भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी का प्रेस वक्तव्य
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सांसद डॉ सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पार्टी की मुख्य विपक्षी दल के रुप में अप्रासंगिक होती भूमिका को पुनर्स्थापित करने की छटपटाहट से प्रेरित राहुल गांधी जी की तथाकथित भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर राहुल गांधी और पूरे कांग्रेस पार्टी को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि भारत जोड़ो यात्रा, शुरू से अंत तक विभिन्न प्रकार के अंतर्विरोधों से भरी रही और राजनैतिक बियाबां में अपने को पुनर्स्थापित करने की जद्दोजहद में यह यात्रा अपनी मंजिलें मकसूद से पूरी तरह से महरूम रही.
डॉ त्रिवेदी ने कहा कि संयोग की बात है कि यह यात्रा आज कश्मीर में समाप्त हुई और आज ही अहिंसा के सबसे बड़े प्रतिक महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि भी है. आज जहां कांग्रेस की यह भारत जोड़ो यात्रा समाप्त हुई वह कभी हिंसा और आतंकवाद का प्रतिक माना जाता था और कश्मीर की यह हालत कांग्रेस सरकार के दौरान हुई थी।
ये वही कश्मीर है जिसके भारत में एकीकरण के लिए हमारे संस्थापक अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया. यह वही कश्मीर है जहां 1988 से 1998 के दौर में वहां के राज्यपाल तक तिरंगा झंडा नहीं फहरा सकते थे। इसी अवधि में, भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ मुरली मनोहर जोशी जी और देश के वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराए थे. इन बलिदानों और साहस के दम पर एवं प्रधानमंत्री मोदी जी के दृढ़ निश्चय से अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के भारत के साथ सम्पूर्ण रुप से एकाकार होने की प्रक्रिया पूर्ण हुई.
आज अगर राहुल गांधी कश्मीर में झंडा फहराने में सफल हो रहे हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे संस्थापक अध्यक्ष ने अपने प्राण त्यागे और हमारे प्रधानमंत्री ने अगस्त 2019 में कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाया। इसके लिए उन्हें प्रधानमंत्री मोदी जी एवं भारतीय जनता पार्टी को कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए. अन्यथा कांग्रेस काल में तो कश्मीर में सुरक्षित रुप से राजनैतिक यात्रा एक स्वप्न थी.
डॉ त्रिवेदी ने कहा, राजनैतिक उद्देश्य से प्रेरित भारत जोड़ो यात्रा केरल से शुरू हुई, जहां कांग्रेस के नेता यात्रा के सहभागी बने. मोहब्बत की दुकान सजाने के दावे का सच इस तथाकथित भारत जोड़ो यात्रा में तब देखने को मिली जब सड़क पर बीफ पार्टी करने वाले नेता केरल में इससे जुड़े, भारत की धरती से नफ़रत करने वाले पादरी जॉर्ज पुन्नैया से राहुल जी तमिलनाडु में यात्रा के दौरान तो मिले, लेकिन फादर जोजफ से, जिनका हाथ कट्टरपंथियों ने काट डाले थे, मिलने का इन्हें समय नहीं मिला. केरल में स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी के अनुयायी केई मेमन और पद्मश्री से सम्मानित पी गोपीनाथन नायर के स्मारक का अनावरण कार्यक्रम में जाने की जरूरत नहीं समझी। केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख की मौजूदगी में परिवार की ओर से राहुल गांधी को निमंत्रण भी दिया गया। राहुल जी के इस कार्यक्रम में न जाने के बाद प्रदेश कांग्रेस को सबसे माफ़ी मांगनी पड़ी।
तमिलनाडु में राहुल गांधी को एसपी उदय कुमार से मिलने का समय मिल जाता है, जो तमिल पृथकता का बयान तक दे चुके हैं. फिर तमिलनाडु में नेता से अभिनेता बने कमल हसन को राहुल गांधी जी इंटरव्यू देते हैं, जहां राहुल गांधी कहते हैं- Nation with a confuse vision. ये वही कमल हसन हैं जिन्होंने PoK को आजाद कश्मीर तक कह डाला। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र में वीर सावरकर के प्रति नफ़रत फैलाते भी मिले. कर्णाटक कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हिंदू शब्द को गन्दा कहते हैं. फिर नक्सली हिंसा की समर्थक और नक्सलियों को Gandhians with Guns कहने वाले और गुजरात के विकास से नफ़रत की प्रतीक मेधा पाटकर तथा टुकड़े-टुकड़े के विशेषण वाले नौजवान का साथ भी इस भारत जोड़ो यात्रा को मिला. आखिर इतने नफरती जहरबुझे सामानों को लेकर कौन सी मोहब्बत का अभियान चला रहे थे राहुल गांधी?
