Salient points of the press conference of BJP National Spokesperson Dr. Sambit Patra (MP)


द्वारा श्री संबित पात्रा -
06-09-2024
Press Release

 

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सांसद डॉ संबित पात्रा की प्रेसवार्ता के मुख्य बिंदु

 

कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी  डॉक्टर से बलात्कार एवं नृशंस  हत्या मामले में टीएमसी प्रमुख एवं सीएम ममता बनर्जी और कोलकाता पुलिस कमिश्नर की संलिप्ता उजागर हो रही है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी उन दोनों से इस्तीफा की मांग करती है

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भारतीय जनता पार्टी मांग करती है कि सीएम ममता बनर्जी और विनीत गोयल के बीच जघन्य अपराध की घटना के बाद 72 घंटों के बीच जो भी टेलीफोनिक वार्ता हुई है उसके कॉल रिकार्डिंग निकाली जाए। कितनी बार उन दोनो के बीच बातें हुई? क्या क्या निर्देश दिए गए है? इन सभी बातों की जांच होनी चाहिए।

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पीड़िता डॉक्टर के पिता ने अपनी बेटी के बर्बरतापूर्ण हत्या एवं बलात्कार मामले में घटनाक्रम बताते हुए कुछ सवाल उठाए हैं, जिसका जवाब नहीं दिया गया है।

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ऐसा क्या था कि ममता बनर्जी की सरकार ने डीसीपी को भेजा कि पीड़िता के माता-पिता को खरीदने की कोशिश कीजिए, जब पीड़िता का शव घर में रखा हो?

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पीड़िता के पिता यह भी कहते हैं कि उन्हें बार-बार कहा जा रहा था कि कमरे के बाहर खड़े नहीं हो, प्रिंसिपल के कमरे में जाकर बैठे। वो प्रिसिंपल संदीप घोष जो आज गिरफ्तार है। पीड़िता के माता-पिता को प्रिसिंपल के कमरे में भेजकर उस एरिया को खाली करा कर पश्चिम बंगाल के प्रशासन एवं कोलकाता पुलिस ऐसा क्या करना चाहती थी?

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कोलकाता पुलिस द्वारा एक सादा कागज पर मुझे हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया और हमने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। इस परिस्थिति में पुलिस द्वारा पीड़िता के पिता से एक सादे कागज पर हस्ताक्षर करना चाहती थी, ऐसा क्यों?

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आखिर पश्चिम बंगाल के प्रशासन और कोलकाता पुलिस उस सादा कागत पर क्या लिखना चाहती थी कि मैं मानता हूं कि मेरी बेटी ने आत्महत्या की है, इस मामले में किसी प्रकार से रेप और मर्डर नहीं हुआ है?

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पीड़ित पिता कहते हैं कि इस घटना में शव का पोस्टमार्ट करने में देरी क्यों हुई?

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पीड़िता के माता-पिता को अपनी बेटी की बर्बरतापूर्ण बलात्कार एवं हत्या मामले में शिकायत दर्ज करानी पड़ी, पोस्टमार्टम करने वाले हास्पीटल या कोलकाता पुलिस ने एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की?

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पश्चिम बंगाल की पुलिस ने बर्बरतापूर्ण हत्या में होमीसाइड या मर्डर नहीं लिखा है। सिर्फ अप्राकृतिक मौत लिखा है मानो किसी कारण से मौत हो गयी है।

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पीड़िता के पिता कहते हैं कि पुलिस द्वारा जल्दी से दाह संस्कार करने का दबाव डाला गया और हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था। पश्चिम बंगाल की पुलिस ने ऐसा क्यों किया?

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टीएमसी का काउंसिलर खुद लोकल गार्डियन बनकर एम्बुलेंस में बैठ गया और एम्बुलेंस के अंदर क्या किया? क्या टीएमसी का वह काउंसिलर एम्बुलेंस में बैठकर साक्ष्य एवं सबूतों को मिटाने में लगा हुआ था

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क्यों टीएमसी के विधायक एवं काउंसिलर दाह संस्कार के दौरान मौजूद रहे और अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे? भारतीय जनता पार्टी ने पीड़िता के अंतिम दाह संस्कार का राजनीतिकरण कर दिया गया, ऐसा क्यों किया गया?

