाहे जो भी हो, हर हाल में बूथ कब्जा करके पंचायत चुनावों में जीत हासिल करना। जिस लोकतंत्र में फायरिंग, बॉम्बिंग, बूथ रिगिंग जैसे शब्दों का वजूद हो, वैसा लोकतंत्र वाकई चिंता का विषय है।

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सुप्रीम कोर्ट और कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया था कि तटस्थ होकर केन्द्रीय बल के साथ निष्पक्ष तरीके से पंचायत चुनाव संपन्न कराएं। पंचायत चुनाव के लिए केन्द्रीय बल पश्चिम बंगाल जरुर गई, किन्तु पश्चिम बंगाल सरकार ने चुनाव के दौरान उनकी प्रतिनियुक्ति सही ढंग से नहीं की। संवेदनशील बूथों की संख्या छुपायी गयी।

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पश्चिम बंगाल में सिर्फ राज्य प्रायोजित हत्याएं नहीं हो रही हैं, बल्कि संस्थागत हत्याएं आर्थात वेल आर्गेनाइज्ड क्राइम हो रही है, जो इंस्टीच्यूशनल मर्डर का स्वरुप ले लिया है। इसमें पुलिस प्रशासन से लेकर जिला स्तरीय प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं।

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कहां है वे सारे नेता? कहां हैं लालू प्रसाद यादव और कहां हैं नीतीश कुमार? कहां हैं मोहब्बत की दुकान खोलने वाले राहुल गांधी? राहुल जी तो पूरे हिन्दुस्तान में मोहब्बत की दूकान खोलना चाहते थे। कहां हैं महा-ठगबंधन के नेता? विपक्षी के ऐसे महा-ठगबंधन के किसी भी एक नेता के मुंह से पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव हिंसा को लेकर एक शब्द तक नहीं निकला है।

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राहुल गांधी आज मोहब्बत की दुकान के विषय में बात नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी आकांक्षाओं का मेगामॉल खोल रखा है। उलटे-पुलटे, येन केन प्रकारेण उन्हें सिर्फ देश की सत्ता चाहिए। मोहब्बत की दुकान और उसके फरमान इन्हें सिर्फ उसी जगह पर आवश्यक लगते हैं, जहां प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी पर प्रहार किया जा सके।

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मां, माटी और मानुष की बात करने वाली ममता बनर्जी की सरकार में पश्चिम बंगाल में मां आज रो रही है, बिलख रही है, माटी आज रक्त रंजित है और निर्दोष मानुष की हत्या हो रही है। ममता जी नहीं, बल्कि निर्मम बंधोपाध्याय जी ये सब मूक-दर्शक बनकर देख रही हैं, तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह ममता नहीं, बल्कि निर्ममता है।

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ संबित पात्रा ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में लगातार होती रही हिंसा पर वहां की ममता बनर्जी सरकार पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में अप्रत्याशित हो रही हिंसा न तो पहले कभी देखी गई थी और न ही सुनी गई थी. पश्चिम बंगाल में उतरोत्तर दिन-प्रतिदिन लोकतंत्र किस प्रकार से दम तोड़ रही है, ये हिंसा उसका उदाहरण है। आज पश्चिम बंगाल एक तरह से हिंसा का पर्यायवाची शब्द बन चुका है.

 

डॉ पात्रा ने कहा कि पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई को पंचायत चुनाव संपन्न हुए और आज मतगणना हो रही है। मीडिया में ये ख़बरें छायी हुई हैं कि जब से पंचायत चुनाव में नामांकन प्रक्रिया शुरु हुई है, तब से लेकर अब तक, मतगणना होने के दौरान तक, 45 हत्याएं हो चुकी हैं। इससे पूर्व, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के दौरान लगभग 52 लोगों की हत्याएं हुई थीं। जबकि 2013 के पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव के दौरान 15 और 2018 के पंचायत चुनाव में 23 हत्याएं हुई थीं।