इसके बाद यह यात्रा दिल्ली प्रवेश करती है, जहां कई विपक्षी दलों से अनुरोध करने के बावजूद कोई भी इस यात्रा में शामिल होने के लिए राजी नहीं हुए. जब यह यात्रा कश्मीर के समीप पहुँचती है तो राहुल गांधी की इस यात्रा के दौरान सेना के सम्मान और वीरता पर सवाल उठाए गए। पाकिस्तान में घुसकर जो सर्जिकल स्ट्राइक की गई, उसपर सवाल उठाए गए। जब ये यात्रा कश्मीर के नजदीक पहुंचती है तब यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल करते दिखे। यात्रा के दौरान राहुल गांधी के अपने हर बयान में कहा कि वे नफ़रत के खिलाफ अपना अभियान चला रहे हैं, फिर कहीं कहते हैं कि उन्हें नफ़रत कहीं दिखी ही नहीं. राहुल जी ने Confuse Nation की बात कही, लेकिन सबसे ज्यादा कंफ्यूजन, पूरी यात्रा के दौरान, उनके स्वयं के आचरण में ही देखने को मिला.
हकीकत यह है कि भारत जोड़ो यात्रा का संबंध भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते कद अथवा माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के विराट व्यक्तित्व से नहीं था, बल्कि विपक्ष के रुप में कांग्रेस की जो हैसियत समाप्त हो रही थी, उसे पुनर्स्थापित करते हुए विपक्षियों को अपने पाले में लाना था, जिसमे इन्हें नितांत विफलता हाथ लगी.
यात्रा के समापन पर राहुल जी ने अपने परिवार को याद किया, लेकिन उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत जोड़ो की जब बात होती तो भारत तोड़ो कब हुआ था? 2 सितंबर 1946 को कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष और अंतरिम सरकार के मुखिया पंडित नेहरु के समय कांग्रेस पार्टी के कार्यकारिणी में बाकायदा हस्ताक्षर करके विभाजन का प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसकी वजह से आधा पंजाब और बंगाल भारत से अलग हो गए. ठीक स्वतंत्रता के बाद, आधा कश्मीर भी चला गया. इसके बाद, अक्साई चीन और मानसरोवर भी चला गया. कांग्रेस यदि भारत जोड़ने की बात करती है तो इससे बड़ी विडंबना और कुछ नहीं हो सकती. कांग्रेस के अलावे अन्य तथाकथित सेक्युलर पार्टियों की यही नीति रही है कि- - बांटे आंगन और गलियारे, बांटे मंदिर और गुरुद्वारे, गांव-गांव और खेत-खेत में तुमने जाति पाति की म्याद बांट दी और एक वोट के खातिर तुमने देश की बुनियाद बांट दी.
कुल मिलाकर, राहुल गांधी जी की भारत जोड़ो यात्रा, शुरू से अंत तक विभिन्न प्रकार के अंतर्विरोधों को साधे हुए उत्तरोत्तर भटकते हुए आगे बढ़ी. लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि यह यात्रा न तो महात्मा गांधी के प्रदेश पहुँच पाई और न ही नेहरु के प्रदेश. यहाँ तक कि अपने माता-पिता के क्षेत्र रायबरेली व अमेठी भी नहीं जा सके.
भारतीय जनता पार्टी एवं प्रधानमंत्री मोदी जी से नफ़रत इस यात्रा का ‘स्थायी भाव’ था तथा नाना प्रकार के भारत विरोधी लोगों से गलबहियां और जहां तहां नफरती बयान इसका ‘संचारी भाव’ था.
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