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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश से क्राइम स्थल सेमिनार हॉल के बार तोड़-फोड़ का काम शुरू किया गया है। उस दिन पत्र जारी कर ट्रेनी  डॉक्टर की बलात्कार एवं नृशंस हत्या मामले के साक्ष्य एवं सबूत को मिटाया गया।

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सांसद डॉ संबित पात्रा ने आज केंद्रीय कार्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता में कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी  डॉक्टर से बलात्कार एवं नृशंस  हत्या मामले में टीएमसी प्रमुख एवं सीएम ममता बनर्जी और कोलकाता पुलिस कमिश्नर की संलिप्ता को लेकर जमकर आलोचना की और उनसे इस्तीफा की मांग की। डॉ पात्रा ने कहा कि पीड़िता डॉक्टर के पिता ने अपनी बेटी के बर्बरतापूर्ण हत्या एवं बलात्कार मामले में घटनाक्रम बताते हुए कुछ सवाल उठाए हैं, जिसका जवाब नहीं दिया गया है।

 

डॉ पात्रा ने मीडिया के हवाले से कहा कि पीड़िता डॉक्टर के पिता ने जो सवाल उठाए हैं उन सवालों को देश की जनता के सामने रख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी समेत देश की जनता ममता बनर्जी से उन सवालों को पूछ रही है और उनसे जवाब की उम्मीद कर रही है-

 

पीड़िता के पिता पहला प्रश्न पूछते हैं- पीड़िता के पिता कहते हैं कि जब मेरी बेटी का शव हमारे घर में रखी हुई थी तब उस समय डीसीपी नार्थ ने मुझे एक कोने में बुलाकर कुछ पैसे देने की कोशिश की। मैं ने पैसे लेने से इनकार कर दिया और कहा कि मुझे पैसे नहीं चाहिए। जरा उस वक्त पीड़िता की मानसिक हालत के बारे में सोचिए कि उन पर क्या गुजर रही होगी, जब ऐसे बर्बरतपूर्ण हत्या के शिकार हुई उनकी बेटी का शव घर में था। उस वक्त वे अपने आपका मानसिक रूप से समझा भी नहीं पा रहे होंगे कि उनकी बेटी के साथ क्या हुआ है। ऐसी परिस्थिति में एक प्रशासक उन्हें पैसा देने की कोशिश करता है। जरा सोचिए कि कोई आदमी भ्रष्ट कब बनता है जब किसी का मुहं बंद करने की कोशिश की जाती है या किसी चीज को छुपाने की कोशिश की जाती है। या यह होता है कि हम आपको पैसा दे रहे हैं इसके बदले में कुछ बोलो मत। ऐसा क्या था कि सीएम ममता बनर्जी की सरकार ने पीड़िता के पिता को पैसा देने के लिए डीसीपी को भेजा था? ऐसा क्या था कि ममता बनर्जी की सरकार ने डीसीपी को भेजा कि पीड़िता के माता-पिता को खरीदने की कोशिश कीजिए, जब पीड़िता का शव घर में रखा हो?

 

