Salient points of press conference : BJP National Spokesperson Shri Rajyavardhan Singh Rathore


29-09-2020
Press Release

 

 

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की प्रेस वार्ता के मुख्य बिंदु

 

एमनेस्टी के आरोप दुर्भाग्यपूर्ण, तथ्यहीन और सच्चाई से कोसों दूर हैं। कोई भी संस्था भारत में काम कर सकती है लेकिन देशी हो या विदेशी, सभी संस्थाओं को भारत के नियमों और कानूनों का पालन करना ही होगा।

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एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ग़ैरक़ानूनी और संदेहास्पद तरीक़ों से नियमों के विपरीत जाकर विदेशों से फंड जुटाया है। आखिर बाहर से आए पैसे को छुपाने की कोशिश क्यों की जा रही है?

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एमनेस्टी इंटरनेशनल को विदेशी योगदान कानून (एफसीआरए) के तहत 20 साल पहले केवल एक बार परमिशन मिली थी। इसके बाद कोई परमिशन नहीं ली गई। नियमों के मुताबिक हर 5 साल में इसका रिव्यू और रिन्यूवल जरूरी है।

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एफसीआरए के अप्रूवल के बिना भी एमनेस्टी ने विदेशों से फंड लेना जारी रखा। जांच एजेंसियों की छानबीन से बचने और एफसीआरए के नियामकों दरकिनार करने के लिए एमनेस्टी ने चार अलग संस्थाएं बनाईं और अवैध तरीके से विदेशी फंड लिया।

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एमनेस्टी ने देश की संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ कैंपेन शुरू कर दिया कि ये भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है। यह सरासर भारत के खिलाफ साजिश है।

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यूपीए सरकार के समय संसद में सरकार के तरफ से एमनेस्टी इंटरनेशनल की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े किए थे और एमनेस्टी को पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताया था।

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अवैध रूप से विदेशी फंडिंग लेने के कारण एमनेस्टी इंटरनेशनल के लाइसेंस को 2009 में यूपीए सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया था। साथ ही, एमनेस्टी के भारत में काम करने पर भी रोक लगा दी गई थी

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एमनेस्टी भारत में अपने मानवीय कार्य जारी रखने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन, भारत ऐसे संगठनों को घरेलू राजनीतिक बहसों में दखल देने की अनुमति नहीं देता है जिन्हें विदेशी मदद मिल रही है। यह कानून सभी के लिए बराबर है और एमनेस्टी पर भी लागू होता है।

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री राज्यवर्धन राठौड़ ने आज मंगलवार को पार्टी के केंद्रीय मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया और एमनेस्टी इंडिया के बेबुनियाद आरोपों को निराधार एवं सत्य से परे बताते हुए कहा कि कोई भी संस्था भारत में काम कर सकती है लेकिन देशी हो या विदेशी, सभी संस्थाओं को भारत के कानूनों का पालन करना ही होगा।

 

पत्रकारों को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि एमनेस्टी के आरोप दुर्भाग्यपूर्ण, तथ्यहीन और सच्चाई से कोसों दूर हैं। भारत में काम करना है तो विदेशी फंडिंग के बारे में सबको बताना होता है।  एमनेस्टी इंटरनेशनल को विदेशी योगदान कानून (एफसीआरए) के तहत 20 साल पहले केवल एक बार परमिशन मिली थी। इसके बाद कोई परमिशन नहीं ली गई। नियमों के मुताबिक हर 5 साल में इसका रिव्यू और रिन्यूवल जरूरी है। एफसीआरए के अप्रूवल के बिना भी एमनेस्टी ने विदेशों से फंड लेना जारी रखा। जांच एजेंसियों की छानबीन से बचने और एफसीआरए के नियामकों दरकिनार करने के लिए एमनेस्टी ने चार अलग संस्थाएं बनाईं और एमनेस्टी यूके ने भारत में पंजीकृत चार कंपनियों को एफडीआई बताकर बड़ी मात्रा में धनराशि दी। जब एक फंड की जांच हुई तो पता चला कि संदेहास्पद स्रोत से पैसे आए हैं। उन्होंने कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ग़ैरक़ानूनी और संदेहास्पद तरीक़ों से नियमों के विपरीत जाकर विदेशों से फंड जुटाया है। आखिर बाहर से आए पैसे को छुपाने की कोशिश क्यों की जा रही है?

 

श्री राठौड़ ने कहा कि कोई भी संस्था भारत में काम कर सकती है लेकिन देशी हो या विदेशी, सभी संस्थाओं को भारत के नियमों और कानूनों का पालन करना ही होगा। ये अंग्रेजों के हुकूमत का जमाना नहीं है, अब देश में सबके लिए समान कानून है। उन्होंने कहा कि एमनेस्टी भारत में अपने मानवीय कार्य जारी रखने के लिए स्वतंत्र है। लेकिन, भारत ऐसे संगठनों को घरेलू राजनीतिक बहसों में दखल देने की अनुमति नहीं देता है जिन्हें विदेशी मदद मिल रही है। यह कानून सभी के लिए बराबर है और एमनेस्टी पर भी लागू होता है।

 

राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि भारत में सबसे ज्यादा मानवाधिकार का ध्यान रखा जाता है। एमनेस्टी पर करारा प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के बारे में तो एमनेस्टी खूब बोलती है लेकिन पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के बारे में वह कुछ नहीं बोलती। उन्होंने कहा कि एमनेस्टी ने देश की संसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ कैंपेन शुरू कर दिया कि ये भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है जबकि इस विधेयक का देश के किसी भी नागरिक से कोई लेना-देना ही नहीं है। यह सरासर भारत के खिलाफ साजिश है।

 

श्री राठौड़ ने कहा कि यूपीए सरकार के समय संसद में सरकार के तरफ से एमनेस्टी इंटरनेशनल की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े किए थे और एमनेस्टी को पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताया था। इतना ही नहीं, अवैध रूप से विदेशी फंडिंग लेने के कारण एमनेस्टी इंटरनेशनल के लाइसेंस को 2009 में यूपीए सरकार द्वारा निरस्त कर दिया गया था। साथ ही, एमनेस्टी के भारत में काम करने पर भी रोक लगा दी गई थी।

 

(महेंद्र पांडेय)

कार्यालय सचिव

 

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