 

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव को लेकर मीडिया में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है, वह केवल हत्याएं हीं नहीं हैं, बल्कि गोली-बारी, बमबारी, बोगस वोटिंग, रिगिंग, मत पेटियों का जलाना, मत पेटियों को फेंकना आदि शब्दों से भरे पड़े हैं। मतपेटी को कोई तलाब में फेंका रहा है तो कोई बूथ कब्जा करते दिखाया गया है। टीएमसी का प्रयास है कि चाहे जो भी हो, हर हाल में बूथ कब्जा करके पंचायत चुनावों में जीत हासिल करना। जिस लोकतंत्र में फायरिंग, बॉम्बिंग, बूथ रिगिंग जैसे शब्दों का वजूद हो, वैसा लोकतंत्र वाकई चिंता का विषय है।

 

सुप्रीम कोर्ट और कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया था कि तटस्थ होकर केन्द्रीय बल के साथ निष्पक्ष तरीके से पंचायत चुनाव संपन्न कराएं। पंचायत चुनाव के लिए केन्द्रीय बल पश्चिम बंगाल जरुर गई, किन्तु पश्चिम बंगाल सरकार ने चुनाव के दौरान उनकी प्रतिनियुक्ति सही ढंग से नहीं की। संवेदनशील बूथों की संख्या छुपायी गयी। केन्द्रीय बलों को संवेदनशील बूथों के आंकड़े नहीं दिए गए। केन्द्रीय बलों की उपस्थिति के बावजूद पंचायत चुनावों में 45 हत्याएं हुईं। पश्चिम बंगाल में पक्षपातपूर्ण तरीके से हुए पंचायत चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने लगभग 6 हजार पोलिंग बूथों पर पुनर्मतदान कराने की मांग की थी।

 

दरअसल, ममता बनर्जी की सरकार एक प्रयोजित तरीके से इन हत्याओं को अंजाम दे रही थी। ये सारी हत्याएं कोई अकस्मात होने वाली घटनाएं नहीं हैं, बल्कि ये सारी हत्याएं वास्तव में राज्य प्रायोजित हत्याएं हैं। ये सिर्फ हत्याएं नहीं हैं, बल्कि पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की हत्या है।

 

पश्चिम बंगाल में सिर्फ राज्य प्रायोजित हत्याएं नहीं हो रही हैं, बल्कि संस्थागत हत्याएं आर्थात वेल आर्गेनाइज्ड क्राइम हो रही है, जो इंस्टीच्यूशनल मर्डर का स्वरुप ले लिया है। इसमें पुलिस प्रशासन से लेकर जिला स्तरीय प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं।

 

सोशल मीडिया में वायरल हो रहे वीडियो में दिखाया जा रहा है कि एक पर एक लदे शवों को ट्रक से उतार कर स्ट्रेचर पर डालकर ले जाया जा रहा है। उनमें किसी के हाथ मुड़े हुए हैं, तो किसी के पांव। यह कोई सड़क दुर्घटना का दृश्य नहीं है, बल्कि दिन-दहाड़े की गई निर्मम हत्या का दृष्य है। ये हत्याएं सिर्फ इसलिए की गईं कि वे लोग तृणमूल कांग्रेस को वोट नहीं कर रहे थे। यह कोई केवल भाजपा कार्यकर्त्ताओं की हत्याएं नहीं हैं, बल्कि इसमें कांग्रेसी, कम्युनिस्ट पार्टी सहित अन्य पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं की भी हत्याएं की गईं। ऐसे लोगों की भी हत्या की गई, जिनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं, वे सिर्फ अपना वोट देने बूथ पर जा रहे थे। ऐसा वीडियो किसी भाजपा शासित राज्यों से आ रहा होता तो विपक्ष के वे सारे नेता हाहाकार मचाने लगते, जो कभी पटना तो कभी बेंगलूरू में हाथ पकड़कर साथ खड़े दिखते हैं और महा-ठगबंधन का दृश्य दिखाते हैं।