पीड़िता के पिता दूसरा प्रश्न पुछते हैं- पिता कहते हैं कि कोलकता पुलिस को 9 अगस्त की सुबह 10:10 बजे मालूम पड़ गया था कि मेरी बेटी की हत्या हो चुकी है और मेरी बेटी इस दुनिया में नहीं है। मेरी बेटी की मृत्यु इससे काफी पहले ही हो चुका था। मुझे सुबह 11 बजे बताया गया कि मेरी बेटी ने आत्महत्या कर ली है। जब हम हॉस्पीटल पहुंचते हैं तो जहां मेरी बेटी की बर्बरतापूर्ण हत्या हुई थी और वहां उसका शव था, उस कमरे के बाहर हमें 3:30 घंटे इंतजार करया गया, लेकिन पुलिस ने मुझे मेरी बेटी को देखने नहीं दिया। जबकि कई लोग उस कमरे में जा रहे थे और आ रहे थे। जरा सोच कर देखिए कि पीड़िता के माता-पिता के साथ उस समय क्या गुजर रही होगी, जब उनको पता है कि उनके बेटी का शव कमरे के अंदर है, किंतु वे अंदर जाकर उसे देख नहीं सकते हैं। पीड़िता के पिता यह भी कहते हैं कि उन्हें बार-बार कहा जा रहा था कि कमरे के बाहर खड़े नहीं हो, प्रिंसिपल के कमरे में जाकर बैठे। वो प्रिसिंपल संदीप घोष जो आज गिरफ्तार है। पिता ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि हम प्रिंसिपल के कमरे में नहीं जाएंगे, बल्कि इसी कमरे के बाहर इंतजार करेंगे। पीड़िता के पिता कहते हैं कि 3:30 घंटें इंतजार के बाद कुछ मिनटों के लिए मुझे क्राइम स्थल वाले सेमिनार हाल के अंदर बुलाया गया। पीड़िता के माता-पिता को प्रिसिंपल के कमरे में भेजकर उस एरिया को खाली करा कर पश्चिम बंगाल के प्रशासन एवं कोलकाता पुलिस ऐसा क्या करना चाहती थी?

 

पीड़िता के पिता कहते हैं कि कोलकाता पुलिस द्वारा एक सादा कागज पर मुझे हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया और हमने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। घटना स्थल पर पीड़िता का शव पड़ा था और 3:30 घंटे इंतजार कर रहे थे। उस परिस्थिति में पुलिस द्वारा पीड़िता के पिता से एक सादे कागज पर हस्ताक्षर करना चाहती थी, ऐसा क्यों? 21 वीं सदी में पढ़े-लिखे पीड़िता के पिता से ऐसा करने के लिए कहा जा रहा था। मान लीजिए पढ़े-लिखे लोग नहीं हो, तब भी जागरूक संसार में ऐसा करना उचित है क्या? आखिर पश्चिम बंगाल के प्रशासन और कोलकाता पुलिस उस सादा कागत पर क्या लिखना चाहती थी कि मैं मानता हूं कि मेरी बेटी ने आत्महत्या की है, इस मामले में किसी प्रकार से रेप और मर्डर नहीं हुआ है? सादा कागज पर तभी हस्ताक्षर कराते हैं जब आपके मन में खोट है या आपके मन में चोर है।

 

पीड़िता के पिता तीसरा प्रश्न पुछते हैं- पीड़ित पिता कहते हैं कि इस घटना में शव का पोस्टमार्ट करने में देरी क्यों हुई? पीड़िता के पिता ने टाईम लाइन दिया है। उन्होंने कहा कि जिस ढंग से काम चल रहा था, उसके अनुसार कोलकाता पुलिस देर भी करती, तब भी शाम पांच बजे तक पोस्टमार्ट हो जाना चाहिए था। लेकिन पोस्टमार्ट उसके बाद होता है। पीड़िता के पिता जी पूछते हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण था कि पोस्टमार्टम करने वाले अस्पताल ने एफआईआर नहीं किया? अंत में थकहार कर हम शाम 6:30 और 7 बजे के बीच पुलिस में शिकायत दर्ज कराना पड़ा। पीड़िता के माता-पिता पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हैं कि “हमारी बेटी अब रही नहीं, उसके साथ बहुत ही गलत होने की अंशका है।“ उसके बाद कोलकाता पुलिस रात के 11-45 बजे इस मामले की एफआईआर दर्ज करती है। पुलिस को सुबह 10 बजे पीड़िता का शव मिलता है और रात्रि में 11-45 बजे एफआईआर दर्ज होती है। जबकि वहां उस कॉलेज एंड हॉस्पीटल के सारे मेडिकल छात्र थे और हंगामा मचा हुआ था। मेडिकल छात्र सबकुछ जानते हैं कि रेप और मर्डर क्या होता है, रेप और होमीसाइड क्या होता है। इन सबके बावजूद पश्चिम बंगाल की पुलिस ने एफआईआर में मौत के कारण बताते हुए अप्राकृति मौत लिखा है। पश्चिम बंगाल की पुलिस ने बर्बरतापूर्ण हत्या में होमीसाइड या मर्डर नहीं लिखा है। सिर्फ अप्राकृतिक मौत लिखा है मानो किसी कारण से मौत हो गयी है।

 

भारतीय जनता पार्टी ने सीएम ममता बनर्जी से सवाल पूछा कि पीड़िता के माता-पिता को अपनी बेटी की बर्बरतापूर्ण बलात्कार एवं हत्या मामले में शिकायत दर्ज करानी पड़ी, पोस्टमार्टम करने वाले हास्पीटल या कोलकाता पुलिस ने एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की?

 

पीड़िता के पिता चौथा प्रश्न पुछते हैं- पिता कहते हैं कि पुलिस द्वारा दबाव डालकर जल्दी से जल्दी उनकी बेटी का शव दाह संस्कार स्थल पर लाया जाता है। पीड़िता के पिता मानसिक अघात की वजह से अपनी प्यारी बेटी का शव कुछ और समय तक घर पर रखना चाहते थे कि उनके रिश्तेदार, मित्र और परिचित आकर उनके बेटी से अंतिम बार मिल सके। लेकिन कोलकाता पुलिस ने ऐसा करने नहीं दिया और ताला पुलिस स्टेशन के 300 से 400 जवान निरंतर उनके घेरे हुए था। जरा सोचिए कि माता-पिता के कंधे पर अपने जवान बेटी के शव का बोझ था, किसी भी समाज में उससे भारी बोझ कुछ नहीं होता है। उनकी जवान बेटी के साथ क्या हुआ है उसका ट्रामा और उसके अलावा निरंतर 400 पुलिस द्वारा उन्हें घेरे रहना। पीड़िता के पिता कहते हैं कि पुलिस द्वारा जल्दी से दाह संस्कार करने का दबाव डाला गया और हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था। पश्चिम बंगाल की पुलिस ने ऐसा क्यों किया?

 

पीड़िता के पिता एवं उनकी आंटी पांचवा प्रश्न पुछते हैं- पीड़िता के लगभग 15 रिश्तेदार अस्पताल में आ चुके थे, जहां पीड़िता के साथ जघन्य अपराध हुआ था। 15 रिश्तेदारों की मौजूदगी में पीड़िता के माता-पिता को कार में बिठाकर एम्बुलेंस के आगे ले जाया गया। रिश्तेदारों की इच्छा थी कि वे एम्बुलेंस में बैठकर अपने प्यारी बिटिया के साथ जाए। उस समय पुलिस ने तुरंत एम्बुलेंस के दरवाजा बंद कर दिया और कहा कि आप लोग शव के साथ नहीं जा सकते हैं क्योंकि टीएमसी के लोकल काउन्शिलर ने पीड़िता का लोकल अभिभावक घोषित कर दिया है और वो एम्बुलेंस में बैठ गया है। यह समझ से परे की बात है कि जहां 15 रिश्तेदार और माता-पिता हो, वहां कोई अनजान व्यक्ति खुद को अभिभावक कैसे घोषित कर सकता है? टीएमसी का वार्ड पार्षद खुद को कैसे लोकल गार्डियन घोषित कर सकता है? सवाल उठता है कि टीएमसी का काउंसिलर खुद लोकल गार्डियन बनकर एम्बुलेंस में बैठ गया और एम्बुलेंस के अंदर क्या किया? क्या टीएमसी का वह काउंसिलर एम्बुलेंस में बैठकर साक्ष्य एवं सबूतों को मिटाने में लगा हुआ था? सवाल उठता है कि पुलिस ने उस अफरा तफरी में उनके रिश्तेदारों को एम्बुलेंस में बैठकर जाने क्यों नहीं दी? पुलिस ने बिना देर किए एम्बुलेंस का दरवाजा बंद क्यों कर दिया? पुलिस ने जल्दी से जल्दी वहां से एम्बुलेंस को क्यों भगाया?