 

कहां है वे सारे नेता? कहां हैं लालू प्रसाद यादव और कहां हैं नीतीश कुमार? कहां हैं मोहब्बत की दुकान खोलने वाले राहुल गांधी? राहुल जी तो पूरे हिन्दुस्तान में मोहब्बत की दूकान खोलना चाहते थे। कहां हैं महा-ठगबंधन के नेता? विपक्षी के ऐसे महा-ठगबंधन के किसी भी एक नेता के मुंह से पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव हिंसा को लेकर एक शब्द तक नहीं निकला है। राहुल गांधी आज मोहब्बत की दुकान के विषय में बात नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी आकांक्षाओं का मेगामॉल खोल रखा है। उलटे-पुलटे, येन केन प्रकारेण उन्हें सिर्फ देश की सत्ता चाहिए। मोहब्बत की दुकान और उसके फरमान इन्हें सिर्फ उसी जगह पर आवश्यक लगते हैं, जहां प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और भारतीय जनता पार्टी पर प्रहार किया जा सके।

 

यदि टीएमसी कार्यकर्त्ताओं द्वारा कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं की हत्या कर दी जाए और कांग्रेस नेता पश्चिम बंगाल में खुद कहे कि हमारे कार्यकर्त्ताओं की हत्या हुई है, तब भी राहुल गांधी और कांग्रेस के शीर्ष नेता चुप्पी साधे रहते हैं। यह दर्शाता है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की आकांक्षाएं कितनी बड़ी हैं.  ये लोग लोकतंत्र ही हत्या होते देख सकते हैं किन्तु अपनी महात्वाकांक्षा को मिटते नहीं देख सकते।

 

मां, माटी और मानुष की बात करने वाली ममता बनर्जी की सरकार में पश्चिम बंगाल में मां आज रो रही है, बिलख रही है, माटी आज रक्त रंजित है और निर्दोष मानुष की हत्या हो रही है। ममता जी नहीं, बल्कि निर्मम बंधोपाध्याय जी ये सब मूक-दर्शक बनकर देख रही हैं, तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह ममता नहीं, बल्कि निर्ममता है।

 

डायमंड हार्बर मॉडल है, जहां से अभिषेक बनर्जी चुनाव लड़ते हैं। वहां दादागिरी की राजनीति चल रही है। वहां भारतीय जनता पार्टी और अन्य पार्टियों के काउंटिंग एजेंट को छोड़ा तक नहीं जा रहा है, यदि कांउटिंग एजेंट टीएमसी का नहीं है तो मतगणना केन्द्र से दो किलोमीटर पहले ही रोक दिया जाता है। आज पूरे पश्चिम बंगाल में यह हो रहा है।

 

टीएमसी के अलावा किसी अन्य पार्टी के उम्मीदवार नामाकंन पर्चा भरने जाता है, तो पहले उसके साथ मारपीट की जाती है, उसे डराया और धमकाया जाता है। इसके बावजूद वह नामांकन पर्चा भर देता है, तो उसके लोगों की हत्याएं कर दी जाती हैं। चुनाव संपन्न हो जाने के बाद मतगणना के लिए कांउटिंग सेंटर पर उसके एजेंट को घुसने नहीं दिया जाता है, कांउटिंग सेंटर पर बम फेंका जाता है और  रिगिंग किया जाता है।

 

असम के मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्वा सर्मा ने ट्वीट करके बताया है कि कई हजार लोग पश्चिम बंगाल छोड़कर असम में शरण लिए हैं। ममता दी! क्या यही लोकतंत्र है? ममता जी को उत्तर देना होगा कि आखिर क्यों पश्चिम बंगाल के लोग चुनावी गणना के दिन अपना राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में शरण लेने के लिए मजबूर होते हैं? यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है।  इससे पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही हुआ था।

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