 

पीड़िता के पिता एक महत्वपूर्ण सवाल पूछते हैं कि जब दाह संस्कार चल रहा था, तब टीएमसी के विधायक निरंतर वहां मौजूद रहे और उनके साथ दो टीएमसी के काउंसिलर भी मौजूद रहे। वे लोग पुलिस अधिकारियों से यहां वहां बातचीत करते और निर्देष देते नजर आए। क्यों टीएमसी के विधायक एवं काउंसिलर दाह संस्कार के दौरान मौजूद रहे और अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे? भारतीय जनता पार्टी ने पीड़िता के अंतिम दाह संस्कार का राजनीतिकरण कर दिया गया, ऐसा क्यों किया गया?

 

पीड़िता के पिता ने भावनापूर्ण एक सवाल पूछा कि दाह संस्कार स्थल पर उनसे शुल्क भी नहीं लिया गया, बल्कि किसी अनजान अधिकारी या राजनेता या कोई अन्य आदमी ने उस शुल्क की राशि जमा करा दी थी। मेरी बेटी स्वर्ग से क्या सोच रही होगी कि मेरे पिता ने मेरे अंतिम दाह संस्कार की राशि भी जमा नहीं करायी। पिता पूछते हैं कि इस तरह से बार-बार मुझे पैसा देने की कोशिश क्यों की जा रही थी?

 

पीड़िता के पिता ने अंतिम प्रश्न पूछते हैं- पीड़िता के पिता कहते हैं कि कोलकाता डीसीपी सेंटल इंदिरा मुखर्जी समेत अन्य आईपीएस अफसर प्रेस कांफ्रेंस करके झूठे तथ्य मीडिया के सामने रख रहे है वहा सरासर झूठे तथ्य हैं। इसलिए उन झूठे तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया जाए। एक वीडियो पहले दिखाया जा रहा था कि पीड़िता के पिता कह रहे हैं कि किसी ने उन्हें पैसा देने की कोशिश नहीं की। पीड़िता के पिता ने उस वीडियो की सच्चाई का खुलासा किया है कि जब उनकी बिटिया की नृशंस और बर्बरतापूर्ण हत्या होने के पश्चात कुछ अधिकारी हमारे घर आए थे और उन्होंने कहा कि यदि आप चाहते हैं कि जांच कार्य सही तरीके से हो और त्वरित गति से जांच हो, तो इस वीडियो में वही बातें रिकार्ड करें जो हम कह रहे हैं। पीड़िता के पिता से पुलिस अधिकारी ने रिकार्ड करने को कहा कि कोलकाता पुलिस सही तरीके से जांच कर रही है और किसी अधिकारी ने पैसा देने की कोशिश नहीं की। स्वभाविक है कि पीड़िता के पिता के उपर दबाव डालकर ऐसा वीडियो रिकार्ड किया गया था।

 

डॉ. पात्रा ने कहा कि जबतक सीएम ममता बनर्जी और कोलकाता के पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल अपने पद पर बने रहेंगे तब तक इस मामले की निष्पक्ष जांच होना संभव नहीं है।

 

एक पत्र दिखाकर डॉ पात्रा ने कहा कि आर जी कर मेडिकल कॉलेज के ट्रेनी  डॉक्टर के साथ 8 और 9 अगस्त की रात में बलात्कार और हत्या की घटना होती है। उसके अगले दिन 10 अगस्त को कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा पीडब्ल्यूडी के इलेक्टीकल इंजीनियर को एक पत्र जारी करता है, जिसका मेमो नंबर है आरके सी-4197। इस पत्र में कहा गया कि सेमिनार हॉल से सटे डॉक्टर्स रूम, डॉक्टर्स टॉयलेट और स्टाफ टॉयलेट को तोड़कर फिर से बनाया जाए। यह वही सेमिनार हॉल है जिसमें ट्रेनी  डॉक्टर के साथ जघन्य अपराध का अंजाम देते हुए हत्या की गयी थी। क्राइम स्थल से सटे जगहों पर तोड़फोड़ को लेकर जब छा़त्रों, मीडिया और जनता ने सवाल उठाया था, तब सीएम ममता बनर्जी ने कहा था कि हॉस्पीटल में तोड़कर फिर से बनाने का निर्णय तो पहले ही हो चुका था, इसमें इस जघन्य अपराध से कोई लेना-देना नहीं है। मगर सच्चाई यह है कि मेडिकल कॉलेज के आरोपी प्रिसिंपल ने 10 अगस्त को यह पत्र जारी की है। अर्थात बलात्कार और हत्या के बाद आनन-फानन में यह पत्र जारी किया गया था। इस पत्र मे सबसे बड़ी बात है कि इस पत्र में लिखा है कि यह निर्णय 10 अगस्त की बैठक के बाद लिया गया है, जिस बैठक में पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रधान सचिव और पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण निदेशालय के निदेशक उपस्थित थे। उसी दिन बैठक में साइट इंस्पेक्शन के लिए निर्देश दिया जाता है और उसी दिन साइट इंस्पेक्शन भी हो जाता है। डॉ पात्रा ने सवाल उठाते हुए कहा कि पीड़िता के शव के इंस्पेक्शन में 12-12 घंटे देरी से हो रही है किन्तु साइट इंस्पेक्शन तुरंत हो जाती है। इसके बाद तुरंत नोटिस जारी कर क्राइम स्थल के बगल में सबकुछ तोड़ दिया जाता है और काम तुरंत शुरू कर दिया जाता है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ऐसा क्यों किया जाता है? इसके अलावा इस घटना से जुडे तोड़-फोड़ के फोटो को जिन छा़त्रों और डॉक्टरों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया, तो उनलोगों के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की गयी और धमकी दी गयी।   

 

डॉ पात्रा ने ममता बनर्जी से सवाल पूछा कि स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को कौन आदेश दे सकता है? प्रधान सचिव को प्रदेश के मुख्यमंत्री ही आदेश दे सकता है। स्वभाविक रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश से क्राइम स्थल सेमिनार हॉल के बार तोड़-फोड़ का काम शुरू किया गया है। उस दिन पत्र जारी कर ट्रेनी  डॉक्टर की बलात्कार एवं नृशंस हत्या मामले के साक्ष्य एवं सबूत को मिटाया गया। एक आदमी को यह समझ है कि जहां बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध की घटना घटी है वहां से साक्ष्य और सबूत मिलते हैं। वह हत्यारा और बलात्कारी टायलेट गया होगा। अपराधी अपने उपर लगे खून के धब्बों को मिटाने के लिए गया होगा। जहां से साक्ष्य और सबूत मिलते, उस जगह को तोड़ क्यों दिया गया? इस मामले की जांच  के लिए सीबीआई 13 अगस्त को आती है। जबतक सीबीआई इस मामले की जांच करने पहुंची, उसके पहले डॉक्टर्स और स्टॉफ रूम सहित टायलेट को तोड़ दिया गया। यह तोड़-फोड़ सीएम ममता बनर्जी और कोलकाता के कमिश्नर विनीत गोयल की संलिप्तता के बगैर यह संभव नहीं है। जबतक सीएम ममता बनर्जी और विनित गोयल अपने पद पर रहेंगे तब तक एक निष्पक्ष जांच संभव नहीं है। भारतीय जनता पार्टी मांग करती है कि सीएम ममता बनर्जी और पुलिस कमिश्नर विनीत गोयल को अविलंब पद से इस्तीफा देना चाहिए ताकि निष्पक्ष जांच हो सके और पीड़िता को न्याय मिल सके। सीएम ममता बनर्जी और विनीत गोयल के बीच जघन्य अपराध की घटना के बाद 72 घंटों के बीच जो भी टेलीफोनिक वार्ता हुई है उसके कॉल रिकार्डिंग निकाली जाए। कितनी बार उन दोनो के बीच बातें हुई? क्या क्या निर्देश दिए गए है? इन सभी बातों की जांच होनी चाहिए।

 

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